21 सितंबर वर्ल्ड अल्जाइमर-डे: जब मेमोरी कमजोर होने लगे तो क्या करें? जानिए कारण, लक्षण और ईलाज

अल्जाइमर रोग (डिमेंशिया का प्रमुख प्रकार) से याददाश्त और दिमागी कार्य प्रभावित होते हैं। WHO के अनुसार, 5.5 करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं। शुरुआती लक्षणों पर सावधानी बरतकर इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। जानिए अल्जाइमर के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय।

Updated On 2025-09-22 07:33:00 IST

21 सितंबर वर्ल्ड अल्जाइमर-डे

डॉ. (प्रोफेसर) विनय गोयल

(चेयरमैन-न्यूरोलॉजी, मेदांता दि मेडिसिटी, गुरुग्राम)

ओल्ड एज में न्यूरॉन्स के डैमेज होने और अन्य कुछ कारणों से व्यक्ति अल्जाइमर का शिकार हो जाता है। इससे उसकी याददाश्त कमजोर होने लगती है। कई तरह की दिमागी दिक्कतें शुरू होने लगती हैं।

इससे पेशेंट को नॉर्मल लाइफ जीने में परेशानी होती है। लेकिन अगर शुरुआती लक्षणों के साथ ही कुछ बातों को लेकर सावधानी बरती जाए तो इसके प्रभाव को काफी हदतक कम किया जा सकता है। इस बारे में यहां विस्तार से जानिए-

डबल्यूएचओ (WHO) के अनुसार, साढ़े पांच करोड़ से अधिक लोग दुनिया भर में डिमेंशिया (जिसका एक प्रमुख प्रकार अल्जाइमर डिजीज (संक्षेप में एडी है) से पीड़ित हैं। डिमेंशिया के लगभग 60 फीसदी मामले अल्जाइमर से ही संबंधित होते हैं।

क्या है अल्जाइमर

जर्मनी के प्रख्यात मनोचिकित्सक एलोइस अल्जाइमर ने अल्जाइर रोग की पहचान की थी। इसलिए उन्हीं के नाम पर इस मर्ज का नाम अल्जाइमर पड़ा, जिसे अंग्रेजी भाषा में ‘अल्जाइमर्स डिजीज’ या ए.डी. कहा जाता है।

एलोइस अल्जाइमर ने कहा था कि जब युवावस्था की दोपहर के बाद जिंदगी की शाम होती है, तब यादें ही हमारा सहारा होती है। मन दुखद यादों को भूलना चाहता है और सुखद यादों में डूबना चाहता है।

उम्र बढ़ने के साथ यादें हमारी साथी बन जाती हैं, लेकिन क्या होगा अगर याद्दाश्त खुद ही फीकी पड़ने लगे और खो जाए? अल्जाइमर रोग में यही होता है।

खुद अवेयर रहें और दूसरों को भी सचेत करें

डिमेंशिया (dementia) का एक प्रमुख प्रकार है- अल्जाइमर। डिमेंशिया दिमाग संबंधी विकारों का एक समूह है, जिसमें व्यक्ति की याद्दाश्त, सोच, भाषा और उसका कौशल क्षीण होने लगता है और उसके व्यक्तित्व एवं व्यवहार में नकारात्मक बदलाव आने लगते हैं। डिमेंशिया के लगभग 60 फीसदी मामले अल्जाइमर से संबंधित होते हैं।

गौरतलब है कि अल्जाइमर की समस्या रातों-रात नहीं होती। कई सालों के बाद यह रोग गंभीर रूप धारण करता है। समय रहते इस रोग का पता चलने पर पीड़ित व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा (life expectancy) 8-10 साल से अधिक हो सकती है, हालांकि इसके अपवाद भी संभव हैं।

अल्जाइमर के कारण

बढ़ती उम्र यानी वृद्धावस्था (आमतौर पर 60 साल से अधिक) में मस्तिष्क की कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) के मृत होने और इनमें असामान्य रूप से प्रोटीन के संचित होने को अल्जाइमर का कारण माना जाता है, लेकिन इस रोग के कारणों पर अभी तक शोध-अध्ययन जारी हैं।

अल्जाइमर के प्रमुख लक्षण

  • चंद दिनों पहले घटी घटनाओं के बारे में याद न रहना।
  • हाल में ही संपर्क में आए लोगों के नामों को भूलना।
  • समय और स्थान के बारे में असमंजस होना।
  • अत्यंत गंभीर स्थिति में मरीज अपने परिजनों तक को नहीं पहचानता या फिर उनका नाम भूल जाता है।
  • बोलते समय सही शब्द का चयन करने में दिक्कत।
  • नित्य क्रिया और दैनिक कार्य करने में कठिनाई जैसे कमीज के बटन बंद करने में दिक्कत महसूस करना आदि।
  • लोगों का चेहरा पहचानने में परेशानी।
  • पीड़ित व्यक्ति के व्यक्तित्व में नकारात्मक परिवर्तन होना।
  • अल्जाइमर रोगी अकसर समाज से अलग-थलग पड़ जाते हैं। इस कारण ये अवसाद (डिप्रेशन) से ग्रस्त हो सकते हैं। क्रोध और चिड़चिड़ापन इनके स्वभाव का अंग बन जाता है।
  • आमतौर पर अल्जाइमर के लक्षण इस बीमारी की अवस्था (स्टेज)पर निर्भर करते हैं। जैसे बीमारी के शुरुआती दौर में व्यक्ति नाम या स्थान को कुछ सेकेंड या मिनट के लिए भूल सकता है, लेकिन बीमारी की तीसरी अवस्था या स्टेज में व्यक्ति अपने घर वालों का नाम भी भूल सकता है, अपने घर का एड्रेस भी भूल सकता है।

एजिंग प्रोसेस नहीं है अल्जाइमर

उम्र बढ़ने (आमतौर पर 60 साल के बाद) के साथ मस्तिष्क और शरीर की कार्यक्षमता निरंतर कम होती जाती है, जिसे एजिंग प्रोसेस कहा जाता है। इस दौरान व्यक्ति की याददाश्त कम होने लगती है, लेकिन उसे बोलते समय सही शब्द का चयन करने और दैनिक कार्यों को अंजाम देने में दिक्कत महसूस नहीं होती, जबकि अल्जाइमर की समस्या में उपरोक्त लक्षण सामने आते हैं।

डायग्नोसिस के तरीके

न्यूरोलॉजिस्ट द्वारा सबसे पहले मरीज का क्लीनिक में शारीरिक और मानसिक परीक्षण(जिसमें स्मृति परीक्षण भी शामिल है) किया जाता है। इसके अलावा मस्तिष्क में स्मृति से संबंधित कौन सा भाग कितना विकारग्रस्त है, यह जानने के लिए सीटी स्कैन या एमआरआई या पीईटी स्कैन नामक परीक्षण कराए जाते हैं। कुछ मामलों में ईईजी टेस्ट भी कराते हैं।

अल्जाइमर का इलाज ?

अल्जाइमर्स का कोई स्थाई इलाज नहीं है। अतीत में ‘अमेरिकन ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ अल्जाइमर्स से संबंधित एक दवा को अनुमति प्रदान कर चुका है, जिसके क्लीनिकल ट्रायल जारी हैं। इस मर्ज में सिर्फ लक्षणों को कम करने के लिए कुछ विधियां और उपचार उपलब्ध हैं।

  • अवसाद (Depression) और मरीज की घबराहट को नियंत्रित करने के लिए दवाएं दी जाती हैं।
  • उच्च रक्तचाप की समस्या होने पर इसे नियंत्रित करने वाली दवाएं देते हैं।
  • शारीरिक और मानसिक गतिविधियां रोगी की प्रतिदिन की गतिविधियों में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जैसे योगासन, प्राणायाम शारीरिक फिटनेस को बनाए रखने में सहायक हो सकते हैं।
  • कुछ मानसिक अभ्यास जैसे सुडोकू, क्रॉसवर्ड, पहेली और कार्ड खेलना आदि मस्तिष्क को सक्रिय बनाए रखने में सहायक हैं।
  • कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नई भाषाएं सीखने से मस्तिष्क का अच्छा अभ्यास होता है और सीखने की इस प्रवृत्ति से अल्जाइमर्स की रोकथाम में मदद मिलती है

फैमिली सपोर्ट है खास

अल्जाइमर न केवल रोगी को बल्कि उसके परिवार को भी प्रभावित करता है। इसलिए परिवार के सदस्य पीड़ित व्यक्ति के लिए वक्त निकालें, उनसे बात करें और उनके साथ टहलें ताकि उनके तनाव को दूर करने में मदद मिले। डॉक्टर, दोस्त और पड़ोसी के रूप में हम मरीज की मदद कर सकते हैं।

इन्हें है अल्जाइमर का अधिक रिस्क

  • आमतौर पर अल्जाइमर की बीमारी 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को होती है। इसलिए इस आयु वर्ग के लोगों में अल्जाइमर का जोखिम सर्वाधिक है।
  • जिन लोगों के परिवार के किसी सदस्य को अतीत में अल्जाइमर की समस्या रही है, उनमें इस रोग के होने का जोखिम कहीं ज्यादा होता है।
  • किसी व्यक्ति के शरीर में कुछ जींस ऐसे होते हैं, जो अल्जाइमर रोग के खतरे को बढ़ा देते हैं।
  • जिन लोगों के मस्तिष्क में किसी दुर्घटना से गंभीर आघात लगा है या फिर किन्ही कारणों से गंभीर चोट लगी है और ऐसे लोग दुर्घटना के बाद देर तक बेहोश रहे हैं, तो उनमें कालांतर में अल्जाइमर होने का जोखिम बढ़ जाता है।

पोषक तत्वों का सेवन लाभकारी

अल्जाइमर की रोकथाम या इस मर्ज की प्रक्रिया को धीमा करने में संतुलित और पौष्टिक खान-पान का भी महत्व होता है। इसके अलावा जो लोग अल्जाइमर से ग्रस्त हो चुके हैं, उन्हें और उनके परिजनों को भी मरीज के संदर्भ में संतुलित और पौष्टिक खान-पान पर ध्यान देना चाहिए।

पौष्टिक और संतुलित आहार मस्तिष्क और इसकी कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) के क्रियाकलाप को को सही तरीके से संचालित करने में मदद करता है। जैसे अखरोट के सेवन से याददाश्त को बरकरार रखने में मदद मिलती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अखरोट में ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है, जो मस्तिष्क के क्रियाकलापों को सुचारु रूप से संचालित करने में मदद करता है।

अखरोट के अलावा विटामिन बी 12 (जो मौसमी फलों, हरी सब्जियों और ड्राई फ्रूट्स में पाया जाता है), मछली, कीवी, अनार और विभिन्न रूपों में हल्दी का सेवन कमजोर होती याददाश्त को रोकने में सहायक हैं। हल्दी में करक्यूमिन नामक तत्व पाया जाता है, जो याददाश्त को सशक्त बनाने में सहायक है।

Tags:    

Similar News