आस्था का सैलाब : अच्छी फसल और मन्नत पूरी होने पर पशुओं की बलि

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तीन वर्ष में एक बार गांडा देव, गजा देव, धारणी देवी व भैरम देव की पूजा के लिए टलनार में मेला लगता है। वहीं प्रति वर्ष दुलारदेई व बंसती माता का मेला लगता है।

राजेश दास - जगदलपुर। बकावण्ड ब्लॉक का टलनार एक ऐसा गांव, जहां तीन वर्ष में एक बार जात्रा मेला और हर वर्ष एक मेला लगता है। इसके लिए ग्रामवासी स्वयं अपना बजट तैयार करते हैं। हर परिवार अपनी सहभागिता निभाते हुए सहयोग राशि जमा करता है। मेले में दूरदराज से लोग आते हैं और मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर ग्रामीण बलि पूजा में शामिल होते हैं। जात्रा मेले में ग्रामीणों व पशुओं पर किसी तरह का संकट न आए और अच्छी फसल के उद्देश्य से देवों व देवियों का आह्वान किया जाता है। कई दफे ऐसा भी होता है कि मन्नत मांगने के कुछ ही समय में उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है, जिसके बाद वार्षिक पूजा में शामिल होकर भक्तिभाव से पूजा अर्चना करते हैं। कहते हैं कि जमीन जायदाद विवाद, कोर्ट कचहरी की दिक्कतें, चोरी आदि के शिकायत की अपील देवी, देवताओं से की जाती है। इसके बाद देवी-देवता इस पर अपना न्याय देते हैं, जो सभी को मान्य होता है।

अटके काम पूरी होने पर श्रद्धालु धारणी देवी की पूजा अर्चना करते हैं। मुख्य पुजारी भजन व सहायक पुजारी बनसिंह व ग्राम प्रमुखों ने बताया कि, तीन वर्ष में एक बार गांडा देव, गजा देव, धारणी देवी व भैरम देव की पूजा के लिए टलनार में मेला लगता है। वहीं प्रति वर्ष दुलारदेई व बंसती माता का मेला लगता है। इसमें दूरदराज से श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ती के लिए आते है और मन्नत पूरी होने के बाद श्रद्धाभाव से बलि पूजा में शामिल होकर हर संभव सहयोग करते है।टलनार में प्रति वर्ष व तीन वर्ष में एक बार होने वाले पूजा में शामिल होने के लिए टलनार व आसपास के दर्जनों गांव के अलावा पड़ोसी जिला व राज्यों से भी श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस वर्ष पूजा में शामिल होने कोंडागांव, बारसुर, आमाबाल, नवरंगपुर ओडिशा, जगदलपुर व उत्तरप्रदेश से कोंडागांव, बारसुर, आमाबाल, नवरंगपुर ओडिशा, जगदलपुर व उत्तरप्रदेश से श्रद्धालु मनोकामना पूरी होने के बाद पूजा में शामिल होने पहुंचे थे।

ग्रामीणों का अपना बजट

प्रति वर्ष व तीन वर्ष में लगने वाले जातरा पूजा के लिए गांव के प्रमुखों द्वारा बैठक कर बजट बनाया जाता है। बजट के अनुरूप सभी परिवारों को एक निश्चित राशि जमा करना होता है, जिसके बाद बलि व पूजा की व्यवस्था की जाती है। हालांकि आर्थिक रूप से सम्पन्न ग्रामीण सहयोग राशि में 5 सौ से 1 हजार रुपए तक देते है, लेकिन बजट के अनुसार सभी परिवार को लगभग 1 सौ रुपए बजट समिति के पास जमा करना होता है।

पुरानी परंपरा व आस्था के अनुरूप

पुरानी परंपरा व आस्था के अनुरूप प्रतिवर्ष देवी व देवताओं का आह्वान कर पूजा-अर्चना कर बलि दी जाती है। यह बातें गांव के प्रमुख धारणी पुजारी भजन, माता मंदिर पुजारी मनसिंह, मां दुलारदेई मंदिर के पुजारी बनसिंह व ग्राम प्रमुख वनवासी सेठिया, श्यामलाल मांझी, गंगाराम कश्यप, नरसिंह पुजारी, जानकीराम भारती, तुलाराम भारती, संजय सेठिया, बली राम, दशरू राम, सगराम सिन्हा, बलिराम, सुधन, नंदोराम नाग, वासुदेव, गंगाराम, राजिम सेठिया, मधुराम कही।

एक साथ प्रसाद ग्रहण करते हैं

तीन साल में एक बार होने वाले जातरा पूजा के दौरान मनोकामना पूर्ति के लिए सैकड़ों की संख्या में बलि दी जाती है। श्रद्धालु अपनी आर्थिक स्थिति के अनुरूप बकरा, सुअर, बतख, मुर्गी व कबूतर की बलि देते है।

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