Bankrupt Rcom: कर्ज में डूबे अनिल अंबानी को एक और झटका, RCom समेत कई कंपनियों के लोन खाते 'फ्रॉड' घोषित

Bankrupt Rcom: बैंक ने मार्च 2017 में रिलायंस कम्युनिकेशन के लोन अकाउंट को NPA घोषित किया था। डिफ़ॉल्ट के बाद स्वीडन की एरिक्सन साल 2018 में टेलीकॉम कंपनी को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल एनसीएलटी ले गई।

Updated On 2024-11-18 18:38:00 IST
Anil Ambani

Bankrupt Rcom: उद्योगपति अनिल अंबानी (Anil Ambani) की रिलायंस कम्युनिकेश (RCom) और उसकी सहायक कंपनियों के लोन अकाउंट को केनरा बैंक ने धोखाधड़ी (फ्रॉड) घोषित कर दिया है। बैंक ने दिवालिया हो चुकी इस कंपनी को पिछले शुक्रवार को नोटिस भेजकर यह जानकारी दी। केनरा बैंक यह कदम उठाने वाला देश का चौथा बैंक बन गया है। इससे पहले भारतीय स्टेट बैंक (SBI), यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक ने 2020 में RCom के लोन खाते फ्रॉड घोषित किए थे।

फ्रॉड घोषित होने के पीछे क्या हैं कारण? 

  • केनरा बैंक के मुताबिक, रिलायंस कम्युनिकेशन ने लोन फंड का दुरुपयोग किया। यह रकम सेंक्शन लेटर में बताए गए उद्देश्यों के बजाय दूसरे कामों में लगाए। इसके अलावा कंपनी ने लोन फंड का इस्तेमाल अन्य बैंकों के कर्ज चुकाने और संबंधित पार्टियों को भुगतान करने में किया।
  • कैनरा बैंक ने अपने नोटिस में बताया कि RCom को 1050 करोड़ रुपए की क्रेडिट फैसिलिटी दी गई थी, जिसमें टर्म लोन, गारंटी और लेटर ऑफ क्रेडिट शामिल थे। कंपनी ने इन शर्तों का उल्लंघन किया, जिसके चलते 2017 में इसे नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) घोषित कर दिया गया।

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फॉरेंसिक ऑडिट में हुआ बड़ा खुलासा

2020 में BDO इंडिया द्वारा किए गए फॉरेंसिक ऑडिट में सामने आया कि RCom और उसकी एसोसिएट कंपनियों ने बैंकों से 31,580 करोड़ रुपए लोन लिया है।  जिसमें से 6,265.85 करोड़ रुपए अन्य बैंकों के लोन चुकाने में खर्च किए। जबकि 5,501.56 करोड़ रुपए संबंधित पार्टियों को भुगतान किए गए। जबकि 1,883.08 करोड़ रुपए म्यूचुअल फंड में निवेश किए, जिन्हें तुरंत भुनाकर दूसरे पेमेंट के लिए यूज किया गया।

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दिवालिया प्रक्रिया और NCLT केस 
2017 में डिफॉल्ट होने के बाद स्वीडन की एरिक्सन कंपनी एक साल बाद RCom को मुंबई के नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में ले गई। यह घटनाक्रम रिलायंस कम्युनिकेशंस की पहले से खराब वित्तीय स्थिति को और खराब कर रहा है। भारतीय बैंकों का 'फ्रॉड' टैग अनिल अंबानी की कंपनी को दोबारा खड़ा करने की कोशिशों को और जटिल बना सकता है।

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