Logo
election banner
अस्त-व्यस्त जीवनशैली, ओवर वर्कप्रेशर, टेंशनफुल शेड्यूल या डिजिटल वर्ल्ड में जरूरत से ज्यादा बिजी रहने की वजह से आजकल हर उम्र के लोग अकेलेपन का शिकार होने लगे हैं। इससे बचने के लिए आपको यहां बताई जा रही बातों पर जरूर ध्यान देना चाहिए।

Lonelyless: अकेलापन एक मौलिक मानवीय भाव है। जैसे हम भूख-प्यास का अनुभव करते हैं, वैसे ही कभी-कभी अकेलेपन का भी अनुभव करते हैं। अकेलापन तब होता है, जब भीड़ का हिस्सा होने के बावजूद व्यक्ति का दूसरों के साथ कोई सार्थक संबंध नहीं हो पाता। जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप मस्तिष्क की कोशिकाओं में अलगाव महसूस होने लगता है। इस वजह से तनाव या अवसाद से घिर जाता है।
 
अकेलेपन के प्रकार
अकेलापन कई प्रकार का हो सकता है। सामाजिक रिश्तों में सामंजस्य की कमी होने से भावनात्मक अकेलापन उत्पन्न होता है। ऐसा व्यक्ति समाज के बीच, लोगों से घिरे होने के बावजूद अपने को अकेला महसूस करता है। कुछ व्यक्ति परिवार, समाज से कटकर अपनी इच्छा से अकेले रहने लगते हैं। एक-दूसरे से मिलने-जुलने का सिलसिला खत्म हो जाता है। इसे स्वैच्छिक अकेलापन कहते हैं। जीवन की चुनौतियों या समस्याओं में उलझने से कई बार तनावपूर्ण अकेलापन उत्पन्ना हो जाता है। 

अकेलेपन के दुष्प्रभाव
'द हीलिंग पॉवर ऑफ ह्यूमन कनेक्शन इन वर्ल्ड' के लेखक डॉ. विवेक एच मूर्ति का मानना है, कि अकेलापन साइलेंट किलर की तरह व्यक्ति को कई प्रकार की शारीरिक-मानसिक बीमारियों का शिकार बनाता है। अकेलेपन के शिकार व्यक्ति की जीवनशैली और खान-पान में बदलाव आ जाते हैं। व्यक्ति अनियमित दिनचर्या, जंक या फास्ट फूड का सेवन, आरामपरस्ती, तंबाकू-एल्कोहल का सेवन जैसी गलत आदतों का आदी हो जाता है। अकेलापन शरीर में कॉर्टिसोल हार्मोन को ट्रिगर करता है, जिसकी वजह से इम्यून सिस्टम कमजोर होने लगता है। व्यक्ति को कम उम्र में ही मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, लकवा जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है। अकेले होने पर व्यक्ति अपने मन की बात या समस्याएं किसी से शेयर नहीं कर पाते। इससे उनमें भावनात्मक असंतुलन और नकारात्मकता देखने को मिलती है। ब्रेन में न्यूरांस की सक्रियता कम हो जाती है। ब्रेन की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं। शुरुआत में व्यक्ति को अनिद्रा, तनाव, डिप्रेशन, एंग्जाइटी भूलने की बीमारी या अन्य मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। अकेलापन बढ़ने पर व्यक्ति में साइकोटिक सिंप्टंप्स दिखने लगते हैं। कई व्यक्ति आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते हैं।
  
उपचार के तरीके
व्यक्ति की स्थिति के आधार पर उपचार किया जाता है। अकेलापन महसूस होने पर व्यक्ति को अपने दायरे से बाहर आने, दूसरों से बात करने, मिलने-जुलने की खुद कदम उठाने चाहिए। बिना देर किए मनोचिकित्सक से संपर्क करें। वे व्यक्ति की काउंसलिंग करके समस्या की जड़ का पता लगाते हैं और समुचित उपचार करते हैं। जरूरत पड़ने पर उसके करीबियों और दोस्तों की मदद ली जाती है।
  
ऐसे करें अपना बचाव
अकेलेपन से बचने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति अपने में बदलाव लाए। 
1. खुद से प्यार करें। अपने चीयरलीडर बनें, आत्मविश्वास विकसित करें, तभी अंतर्मुखी व्यक्तित्व से बाहर आ पाएंगे और दूसरों के साथ तालमेल बिठा पाएंगे।  
2. स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। सरकेडियम रिदम का अनुपालन करें यानी सोना-जागना, खाना, व्यायाम और काम नियत समय पर करें।
3. इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए पौष्टिक और संतुलित आहार का सेवन करें। स्वस्थ आहार अकेलापन दूर कर ‘फील गुड’ का एहसास कराने में भी सहायक है।
4. इमोशनल हेल्थ पर ध्यान दें। अपने विचार और भावनाओं को समझें। सकारात्मक रवैया अपनाएं। अपने जीवन में बदलाव लाने के लिए निरंतर सक्रिय रहें।
5. सपोर्टिव-सोशल नेटवर्क कायम करें। परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताएं। निजी या सामाजिक सरोकारों के लिए एक-दूसरे का सहयोग और भावनात्मक समर्थन लें। संबंधों में मजबूती बनाने और अकेलापन कम करने के लिए लगातार कोशिश करते रहें।
6. सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स बढ़ाने के बजाय नए दोस्त बनाएं, समय निकाल कर नए-पुराने दोस्तों के साथ मिलते-जुलते रहें। 
7. खुद को मनपसंद एक्टिविटी में बिजी रखने की कोशिश करें। व्यस्त दिनचर्या के बावजूद रोजाना ना सही, सप्ताहांत में कुछ समय ऐसे कामों के लिए जरूर निकालें, जो आपकी पसंद के हों। 
8. मानसिक डिटॉक्सीफिकेशन भी जरूरी है। रोज रात 9 बजे के बाद और सप्ताह में कम से कम एक दिन मोबाइल से दूरी बनाएं। म्यूजिक, डांस, पेंटिंग, कुकिंग, पढ़ना-लिखना, घूमना, मेडिटेशन जैसे दूसरे कार्यों में खुद को व्यस्त करें।
9. रोजाना रात को सोने से पहले आत्ममंथन करें। दिन भर का लेखा-जोखा बनाएं। अच्छे कामों के लिए खुद को सराहें। 
10. रात को अपनी परेशानियों, दूसरों से मन-मुटाव या मानसिक उधेड़बुन को पेपर पर लिखें। बिना पढ़े पेपर को फाड़ दें या जला दें। इससे मन शांत होगा, नींद अच्छी आएगी और अगली सुबह नई स्फूर्ति से दिन की शुरुआत कर पाएंगे।  

क्या बताते हैं आंकड़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में 5 से 15 प्रतिशत युवा और किशोर अकेलेपन से उपजी गंभीर मानसिक समस्याओं से ग्रसित हैं। स्कॉटलैंड की ग्लासगो यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक अकेलेपन के कारण लोगों में समय से पहले मौत का खतरा 39 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। परिवार या दोस्तों से मेल-जोल ना रखने से दिल की बीमारी का खतरा 53 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। जबकि ब्रिटेन में हुई स्टडी यह दावा करती है कि तकरीबन 77 फीसदी अकेले रहने वाले लोगों को असमय मौत का सामना करना पड़ता है। भारत में युवाओं की अपेक्षा उम्रदराज लोगों में अकेलेपन का खतरा ज्यादा होता है। 45 साल या बड़ी उम्र के 20 प्रतिशत लोग महसूस करते हैं कि वे अकेले हैं। भारत में तकरीबन 1.5 करोड़ बुजुर्ग अकेले हैं।

(यह जानकारी फोर्टिस एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट, दिल्ली की मनोचिकित्सक डॉ. भावना बर्मी और स्वास्तिक क्लीनिक दिल्ली के मनोचिकित्सक डॉ. रोहित शर्मा से बातचीत पर आधारित है।)

रजनी अरोड़ा  

5379487