दिल्ली के लैंडफिल साइट्स के हालात बदतर: कम होने की जगह बढ़ रही पहाड़ की लंबाई, रिपोर्ट ने बढ़ाई टेंशन

Ghazipur Landfill Site NGT Report
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गाजीपुर लैंडफिल साइट को लेकर एनजीटी में रिपोर्ट पेश।
Delhi Landfill Sites: दिल्ली का गाजीपुर लैंडफिल साइट को लेकर रिपोर्ट पेश की गई है, जिसमें चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। इसके बाद एनजीटी ने एमसीडी से रिपोर्ट मांगी है।

Delhi Landfill Sites: दिल्ली की पूर्व सरकार की तरफ से दावा किया जा रहा था कि दिल्ली के लैंडफिल साइट्स का कूड़ा कम हो गया है और 2028 तक लैंडफिल साइट्स खत्म हो जाएंगी। हालांकि गाजीपुर इलाके की लैंडफिल साइट्स को लेकर आई रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा नियुक्त की गई कोर्ट कमिश्नर और अधिवक्ता कात्यायनी की हालिया रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।

रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे

रिपोर्ट में बताया गया है कि 'गाजीपुर में स्थित लैंडफिल साइट की निर्धारित सीमा 40 मीटर थी, लेकिन इस लैंडफिल साइट पर कूड़े की लंबाई बढ़कर 60 मीटर हो गई है। वहीं कूड़ा निस्तारण की स्थिति भी बदतर हो गई है।' रिपोर्ट देखने के बाद एनजीटी ने माना कि दिल्ली नगर निगम ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियमों का उल्लंघन किया है। इसके बाद NGT के चेयरमैन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने MCD को कूड़ा निस्तारण के संबंध में समयबद्ध योजना तैयार कर पेश करने के निर्देश दिए हैं।

NGT ने MCD को दिए ये निर्देश

NGT की तरफ से MCD को ये निर्देश भी दिए गए हैं कि सॉलिड वेस्ट नियमों के तहत अधिकतम अनुमति से ज्यादा कूड़ा लैंडफिल साइट पर इकट्ठा न किया जाए। इसके कारण स्वास्थ्य संबंधित खतरे हो सकते हैं और बार-बार आग लगने की स्थिति बढ़ जाती है। हालांकि ऐसी घटनाओं की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए तैयारी की जाएंगी। इसके लिए उचित बायोमाइनिंग और प्रबंधन योजना को अमल में लाया जाएगा। इस मामले में अगली सुनवाई 10 जुलाई को होगी। बता दें कि हाल ही में गाजीपुर की लैंडफिल साइट पर आग लग गई थी, जिस पर संज्ञान लेते हुए एनजीटी स्वत: सुनवाई कर रहा है।

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रिपोर्ट में सामने आईं मुख्य जानकारियां

  • रिपोर्ट में सामने आया है कि साल 2019 में गाजीपुर के पहाड़ पर 100 लाख मीट्रिक टन कूड़ा था, जो अब घटकर 85 लाख मीट्रिक टन हो चुका है। लेकिन जांच के दौरान इसका कोई दस्तावेज नहीं मिला।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि लैंडफिल साइट्स पर मीथेन वेंट लगाए गए हैं। हालांकि मीथेन को इकट्ठा करने की व्यवस्था बनाई गई, जिसके कारण इसे सीधे हवा में छोड़ दिया जाता है।
  • MCD की तरफ से दावा किया गया था कि लैंडफिल साइट पर पांच एकड़ जमीन को हासिल किया गया है। हालांकि पूछताछ के समय कोई सीधा जवाब नहीं मिला। इसको लेकर रिपोर्ट में लिखा गया कि MCD द्वारा किया गया दावा गलत है, कोई भूमि हासिल नहीं की गई।

जांच अधिकारी (कोर्ट कमिश्नर ने दिए सुझाव)

  • कोर्ट कमिश्नर द्वारा सुझाव दिया गया है कि दो महीने में लैंडफिल साइट्स के चारों तरफ चारदीवारी मजबूत की जाएं।
  • अनधिकृत डंपिंग को रोकने के लिए निगरानी और सुरक्षा चौकियां बनाई जाएं।
  • पांच महीने के अंदर अपशिष्ट से ऊर्जा (वेस्ट टू एनर्जी) सुविधाओं का विस्तार किया जाए।
  • साथ ही मौजूदा WTE प्लांट्स की प्रोसेसिंग क्षमता को बढ़ाया जाए।
  • तीन महीने के अंदर पर्यावरण सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करते हुए फ्लाई ऐश और बाटम ऐश के निरंतर परीक्षण के लिए आधुनिक प्रयोगशालाएं बनाई जाएं।
  • एक महीने के अंदर कूड़ा निस्तारण करने के बाद निकली मिट्टी को परीक्षण के बाद सड़क बनाने, सीमेंट और ईंट बनाने में इस्तेमाल किया जाए।
  • इसके अलावा लैंडफिल साइट्स पर काम करने वाले कर्मचारियों को व्यापक स्वास्थ्य बीमा, नियमित मेडिकल जांच और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण प्रदान किए जाएं।

डंप साइट से निकला पानी बढ़ाता है प्रदूषण

बता दें कि अगर बारिश का पानी किसी डंप साइट में कचरे से होकर गुजरता है, तो वो गाद बन जाता है। इन्हीं गाद का दूषित पानी पानी नालों से होते हुए यमुना में पहुंचता है। जब गाद जमा करके कचरे के संपर्क में आता है, तो उससे खतरनाक केमिकल रिलीज होते हैं, जिससे नदी का प्रदूषण बढ़ने के साथ ही आस-पास के इलाकों में भी प्रदूषण का खतरा बढ़ जाता है।

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