रेवाड़ी विधानसभा सीट: कापड़ीवास के बिना भाजपा का सीट निकालना मुश्किल, फिक्स वोट बैंक से टिकट का दावा मजबूत

CM Naib Saini. Randhir Singh Kapriwas. Rao Indrajit Singh.
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सीएम नायब सैनी। रणधीर सिंह कापड़ीवास। राव इंद्रजीत सिंह। 
रेवाड़ी विधानसभा क्षेत्र में पिछले विधानसभा चुनावों में पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास की टिकट काटकर भाजपा ने एक सीट गंवा दी थी। इस बार सीट पर वापसी की राह आसान नहीं है।

नरेन्द्र वत्स, रेवाड़ी: रेवाड़ी विधानसभा क्षेत्र में पिछले विधानसभा चुनावों में पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास की टिकट काटकर भाजपा ने एक सीट गंवा दी थी। इस बार पार्टी में टिकट के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है, परंतु कापड़ीवास के बिना इस सीट पर वापसी की राह भाजपा के लिए आसान नहीं है। लगभग तीन दशक के लंबे राजनीतिक संघर्ष में कापड़ीवास ने इस हलके में अपना मजबूत जनाधार बनाया हुआ है। इसी जनाधार की बदौलत इस सीट पर उन्हें कांग्रेस को मात देने में सबसे सक्षम माना जाता है। टिकट को लेकर उनकी अनदेखी एक बार फिर भाजपा के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकती है।

कैप्टन अजय यादव के सामने रणधीर कापड़ीवास ने पेश की थी चुनौती

हलके में 1991 में पहली बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतने वाले कैप्टन अजय सिंह ने वर्ष 2014 तक लगातार 6 बार एक ही सीट और एक ही पार्टी से चुनाव जीतने का रिकॉर्ड कायम किया था। कैप्टन को सर्वाधिक चुनौती रणधीर सिंह कापड़ीवास ने ही पेश की थी। वर्ष 1996 व 2000 के विधानसभा चुनावों में निर्दलीय चुनाव लड़कर कापड़ीवास ने कैप्टन को सीधी टक्कर दी थी। इन दोनों चुनावों में कापड़ीवास को 20 हजार से अधिक वोट मिले थे। कापड़ीवास ने सामाजिक संस्था बनाकर इस क्षेत्र के लोगों को अपने साथ जोड़ने का काम किया था। वर्ष 2005 में जब भाजपा ने उन्हें टिकट दी, तो वह 36 हजार से अधिक वोट लेकर कैप्टन को कड़ी टक्कर देने में कामयाब हुए। 2009 में उन्हें मामूली झटका लगा। इन चुनावों में सतीश यादव दूसरे और कापड़ीवास तीसरे स्थान पर रहे, परंतु इसके बावजूद रणधीर 24 हजार से अधिक वोट ले गए थे। 2014 में कापड़ीवास ने भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ते हुए पहली बार कैप्टन को हार का अहसास कराया।

राव के साथ विरोध की राजनीति शुरू

कापड़ीवास और राव इंद्रजीत सिंह के बीच पहले विरोध की राजनीति हावी नहीं थी, परंतु गत विधानसभा चुनावों में टिकट कटने के बाद कापड़ीवास ने राव की जमकर मुखालफत करना शुरू कर दिया था। दो अन्य सीटिंग एमएलए संतोष यादव व राव नरबीर सिंह टिकट कटने के बाद चुनाव मैदान से हट गए थे, परंतु कापड़ीवास ने राव समर्थित प्रत्याशी को हराने के लिए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ताल ठोक दी थी। लगभग 37 हजार मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहते हुए उन्होंने राव समर्थित प्रत्याशी सुनील मुसेपुर की संभावित जीत को हार में बदल दिया था।

समय से पहले पार्टी से निष्कासन रद्द

कापड़ीवास को पार्टी के साथ बगावत करने के बाद 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया था। इस दौरान राव से पटरी नहीं बैठने वाले भाजपा के दिग्गज नेता उनसे मिलने के लिए आते रहे। लोकसभा चुनावों से ठीक पहले प्रदेशाध्यक्ष बदलते ही नायब सिंह सैनी ने कापड़ीवास की भाजपा में वापसी करा दी। उनकी वापसी के साथ ही यह साफ नजर आने लगा कि पार्टी इस बार रेवाड़ी सीट पर दमदार वापसी के लिए कापड़ीवास को एक बार फिर से मैदान में उतार सकती है। इस बार भी टिकट की जंग कापड़ीवास बनाम राव के बीच होनी तय है, जिसमें कापड़ीवास का पलड़ा हर स्तर पर भारी है।

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