700 साल पुरानी परंपरा: उत्तर प्रदेश के वो 28 गांव... जहां होली नहीं, शोक मनाया जाता है

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Holi 2025: रायबरेली में एक ऐसी तहसील है, जिसके 28 गांव में होली नहीं खेली जाती, बल्कि शोक मनाया जाता है। यह क्षेत्र डलमऊ का है। इन गांवों के लोग होली पर्व के तीन दिन बाद होली मनाते हैं।

Holi 2025: होली का पावन त्यौहार करीब है। देशभर में होली सेलेब्रेट करने की तैयारियां जोरों पर है। शुक्रवार (14 मार्च ) को होली धूमधाम से मनाई जाएगी। होली मनाए जाने को लेकर देशभर में परम्पराएं भिन्न हो सकती हैं। लेकिन, उत्तर प्रदेश में होली के दिन एक ऐसी परंपरा प्रचलित है, जिसकी चर्चा होली आते ही शुरू ही जाती है। रायबरेली में एक ऐसी तहसील है, जिसके 28 गांव में होली नहीं खेली जाती, बल्कि शोक मनाया जाता है। यह क्षेत्र डलमऊ का है। इन गांवों के लोग होली पर्व के तीन दिन बाद होली मनाते हैं।

बताया जाता है कि डलमऊ में होली के दिन 28 गांवों में सन्नाटा पसरा होता है। लोग शोक में डूबे होते हैं और अपने-अपने घरों में रहते हैं। यह परंपरा 700 साल पुरानी बताई जाती है। मान्यता है कि होली के दिन राजा डालदेव वीरगति को प्राप्त हुए थे, तब से होली के दिन शोक मनाने की परंपरा आज भी चली आ रही है।

यहां जानें 700 साल पुरानी परंपरा
बता दें, कि 1321ई. में राजा डालदेव होली मना रहे थे। इस दौरान जौनपुर के राजा शाह शर्की की सेना ने डलमऊ के किले पर आक्रमण कर दिया। राजा डालदेव 200 सिपाहियों के साथ युद्ध के मैदान में कूद पड़े थे। शर्की की सेना और डालदेव की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ। चूंकि, शाह शर्की ने घात लगाकर हमला किया था, ऐसे में राजा डालदेव की सेना कमजोर पड़ गई। नतीजन, राजा डलदेव युद्ध करते हुए पखरौली गांव के पास वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

इस युद्ध में राजा डालदेव के 200 सैनिकों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। जबकि, शाह शर्की के दो हजार सैनिक मारे गए थे। डलमऊ तहसील क्षेत्र के 28 गांवों में होली आते ही उस घटना की यादें ताजा हो जाती हैं।

युद्ध में राजा के बलिदान के कारण 28 गांवों में आज भी तीन दिनों का शोक मनाया जाता है। रंगों का त्योहार आते ही डलमऊ की ऐतिहासिक घटना की याद ताजा हो जाती है, जिसके कारण लोग होली का आनंद नहीं लेते और शोक में डूबे रहते हैं।

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