यूपी पंचायत चुनाव: सपा का 'मास्टरस्ट्रोक' या आंतरिक फूट का डर? पार्टी ने क्यों नहीं उतारेगी आधिकारिक प्रत्याशी!

समाजवादी पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनाव को साधने के लिए 'उल्टा पिरामिड' रणनीति अपनाई है। इसी के तहत, पार्टी ने पंचायत चुनाव में फूट से बचने के लिए आधिकारिक प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है।

Updated On 2025-10-14 08:06:00 IST

सपा का मानना है कि दलितों पर अत्याचार के मामलों को प्रमुखता से उठाकर वह अपने पीडीए (PDA) फार्मूले को दलितों के बीच मजबूती से स्थापित कर सकती है।

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी पंचायत चुनावों को लेकर समाजवादी पार्टी ने एक बड़ा और रणनीतिक फैसला लिया है। पार्टी ने यह तय किया है कि वह ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी) और जिला पंचायत सदस्य के पदों के लिए आधिकारिक तौर पर किसी भी उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारेगी। सपा के इस कदम के पीछे की मुख्य वजह पार्टी के भीतर किसी भी तरह की फूट या आंतरिक कलह से बचना है।

दरअसल, पंचायत चुनाव स्थानीय स्तर पर लड़े जाते हैं और एक ही पद के लिए अक्सर पार्टी के कई कार्यकर्ता दावेदार होते हैं। ऐसे में अगर पार्टी किसी एक को अपना आधिकारिक समर्थन देती है, तो बाकी कार्यकर्ता और उनके समर्थक नाराज हो सकते हैं। पार्टी नेताओं का मानना है कि पंचायत चुनाव में किसी एक कार्यकर्ता का समर्थन करना आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए ठीक नहीं होगा, क्योंकि इससे एकजुटता प्रभावित हो सकती है। इस निर्णय के माध्यम से सपा ने अपने सभी कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने की खुली छूट दी है, जिससे उनकी सक्रियता भी बनी रहेगी और पार्टी की एकता पर आंच भी नहीं आएगी।

हालांकि, यह निर्णय केवल सीधे चुनाव लड़े जाने वाले पदों के लिए है। पार्टी की रणनीति उन कार्यकर्ताओं पर केंद्रित रहेगी जो क्षेत्र पंचायत सदस्य या जिला पंचायत सदस्य के रूप में चुनाव जीतकर आएंगे। इन जीते हुए सदस्यों को आधार बनाकर सपा ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों के लिए अपनी आगे की रणनीति तैयार करेगी। पार्टी की ओर से इस रणनीति का आधिकारिक खुलासा अभी तक नहीं किया गया है, लेकिन यह साफ है कि सपा पंचायत चुनाव के परिणाम को अपनी भावी राजनीतिक बिसात बिछाने के लिए इस्तेमाल करेगी।

अखिलेश का आकाश आनंद पर सीधा हमला - आक्रामक रणनीति का संकेत

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का बहुजन समाज पार्टी के नेता आकाश आनंद पर सीधा हमला, राज्य की राजनीति में सपा की बदली हुई और आक्रामक रणनीति की ओर इशारा करता है। अखिलेश ने अपने 'एक्स' अकाउंट पर टिप्पणी करते हुए भारतीय जनता पार्टी और बसपा के बीच अंदरूनी सांठगांठ का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने यहा तक कहा कि बसपा के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद की ज़रूरत भाजपा को अधिक है।

यह हमला इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि आकाश आनंद को बसपा सुप्रीमो मायावती के भतीजे और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता है। यह हमला मायावती की उस रैली के कुछ दिनों बाद हुआ, जिसमें उन्होंने 9 अक्टूबर को लखनऊ में सपा के 'पीडीए' अभियान पर तीखा निशाना साधा था।

आपको बता दें कि सपा और बसपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था, लेकिन उसके बाद से अखिलेश यादव मायावती या उनके परिवार के सदस्यों पर सीधे राजनीतिक हमले करने से बचते रहे थे। आकाश आनंद पर की गई टिप्पणी ने स्पष्ट कर दिया है कि सपा अध्यक्ष अब बसपा पर सीधे और मुखर राजनीतिक हमले करने के मूड में हैं।

2027 चुनाव को साधने के लिए दलित वोट बैंक पर सपा का फोकस

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव की यह आक्रामक रणनीति 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बनाई गई है। सपा अच्छी तरह समझती है कि राज्य की सत्ता तक पहुंचने के लिए दलित मतदाताओं का साथ निर्णायक होगा। दशकों तक दलित वोट बैंक पर बसपा का एकतरफा दबदबा रहा है, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में भाजपा ने इस वोट बैंक में सफलतापूर्वक सेंध लगाई है।

2024 के लोकसभा चुनाव में, सपा भी दलितों का वोट पाने में कामयाब रही थी, जिससे पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ा है। इसी सफलता से उत्साहित होकर, अखिलेश यादव ने अब पार्टी नेताओं को दलित समुदाय के बीच अपनी सक्रियता और पैठ बढ़ाने का स्पष्ट संदेश दिया है। इसके तहत, पार्टी ने न केवल दलितों के बीच काम करने का फैसला किया है, बल्कि दलितों पर होने वाले किसी भी अत्याचार या शोषण के मामले को प्रमुखता से उठाने की रणनीति भी अपनाई है। रायबरेली में वाल्मीकि युवक की हत्या के मामले को सपा द्वारा प्रमुखता से उठाना इसी नई रणनीति का ताज़ा उदाहरण है।

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