बिहार विधानसभा चुनाव: क्या BJP दोहराएगी 'यूपी मॉडल'? केशव प्रसाद मौर्य को मिली बड़ी जिम्मेदारी

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सह-प्रभारी नियुक्त किया गया है। भाजपा ने यह कदम पिछड़े समुदायों को साधने के लिए उठाया है, जहां जातीय समीकरण निर्णायक होते हैं।

Updated On 2025-09-26 08:58:00 IST

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को बिहार विधानसभा चुनाव में बतौर सह प्रभारी नियुक्त किया गया है।

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सह-प्रभारी नियुक्त करके भाजपा ने एक बड़ा चुनावी दांव चला है। पार्टी का लक्ष्य है कि मौर्य के संगठनात्मक कौशल और पिछड़े वर्ग में उनकी मजबूत पकड़ का इस्तेमाल कर बिहार में भी 'यूपी मॉडल' की सफलता को दोहराया जाए। यह नियुक्ति सिर्फ बिहार की चुनावी रणनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी राजनीतिक निहितार्थ भी हैं, जिसमें मौर्य को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना और उत्तर प्रदेश में 2027 के चुनाव की जमीन तैयार करना शामिल है।

पिछड़े समुदायों को साधने की BJP की रणनीति

भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य को बिहार चुनाव का सह-प्रभारी बनाकर स्पष्ट संकेत दिया है कि उसकी मुख्य रणनीति पिछड़े (OBC) समुदायों को एकजुट करना है। उत्तर प्रदेश और बिहार, दोनों राज्यों की राजनीति में ओबीसी जातियों की भूमिका निर्णायक मानी जाती है। मौर्य स्वयं पिछड़े वर्ग से आते हैं और उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए ही भाजपा ने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। पार्टी का मानना है कि उनकी यह पहचान और अनुभव बिहार के जातीय समीकरणों में भाजपा को लाभ पहुंचाएगा। यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के 'पीडीए' (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण की धार को बिहार में भी कुंद करने की कोशिश है।

बिहार में 'यूपी मॉडल' दोहराने का लक्ष्य

भाजपा केशव प्रसाद मौर्य के संगठनात्मक कौशल और चुनावी अनुभव का इस्तेमाल करके बिहार में भी 'यूपी मॉडल' की सफलता को दोहराना चाहती है। 'यूपी मॉडल' से तात्पर्य उस चुनावी रणनीति से है, जिसके तहत भाजपा ने उत्तर प्रदेश में एक मजबूत सामाजिक और संगठनात्मक आधार तैयार किया और शानदार बहुमत हासिल किया। मौर्य का लंबा संगठनात्मक अनुभव, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और विश्व हिन्दू परिषद (VHP) से लेकर पार्टी संगठन तक फैला है, उन्हें जमीनी स्तर पर चुनावी रणनीति बनाने में माहिर बनाता है। पार्टी को उम्मीद है कि वह बिहार में भी भाजपा के लिए, विशेष रूप से पिछड़े समाज का, एक बड़ा वोट बैंक खड़ा करने में सफल होंगे, जैसा कि उन्होंने यूपी में किया था।

राष्ट्रीय राजनीति में केशव प्रसाद मौर्य का बढ़ता कद

यह नियुक्ति केवल बिहार चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे केशव प्रसाद मौर्य को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। मौर्य पहले भी महाराष्ट्र, बंगाल और राजस्थान जैसे राज्यों के चुनावों में भाजपा के लिए प्रचार कर चुके हैं। 2019 के महाराष्ट्र चुनाव में उनके सह-प्रभारी रहते हुए भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने बहुमत हासिल किया था। यदि बिहार में भी भाजपा की चुनाव में स्थिति मजबूत होती है, तो इससे राष्ट्रीय राजनीति में मौर्य का कद और अधिक बढ़ेगा। पार्टी नेतृत्व इस जिम्मेदारी के माध्यम से उन्हें एक अखिल भारतीय नेता के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहता है, जिससे उनका प्रभाव उत्तर प्रदेश की सीमाओं से बाहर भी फैले।

2027 के यूपी विधानसभा चुनाव पर असर

बिहार की जिम्मेदारी केशव प्रसाद मौर्य की स्थिति को भाजपा के भीतर और अधिक मजबूत करेगी, जिसका सीधा फायदा 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी होगा। बिहार में मिली सफलता मौर्य के राजनीतिक आधार को और पुख्ता करेगी और पार्टी के भीतर उनका महत्व बढ़ेगा। इससे यूपी में नेतृत्व के समीकरणों पर भी अप्रत्यक्ष रूप से असर पड़ सकता है, जहां वह पहले से ही उपमुख्यमंत्री हैं। राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा दिया गया यह बड़ा दायित्व, यूपी की राजनीति में उनके महत्व को रेखांकित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि उनका प्रभाव पार्टी के निर्णयों और भविष्य की रणनीतियों में बरकरार रहे।

केशव मौर्य का दृढ़ संकल्प: 'बिहार में फिर एक बार, एनडीए सरकार'

बिहार विधानसभा चुनाव का सह-प्रभारी बनाए जाने के बाद केशव प्रसाद मौर्य ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पार्टी नेतृत्व का आभार व्यक्त किया और बिहार में फिर से एनडीए की सरकार बनने का दृढ़ संकल्प दोहराया। उन्होंने लिखा कि वह संगठन के मार्गदर्शन और कार्यकर्ताओं के परिश्रम से मिलकर बिहार में "विकास को समर्पित कमल खिलाएंगे"। उनका यह बयान एनडीए गठबंधन के लिए इस चुनाव के महत्व को दर्शाता है और यह बताता है कि वह पूरी ऊर्जा और संगठनात्मक कौशल के साथ इस नई जिम्मेदारी को निभाने के लिए तैयार हैं। उनकी यह घोषणा बिहार में भाजपा की आक्रामक चुनावी रणनीति की शुरुआत मानी जा सकती है।


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