हरियाली तीज 2025: नारी के आत्मबल, श्रद्धा और सौंदर्य का उत्सव
हरियाली तीज 2025 का पर्व नारी शक्ति, श्रद्धा और आत्मबल का उत्सव है। जानें शिव-पार्वती की पौराणिक कथा, व्रत की विधि, लोकगीतों और आधुनिक संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता।
हरियाली तीज 2025: झूला झूलते हुए सजी धजी महिलाएं।
Hariyali Teej 2025: सावन के पावन महीने में मनाई जाने वाली हरियाली तीज सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि स्त्रीत्व, सौंदर्य और आत्मबल का उत्सव है। यह पर्व भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन की पावन स्मृति को समर्पित है और भारतीय समाज में नारी की सांस्कृतिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक भूमिका को रेखांकित करता है। यह पर्व इस बार 27 जुलाई 2025, रविवार को माने जायेगा।
नारी शक्ति का पर्व
हरियाली तीज को स्त्रियों के सबसे प्रिय त्योहारों में गिना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों - राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं इस दिन पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर पाने की प्रार्थना करती हैं।
इस दिन महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं, चूड़ियों से सजती हैं और झूला झूलते हुए लोकगीत गाती हैं। यह उत्सव स्त्री के सौंदर्य, श्रृंगार और संवेदनाओं को सामाजिक रूप से अभिव्यक्ति देने का एक माध्यम है।
धार्मिक आस्था और परंपरा से जुड़ी कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। श्रावण मास की शुक्ल तृतीया को भगवान शिव ने उन्हें अर्धांगिनी स्वीकार किया। इसी कारण यह तिथि हरियाली तीज के रूप में मनाई जाती है।
तीज का सांस्कृतिक और सामाजिक पक्ष
हरियाली तीज का महत्व केवल व्रत और पूजा तक सीमित नहीं है। यह पर्व मायके और ससुराल के बीच भावनाओं का सेतु बनकर उभरता है। विवाहित बेटियों को मायके बुलाया जाता है और पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बनता है।
लहरिया साड़ी, गोटेदार चुनरी, महावर, बिछुए और पायल के साथ सजी बहू-बेटियां जब गीत गाती हैं, तो वह केवल परंपरा नहीं बल्कि आत्मअभिव्यक्ति बन जाती है। यह पर्व स्त्री को उसका 'स्वत्व' महसूस कराता है- उसका अस्तित्व, उसका संकल्प और उसका सौंदर्य।
व्रत, पूजा और धार्मिक अनुष्ठान
तीज के दिन महिलाएं सूर्योदय से पूर्व स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं। वे शिव-पार्वती की पूजा करती हैं और सोलह श्रृंगार कर देवी पार्वती की तरह सजती हैं। पारंपरिक गीतों और कथाओं के माध्यम से यह पूजा संपन्न होती है।
झूले और लोकगीत: नारी भावनाओं की अभिव्यक्ति
तीज के गीत स्त्री के भीतर के भावों - प्रेम, प्रतीक्षा, विरह, मिलन और सामाजिक सीमाओं- की अभिव्यक्ति हैं। ‘सावन के झूले’, ‘कजरारे नैन’, और ‘मायके बुलावे’ जैसे लोकगीतों में नारी मन की भावनाओं की झलक स्पष्ट होती है।
आधुनिक संदर्भ में तीज की प्रासंगिकता
समय भले ही बदल गया हो, लेकिन तीज का मूल भाव आज भी नारी जीवन में उतना ही महत्वपूर्ण है। आधुनिक महिलाएं इस पर्व को परंपरा से आगे बढ़कर आत्म-संवर्धन और मानसिक सशक्तिकरण के रूप में देख रही हैं। यह पर्व उन्हें सामाजिक, आध्यात्मिक और पारिवारिक संतुलन में सहायता करता है।
तीज केवल पर्व नहीं, पहचान है
हरियाली तीज नारी के आत्मबल, सौंदर्य, आस्था और भावनात्मक गहराई का उत्सव है। यह त्योहार केवल देवी पूजन या श्रृंगार का अवसर नहीं, बल्कि स्त्री की सामाजिक भूमिका, आत्मसम्मान और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव का प्रतीक है
लेखिका: यशोधरा भटनागर