बिहार चुनाव 2025: मायावती का 'एकला चलो' BJP के लिए खतरा? देखिये 1990 से 2020 तक बिहार में हाथी का ट्रैक रिकॉर्ड
मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सभी 243 सीटों पर अकेले लड़ने का बड़ा फैसला किया है। यह कदम राज्य के राजनीतिक समीकरणों को त्रिकोणीय बनाने की क्षमता रखता है। पार्टी ने फिलहाल 4 प्रत्याशियों (भभुआ, मोहनिया, रामगढ़, और करगहर के लिए) का ऐलान कर दिया है।
ऐतिहासिक रूप से, बसपा ने अविभाजित बिहार में 2000 के चुनाव में 5 सीटें जीतकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था।
पटना : बिहार विधानसभा चुनाव की गहमागहमी में उत्तर प्रदेश से सटी 19 सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। इन क्षेत्रों में बसपा प्रमुख मायावती की एंट्री ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है।
2020 में, इन 19 सीटों में से, बसपा ने भी एक सीट (चैनपुर) जीती थी, जिससे इस क्षेत्र में पार्टी की मौजूदगी साबित हुई थी। बसपा प्रमुख मायावती ने अकेले सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। उनका मुख्य फोकस यूपी से सटे चंपारण, सिवान, रोहतास, बक्सर, गोपालगंज और कैमूर जैसे क्षेत्रों पर है, जहाँ यूपी की राजनीति का सीधा असर दिखता है और दलित तथा अति पिछड़ा वर्ग के वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बसपा ने अपनी चुनावी रणनीति और उम्मीदवारों के चयन की जिम्मेदारी पार्टी के युवा चेहरे आकाश आनंद को सौंपी है। चर्चा है कि बसपा प्रमुख मायावती भी कुछ प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने के लिए बिहार आ सकती हैं। बसपा की सक्रियता ने दो मुख्य गठबंधनों के बीच होने वाली सीधी लड़ाई को तीन तरफा मुकाबले में बदल दिया है।
1990 से 2015- बिहार विधानसभा में बसपा के चुनावी सफ़र का लेखा-जोखा
बहुजन समाज पार्टी ने 1990 के दशक की शुरुआत में बिहार की राजनीति में कदम रखा और अगले ढाई दशकों तक चुनावी मैदान में बनी रही। इस लंबी अवधि में पार्टी का प्रदर्शन उतार-चढ़ाव भरा रहा, जहां उसने बड़ी सफलता भी हासिल की, वहीं कई चुनावों में उसे निराशा भी हाथ लगी।
बसपा ने अविभाजित बिहार में 1990 के विधानसभा चुनाव से अपनी भागीदारी शुरू की, लेकिन शुरुआती चुनाव में पार्टी को कोई सफलता नहीं मिली। पहली बार बसपा का खाता 1995 के चुनाव में खुला, जब उसने 2 सीटें जीतीं। इसके ठीक बाद वर्ष 2000 में, जो अविभाजित बिहार का अंतिम चुनाव था, पार्टी ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और कुल 5 सीटों पर जीत दर्ज की।
झारखंड के अलग होने के बाद, फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा ने 2 सीटें जीतीं। उसी साल नवंबर 2005 में जब राज्य में दोबारा चुनाव हुए, तो बसपा ने अपने प्रदर्शन में सुधार करते हुए 4 सीटें हासिल कीं। इस चुनाव में बसपा का वोट शेयर भी रिकॉर्ड 4.17% तक पहुंचा था, जो बिहार में उसकी सबसे मजबूत उपस्थिति थी।
हालांकि, इसके बाद से बसपा का ग्राफ लगातार गिरने लगा। 2010 विधानसभा चुनाव में पार्टी कोई भी सीट जीतने में विफल रही। यह गिरावट 2015 के चुनाव में भी जारी रही, जहाँ बसपा ने राज्य की सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा, लेकिन वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाई।
कुल मिलाकर, 1990 से 2015 तक के विधानसभा चुनावों में बसपा ने 13 सीटें जीतीं। पार्टी के प्रदर्शन का यह रिकॉर्ड दर्शाता है कि बिहार में उसका प्रभाव यूपी से सटे कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रहा, और यहां के राजनीतिक समीकरणों में उसका दखल छिटपुट ही रहा है। यह भी गौर करने लायक है कि बिहार में बसपा की बड़ी चुनौती यह रही है कि उसके विधायक जीतने के बाद अक्सर दल बदलकर सत्ताधारी गठबंधनों में शामिल हो जाते थे।
2020 बिहार विधानसभा चुनाव: बसपा के 'ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट' गठबंधन
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने मुख्य गठबंधनों (एनडीए और महागठबंधन) से अलग होकर, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में एक तीसरा मोर्चा बनाया था, जिसे ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट (GDSF) नाम दिया गया था। इस गठबंधन में कुल छह दल शामिल थे, जिन्होंने मिलकर बिहार की लगभग सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे।
गठबंधन में शामिल प्रमुख दलों में आरएलएसपी ने सबसे अधिक 104 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि बसपा ने 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। इसके अलावा, हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने 24 सीटों पर और पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव के समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक ने 25 सीटों पर किस्मत आजमाई थी। अन्य दो दल – सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) और जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) – को 5-5 सीटें मिली थीं।
चुनाव परिणाम इस गठबंधन के लिए निराशाजनक रहे। पूरे मोर्चे को मिलाकर केवल 6 सीटों पर ही जीत हासिल हो पाई। बसपा ने 80 सीटें लड़ने के बावजूद सिर्फ एक (1) सीट पर जीत दर्ज की थी। यह इकलौती जीत बसपा के विधायक मो. जमा खान ने कैमूर की चैनपुर सीट से हासिल की थी। बसपा का कुल वोट शेयर 1.49% रहा, जो उनकी उम्मीदों से काफी कम था। गठबंधन के सबसे बड़े दल आरएलएसपी को एक भी सीट नहीं मिली। हालांकि, AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र में अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए 5 सीटें जीतकर गठबंधन में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी। चुनाव के बाद, बसपा के एकमात्र विधायक मो. जमा खान ने पार्टी बदलकर सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड (JDU) में शामिल हो गए थे।
बसपा ने अब तक कम से कम चार 4 उम्मीदवारों की घोषणा की है। इनमे भभुआ, मोहनिया, रामगढ़ और करगहर विधानसभा सीटों के लिए घोषित किए गए हैं।