लोक आस्था का महासंगम: 36 घंटे का महाव्रत! जानिए क्या है 'नहाय-खाय' से 'पारण' तक, लोक आस्था के महापर्व छठ की अलौकिक प्रक्रिया
लखनऊ के लक्ष्मण मेला पार्क में छठ पूजा के लिए जोरदार तैयारियां चल रही हैं। अखिल भारतीय भोजपुरी सभा द्वारा यहां महिलाओं के लिए विशेष सुविधाओं और सुरक्षा के इंतजामों पर जोर दिया गया है।
मान्यता है कि छठी मैया अपने भक्तों की संतानों को आरोग्य, दीर्घायु और सौभाग्य प्रदान करती हैं।
लखनऊ : लौकिक जगत के प्रत्यक्ष देव, संपूर्ण सृष्टि के ऊर्जा के स्रोत भगवान सूर्य की चार दिवसीय उपासना का लोक महापर्व डाला षष्ठी का शुभारंभ आज से शनिवार को नहाय-खाय के साथ हो रहा है। चार दिवसीय महापर्व 28 अक्टूबर, मंगलवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न होगा।
इस दौरान श्रद्धालु 36 घंटे का सबसे कठिन निर्जला व्रत रखेंगे, जिसमें वे अन्न या जल का एक भी अंश ग्रहण नहीं करेंगे। संतान के स्वास्थ्य, सफलता और लंबी आयु की कामना के लिए रखा जाने वाला यह व्रत श्रद्धा, भक्ति, और शुद्धता का प्रतीक है। व्रती महिलाएं और पुरुष पूरी पवित्रता और कठोर संकल्प के साथ छठी मैया और भगवान भास्कर की आराधना कर उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।
नहाय-खाय से खरना तक शुद्धिकरण का विधान
चार दिनों तक चलने वाले इस महाव्रत का आरंभ नहाय-खाय के साथ होता है, जो शरीर और मन की शुद्धि का पहला चरण है। 25 अक्टूबर को व्रती पवित्र नदियों या जलाशयों में स्नान कर नए वस्त्र धारण करती हैं। इसके बाद पूरी शुद्धता और सात्विक तरीके से लौकी, चने की दाल और चावल का प्रसाद बनाकर ग्रहण किया जाता है, लौका-भात की यह परंपरा 36 घंटे के निर्जला व्रत के लिए शरीर को तैयार करती है।
पर्व का दूसरा दिन, 26 अक्टूबर, रविवार को खरना कहलाता है। खरना के दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ की खीर और रोटी बनाकर छठी मैया की पूजा की जाती है। व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करके ही अगले 36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत का संकल्प लेती हैं।
यह व्रत की वह कड़ी है जहा व्रती स्वयं को सांसारिक मोह और भोग से पूरी तरह अलग कर ईश्वर को समर्पित करती है। खरना का प्रसाद ग्रहण करने के साथ ही व्रतियों का लंबा उपवास शुरू हो जाता है।
36 घंटे का महाव्रत और अर्घ्य की अलौकिक परंपरा
छठ महापर्व का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान इसके तीसरे और चौथे दिन संपन्न होता है। 27 अक्टूबर, सोमवार की शाम को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा। खरना के बाद शुरू हुए 36 घंटे के निर्जला उपवास के दौरान, व्रती पवित्र नदी या सरोवर के घाट पर कमर तक पानी में खड़े होकर, बास के सूप और टोकरी में फल, ठेकुआ और विभिन्न प्रकार के पकवान सजाकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
यह अर्घ्य सूर्य देव के उस रूप को समर्पित है जो हर दिन अस्त होकर फिर से उदय होने का वचन देता है, जो जीवन चक्र की निरंतरता का प्रतीक है।
चौथा दिन, 28 अक्टूबर
मंगलवार को ऊषा अर्घ्य (उगते सूर्य को अर्घ्य) के साथ महापर्व का समापन होगा। व्रती रात भर घाट पर रहकर, अगले दिन भोर में सूर्योदय के समय पुनः पानी में खड़ी होती हैं और उगते हुए भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करती हैं। यह अर्घ्य स्वास्थ्य, सफलता और जीवन में नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर पारण करती हैं, जिसके साथ ही 36 घंटे का महाव्रत सफलतापूर्वक पूर्ण होता है।
संतान, आरोग्य और प्रकृति के सम्मान का पर्व
छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह शुद्धता, संयम और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का महापर्व है। यह व्रत संतान की लंबी आयु और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है। मान्यता है कि छठी मैया अपने भक्तों की संतानों को आरोग्य, दीर्घायु और सौभाग्य प्रदान करती हैं।
इस व्रत में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसुन, प्याज, और मांसाहारी भोजन पूर्णतः वर्जित होता है। व्रती सुखद शैय्या का त्याग कर फर्श पर शयन करते हैं और हर कार्य में शुद्धता बरतते हैं। इस बीच, महापर्व को देखते हुए देशभर में घाटों पर तैयारिया अंतिम चरण में हैं।
लखनऊ के लक्ष्मण मेला पार्क में विशेष छठ घाट की तैयारी
लखनऊ में छठ महापर्व के लिए लक्ष्मण मेला पार्क स्थित घाट पर विशेष व्यवस्थाए की जा रही हैं, जो शहर में पूर्वांचल की लोक आस्था का प्रमुख केंद्र है। अखिल भारतीय भोजपुरी समाज द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में छठ व्रती महिलाओं की सुविधा और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है। समिति ने महिलाओं के लिए अलग से कपड़े बदलने की व्यवस्था और अन्य बुनियादी सुविधाए सुनिश्चित की हैं।
इसके साथ ही, नगर निगम और जिला प्रशासन भी आयोजन को सफल बनाने के लिए पूरी तरह सक्रिय हैं। वे घाटों की साफ-सफाई, प्रकाश व्यवस्था, और सुरक्षा के कड़े इंतजामों में जुटे हुए हैं, ताकि हजारों श्रद्धालुओं को अर्घ्यदान में कोई असुविधा न हो और पर्व शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो सके।