'मृत्युदंड पर गंभीरता बरतें अदालत': सुप्रीम कोर्ट ने पलटा उत्तराखंड हाईकोर्ट का फैसला; दुष्कर्म के आरोपी बरी
सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म और हत्या के आरोपियों को बरी कर दिया। साथ ही अधिनस्थ न्यायालयों को मृत्युदंड पर सख्त मानक दोहराए जाने की सलाह दी है।
दुष्कर्म-हत्या केस: मृत्युदंड की सजा रद्द, सुप्रीम कोर्ट का निचली अदालतों को सुझाव
POCSO Act Supreme Court Judgement: सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग लड़की से यौन उत्पीड़न और हत्या के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। आरोपियों की मृत्युदंड की सजा रद्द कर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कहा, मृत्युदंड जैसी कठोर सजा तभी दी जाए जब अभियोजन पक्ष निर्दोषता की सभी संभावनाओं को नकारने वाले पुख्ता सबूत प्रस्तुत करे।
जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने निचली अदालतों के फैसले को रद्द करते हुए दोनों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया। 11 मार्च, 2016 को विशेष पॉक्सो अदालत और 18 अक्टूबर, 2019 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मामले में आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी।
क्या है पूरा मामला?
घटना 2014 की है। उत्तराखंड के काठगोदाम में एक विवाह समारोह के दौरान नाबालिग लड़की का कथित अपहरण और यौन उत्पीड़न हुआ। इसके बाद उसकी मृत्यु हो गई। कोर्ट ने अख्तर अली को मृत्युदंड और प्रेम पाल वर्मा को 7 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अब दोनों आरोपियों को बरी करते हुए कहा, सबूतों की कमी, वैज्ञानिक साक्ष्यों में खामियां और अंतिम बार देखे जाने की थ्योरी में विरोधाभास मिला है। जिस कारण दोषसिद्धि को बनाए रखना पूरी तरह असुरक्षित है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980) और मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य (1983) के फैसलों का हवाला देते हुए कहा, मृत्युदंड तभी देना उचित है, जब अभियोजन पक्ष द्वारा निर्विवाद सबूत प्रस्तुत किए गए हों।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जब तक साक्ष्य परिस्थितियों की अटूट और निर्णायक श्रृंखला नहीं बनाते, तब तक मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए। जब दो व्याख्याएं संभव हों तो आरोपी के पक्ष में व्याख्या को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
कोर्ट ने बताई अभियोजन पक्ष की कमियां
सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की खामियों पर सवाल उठाए। कहा, वारदात के मकसद को लेकर ठोस या स्वतंत्र साक्ष्य पेश नहीं किए गए। अंतिम बार देखे जाने की थ्योरी भी सत्यापित नहीं की जा सकी। डीएनए रिपोर्ट संदिग्ध और खामियों से ग्रस्त है। मोबाइल लोकेशन रिकॉर्ड से मेल नहीं खाता। महत्वपूर्ण गवाहों से पूछताछ नहीं की गई।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कानूनी महत्व
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए पुनः स्पष्ट किया कि मृत्युदंड का जल्दबाजी में या यांत्रिक रूप से उपयोग न्याय की विफलता है। प्रक्रियात्मक निष्पक्षता और साक्ष्यों की गुणवत्ता सर्वोपरि है। मनोज बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022) में दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन अनिवार्य है।