नारनौल में अधूरे प्रबंध में ट्रामा सेंटर: स्टाफ की नहीं मिली अप्रूवल, ना मिली फायर एनओसी, शुभारंभ पर बना संशय  

Work going on in the trauma center.
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ट्रामा सेंटर में चल रहा कार्य। 
नारनौल में ट्रामा सेंटर भवन का निर्माण हो चुका है, लेकिन अभी भी कई कार्य अधूरे पड़े है। ट्रोमा सेंटर के लिए न स्टाफ की अप्रूवल मिली और न फायर एनओसी।

नारनौल: ट्रामा सेंटर भवन का निर्माण हो चुका है, लेकिन अभी भी ऐसे कई अधूरे कार्य है जो होने बाकी है। लिफ्ट का कार्य चल रहा है। फायर उपकरण लगा तो दिए, लेकिन अभी फायर एनओसी (NOC) नहीं मिली। डीजी सैट का कार्य अभी पेंडिंग है। बताया जा रहा है कि टेंडर हो गया है। ऑर्डर भी दिया जा चुका है, पर अभी सुचारू होने में समय लगेगा। उपकरण व फर्नीचर जरूर आ गए है। हैरानी की बात है कि ट्रामा सेंटर के लिए अभी तक स्टाफ की अप्रूवल तक नहीं मिली। बावजूद इसके वीरवार दिनभर चर्चा रही कि महेंद्रगढ़ में शुक्रवार को सीएम नायब सिंह सैनी के आवागमन के दौरान उनके हाथों नारनौल के ट्रामा सेंटर का शुभारंभ करवाया जा सकता है।

2019 में ट्रोमा सेंटर के लिए मंजूर हुई राशि

बता दें कि वर्ष 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने पूर्व मंत्री एवं विधायक ओमप्रकाश यादव की मांग पर नारनौल के नागरिक अस्पताल में ट्रामा सेंटर तथा 200 बैड का अस्पताल निर्माण करवाने की घोषणा की थी। फिर प्रदेश सरकार ने ट्रामा सेंटर (Trauma Centre) के लिए लगभग 656.41 लाख रुपए की राशि मंजूर की। मगर कोरोना महामारी के चलते लगे लॉकडाउन में टेंडर प्रक्रिया नहीं हो सकी। बाद में स्थिति सामान्य होने पर न केवल पीडब्ल्यूडी ने ट्रामा सेंटर भवन का ड्राफ्ट तैयार किया, बल्कि ड्राफ्ट स्वीकृत होने पर टेंडर प्रक्रिया भी पूरी की गई। भवन का निर्माण पीडब्ल्यूडी विभाग की निगरानी में किया गया, जो करीब दो साल पहले कर लिया गया था।

फायर ब्रिगेड ने लगा दी थी आपत्ति

पीडब्ल्यूडी की निगरानी में बेशक से ठेका कंपनी ने ट्रामा सेंटर का नया भवन तैयार कर दिया, लेकिन फॉयर ब्रिगेड ने इस पर ऑब्जेक्शन लगा दिया, क्योंकि इसमें फायर सेफ्टी का कहीं इंतजाम नहीं किया गया था। आगजनी की घटनाओं को देखते हुए सरकार ने नए भवनों में फायर सेफ्टी सिस्टम लगाना अनिवार्य किया हुआ है। फॉयर ब्रिगेड की आपत्ति के बाद पीडब्ल्यूडी ने पुन: टेंडर छोड़ा और फायर सेफ्टी (Fire Safety) सिस्टम लगाया। बाद में फायर सिस्टम लगाने के कारण अस्पताल के भवन में भद्दापन साफ नजर आने लगा। फायर सेफ्टी के पाइप अब दीवारों के अंदर नहीं, बल्कि खुले में साफ नजर आते हैं।

अगर ट्रोमा सेंटर शुरू होता है तो यह होगा फायदा

नागरिक अस्पताल (Civil Hospital) में पर्याप्त संसाधन नहीं होने के कारण गंभीर घायलों को चिकित्सकों द्वारा प्राथमिक उपचार देकर हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है, जिसके चलते अनेक लोग तो मरीजों को निजी अस्पतालों में ले जाते हैं। वहीं गरीब तबके के लोग पीजीआई रोहतक या एसएमएस जयपुर ले जाने को मजबूर होते हैं। कई मरीज खासकर घायल तो उपचार के अभाव में रेफर करने पर बीच रास्ते में ही दम तोड़ जाते हैं। इस ट्रामा सेंटर के बनने से इस समस्या से छुटकारा मिलने की संभावना है।

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