Ayodhya Ram Mandir: प्राण-प्रतिष्ठा से पहले इस्तीफा दें चंपत राय, ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने क्यों कही ऐसी बात...

Swami Avimukteshwaranand sought resignation from Champat Rai
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ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने श्रीराम जन्मभूमि ट्रष्ट के महासचिव चंपत राय को इस्तीफा सौपने की सलाह दी है।
Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या में लगभग 500 साल बाद बने रामलला के भव्य मंदिर को लेकर चंपत राय ने कहा था कि मंदिर शैव, शाक्त और संन्यासियों का नहीं, बल्कि रामनंद संप्रदाय का है। उनकी इसी बात पर शंकराचार्य ने प्रतिक्रिया दी है। 

Ayodhya Ram Mandir: ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने प्राण प्रतिष्ठा से पहले श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय से इस्तीफे की मांग कर दी। साथ ही सुझाव दिया है कि ट्रस्ट से इस्तीफा देकर राम मंदिर रामानंद संप्रदाय को सौंप देना चाहिए। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के इस बयान से हर कोई हैरान है।

दरअसल, श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने दो दिन पहले एक बयान दिया था कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है। यह शैव, शाक्त और संन्यासियों का नहीं है। इस पर शंकराचार्य का कहना है कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है तो चंपत राय वहां क्या कर रहे हैं? राम मंदिर रामानंद संप्रदाय को सौंप देना चाहिए। चंपत राय और अन्य पदाधिकारी इस्तीफा सौंप दें तो संत समाज को कोई आपत्ति नहीं होगी।

धर्म सम्मत नहीं अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा
ज्योतिष्पीठ से फेसबुक और ट्विटर पर जारी बयान में शंकराचार्य ने बताया कि चारों शंकराचार्य प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जा रहे हैं। कोई राग द्वेष नहीं है। शंकराचार्यों को कोई राग द्वेष नहीं है, लेकिन उनका मानना है कि शास्त्र सम्मत विधि का पालन किए बिना मूर्ति स्थापित किया जाना सनातनी जनता के लिए अनिष्टकारक होने के कारण उचित नहीं है। आधे-अधूरे मंदिर में भगवान को स्थापित किया जाना न्यायोचित और धर्म सम्मत नहीं है।

मोदी विरोधी तो वह हैं, जो अशास्त्रीय कार्य करा रहे
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि हम प्रधानमंत्री मोदी के विरोधी नहीं हैं, बल्कि उनके हितैषी हैं। उन्हें इसीलिए सलाह दे रहे हैं कि शास्त्र सम्मत कार्य करें। मोदी विरोधी तो वह हैं जो उनसे अशास्त्रीय कार्य करवाकर उनके अहित का मार्ग खोल रहे हैं। शंकराचार्यों का अपना कोई मंदिर नहीं होता। वह केवल धर्म व्यवस्था देते हैं। चंपत राय को जानना चाहिए कि शंकराचार्य और रामानन्द सम्प्रदाय के धर्मशास्त्र अलग-अलग नहीं होते। उन्होंने सवाल किया कि चंपत राय बताएं कि क्या रामानंद संप्रदाय अधूरे मंदिर में प्रतिष्ठा को शास्त्र सम्मत मानता है?

पहले उपेक्षा की अब उमड़ रहा प्रेम
शंकराचार्य ने रामानंद संप्रदाय की उपेक्षा का भी आरोप लगाया। कहा, चंपत राय का अब प्रेम उमड़ रहा है। रामानंद संप्रदाय के प्रति उनकी आस्था को इस बात से समझा जा सकता है कि रामानंद संप्रदाय निर्मोही अखाड़े के एक सदस्य को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रखा गया, लेकिन दूसरे को नाम मात्र का अध्यक्ष बनाकर बैठक के पहले दिन ही अभिलेखों पर हस्ताक्षर करने तक का अधिकार छीन लिया गया। शंकराचार्य ने कहा, राम मंदिर यदि रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों का है तो प्रतिष्ठा से पूर्व रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों को दे देना चाहिए। इस पर कोई आपत्ति नहीं होगी।

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