हरियाणा में भी सभी राजनीतिक दलों ने आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए कमर कस ली है। प्रदेश में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ेगी, वहीं बीजेपी और जेजेपी के बीच गठबंधन को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि बीजेपी और जेजेपी मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ सकती है, वहीं कुछ का कहना है कि बीजेपी इस बार अकेले ही 2024 की परीक्षा देगी। खास बात है कि जेजेपी ने इसका फैसला एनडीए पर छोड़ दिया है। जेजेपी का कहना है कि अगर उनके मुताबिक सीटें नहीं मिलती है, तो प्रदेश की सभी दस लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारे जाएंगे। आइये जानने का प्रयास करते हैं कि जेजेपी इस दावे को हकीकत में बदल पाएगी या नहीं...

आत्मविश्वास की कसौटी पर पीछे दिख रही जेजेपी

जेजेपी की पांच सदस्यीय कमेटी एनडीए के शीर्ष नेतृत्व से सीटों के बंटवारे पर बातचीत करेगी। इस कमेटी को एक सप्ताह के भीतर यह रिपोर्ट पेश करनी होगी, जिसके बाद आगे का फैसला लिया जाएगा। विशेषकर जेजेपी दो से तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। विशेषकर हिसार और भिवानी-महेंद्रगढ़ सीटों पर दावेदारी की जा रही है। कारण यह है कि दुष्यंत चौटाला ने हिसार लोकसभा सीट से 2019 का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से जीत हासिल की थी। चूंकि दुष्यंत चौटाला अभी डिप्टी सीएम हैं, लिहाजा जेजेपी को उम्मीद है कि वे इस लोकसभा सीट पर भी जीत हासिल कर सकते हैं।

वहीं, भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट की बात करें तो यहां से बीजेपी सांसद धर्मबीर सिंह हैं। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के राजस्थान चले जाने के बाद पूर्व सांसद डा. सुधा यादव भी प्रबल दावेदार बताई जा रही हैं। धर्मबीर भले ही बीजेपी हाईकमान की पहली पसंद हैं, लेकिन चर्चाएं ये भी चल रही हैं कि उनका टिकट कट सकता है। मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर जेजेपी को उम्मीद है कि यह सीट जीतकर एनडीए को तोहफे में दे सकते हैं। 

सिरसा सीट पर पहले से घमासान 

बीजेपी ने हरियाणा में 2014 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। हजकां ने सिरसा और हिसार सीट पर चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। 2019 के लोकसभा चुनाव में यह दोनों सीटें इनेलो के पाले में चली गईं। इनेलो में टूट के बाद बनी जेजेपी ने हिसार और भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट पर तो दावा ठोंक दिया है, लेकिन सिरसा को लेकर कोई बयान सामने नहीं आया है। वजह यह है कि यहां पर कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे अशोक तंवर ने हाल में बीजेपी का दामन थाम लिया था। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी से सुनीता दुग्गल ने बाजी मारी थी। अब इस सीट पर पहले ही घमासान मची है, लिहाजा जेजेपी हिसार और भिवानी महेंद्रगढ़ सीट पर ही फोकस कर रही है।  

अकेले चुनाव लड़ने से बीजेपी रही फायदे में 

बीजेपी ने 2014 के मुकाबले 2019 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा था। इस चुनाव में बीजेपी ने सभी दस सीटें जीती थीं, वहीं 2014 के चुनाव में हजकां से गठबंधन करने के बावजूद सिर्फ 7 सीटें ही मिली थीं। यही कारण है कि बीजेपी यह चुनाव अकेले लड़ सकती है।  

'जेजेपी के अलग चुनाव लड़ने से बीजेपी को दोहरा फायदा' 

विपक्षी नेताओं की मानें तो बीजेपी और जेजेपी लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ना चाह रहे हैं। अगर दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं होता, तो भी बीजेपी को ही फायदा होगा क्योंकि जेजेपी लोकसभा चुनाव के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस के पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा ने भी पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि बीजेपी-जेजेपी मिलकर सरकार चला रहे थे, लेकिन अब अलग चुनाव लड़ रहे हैं ताकि वोट काट सकें।

जानकारों की मानें तो उनका इशारा यह था कि जेजेपी अगर अलग चुनाव लड़ती है, तो इनेलो और कांग्रेस के एक जाति विशेष के वोटों में बंटवारा हो जाएगा, जबकि बाकी जाति एकजुट होकर बीजेपी के लिए वोट करेंगे। इसका मतलब यह होगा कि बीजेपी आने वाले लोकसभा चुनाव में भी प्रचंड बहुमत हासिल कर सकती है।