Raksha Bandhan: विदेशी चॉकलेट छोड़ें, रक्षाबंधन पर थाली में सजाएं देसी मिठाइयों का असली स्वाद
इस रक्षाबंधन और त्योहारों पर विदेशी चॉकलेट को भूलकर देसी मिठाइयों को अपनाएं। रसगुल्ला, घेवर, लड्डू जैसी भारतीय मिठाइयां न सिर्फ स्वादिष्ट हैं बल्कि सेहत और संस्कृति से भी जुड़ी हैं।
Indian sweets (फाइल फोटो)
Rakshabandhan 2025 sweets: त्योहारों का मौसम हो, खुशियों का मेला हो, या कुछ खाने का मन हो हर मौके पर कुछ मीठा खाने का तो मन होता है। लेकिन सवाल यह है कि जब बात मिठास की आती है तो हमारी थाली में विदेशी चॉकलेट ही क्यों दिखती है? क्या हमारी देसी मिठाइयों का जादू फीका पड़ गया है या हम खुद ही अपनी मिठास को भूल रहे हैं आइए, इस मीठे सवाल का जवाब तलाशते हैं और अपनी भारतीय संस्कृति की मिठास को फिर से जागृत करते हैं।
भारत की मिठाइयों का नाम लेते ही मुंह में पानी आ जाता है बंगाल का रसगुल्ला, राजस्थान का घेवर, कानपुर का प्रसिध्द ठग्गू का लड्डू, गुजरात की मोहनथाल हर मिठाई अपनी एक कहानी कहती है। ये सिर्फ मिठाइयां नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और प्यार का प्रतीक हैं। दादी-नानी के हाथों की खीर, मां के हाथ के बने बेसन के लड्डू या पड़ोस में बंटने वाला सूजी के हलवे का स्वाद तो बस दिल को छू जाता है तो फिर क्यों हम हर बार विदेशी चॉकलेट की चमक में खो जाते हैं सिर्फ इसलिए कि विदेशी चॉकलेट्स की चमकदार पैकेजिंग, आसान उपलब्धता और आधुनिकता का तड़का ये सब हमें अपनी ओर आकर्षित करता है।
विज्ञापनों में दिखने वाली चॉकलेट की विदेशी ब्रांड्स का आकर्षण बच्चों से लेकर बड़ों तक को लुभाता है लेकिन क्या ये चॉकलेट्स देसी मिठाइयों की तरह हमारी संस्कृति से जुड़ पाती हैं शायद नहीं। चॉकलेट का स्वाद एकरूप हो सकता है, लेकिन हमारी मिठाइयां हर क्षेत्र, हर मौसम, हर त्योहार के साथ बदलती हैं और हर बार एक नया अनुभव देती हैं।
आज का दौर बदल रहा है। लोग अब सिर्फ स्वाद ही नहीं, बल्कि सेहत और संस्कृति को भी तवज्जों दे रहे हैं। देसी मिठाइयों में खजूर, गुड़, नारियल, और घी जैसे पौष्टिक तत्व होते हैं जो न सिर्फ स्वादिष्ट हैं बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं। मिसाल के तौर पर, तिल और गुड़ की गजक सर्दियों में गर्माहट देती है, तो रागी का लड्डू पोषण से भरपूर होता है इसके अलावा स्थानीय मिठाइयों को बढ़ावा देना हमारे किसानों, कारीगरों और छोटे व्यवसायियों को भी मजबूती देता है। तो इस बार हर त्योहार पर देसी मिठाइयों को फिर से अपना बनाएं और बच्चों को भी अपनी मिठाइयों की कहानियां सुनाएं कि कैसे बेसन के लड्डू में दादी, नानी का प्यार छुपा है।
मिठास सिर्फ स्वाद की बात नहीं बल्कि हमारी संस्कृति से जुड़ने का एक जरिया है। हर मिठाई के पीछे एक कहानी, एक परंपरा, और एक प्यार भरा इतिहास छुपा है तो इस बार जब मन करे कुछ मीठा हो जाए तो चॉकलेट की चमक को थोड़ा विराम दें और अपनी देसी मिठाइयों को अपना बनाए क्योंकि मिठास का असली स्वाद तो देसी शुद्धता में ही है, कुछ मीठा हो जाए’ का मतलब केवल स्वाद नहीं, बल्कि हमारी पहचान और गर्व का उत्सव है। इस रक्षाबंधन पर अपनी थाली में देसी मिठाइयों को जगह दें। विदेशी चॉकलेट्स की चमक के पीछे न भागें बल्कि अपनी मिठाइयों की मिठास को अपनाएं। आखिर जब हमारे पास तरह-तरह की अनगिनत मिठाइयों का खजाना है तो विदेशी चॉकलेट्स की क्या जरूरत यह निर्णय आपका है अपनी संस्कृति को चुनें, अपने स्वाद को चुनें और अपने देश को चुनें।
लेखिका- छाया सिंह