राजस्थान की आराध्य देवी: चूरू जिले की पावन शक्ति, पढ़ें जीण माता की लोकगाथा और चमत्कारी इतिहास

राजस्थान के चूरू जिले में स्थित जीण माता मंदिर की लोकगाथा, औरंगजेब से जुड़ा चमत्कार और अखंड ज्योति की परंपरा।

Updated On 2025-09-24 19:30:00 IST

Jeen Mata Temple: राजस्थान की धार्मिक परंपराओं और लोककथाओं में देवी जीण माता का एक विशिष्ट स्थान है। चूरू जिले के ऐतिहासिक गांव घांघू में जन्मी जीण माता को शक्ति का अवतार माना जाता है। इनके बड़े भाई हर्षनाथ, जिन्हें भगवान शिव का स्वरूप माना गया है, उनके साथ इनका गहरा प्रेम लोकगीतों में आज भी जीवित है।

भाई-बहन का प्रेम और तपस्या की कथा

लोक कथाओं के अनुसार, किसी पारिवारिक विवाद के कारण माता जीण ने अपने भाई से अलग होकर अरावली पर्वतमाला के काजल शिखर पर तपस्या शुरू की। उनका पीछा करते हुए हर्षनाथ भी वहीं पहुंचे, लेकिन माता जीण ने साथ लौटने से इंकार कर दिया। इसके बाद हर्षनाथ भी कुछ दूरी पर जाकर तप में लीन हो गए। यह स्थान आज हर्षनाथ मंदिर के रूप में विद्यमान है। राजस्थान के पारंपरिक लोकगीतों में आज भी इस भाई-बहन के संवादों को भावुकता से गाया जाता है, जो वहां की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं।

मुगल आक्रमण और देवी का चमत्कार

एक जनश्रुति के अनुसार, मुगल सम्राट औरंगजेब ने जब शेखावाटी क्षेत्र के मंदिरों को तोड़ने की योजना बनाई, तो उसकी सेना ने हर्षनाथ मंदिर को खंडित कर जीण माता मंदिर की ओर कूच किया। मंदिर पुजारियों की विनती पर माता ने भंवरों (विशाल मधुमक्खियों) की सेना प्रकट की, जिन्होंने मुगल सेना को पराजित कर दिया।

औरंगजेब स्वयं गंभीर रूप से घायल हो गया और माता से क्षमा याचना की। इसके पश्चात उसने दिल्ली से मंदिर में अखंड दीप के लिए सवा मन तेल भेजने की परंपरा शुरू की। यह परंपरा वर्षों तक जारी रही और बाद में जयपुर रियासत द्वारा निभाई जाने लगी। महाराजा मान सिंह के काल में इस तेल की जगह मासिक 20 रुपये 3 आने की धनराशि निर्धारित की गई, जो निरंतर मंदिर को प्राप्त होती रही।

सोने का छत्र और कुष्ठ रोग की कथा

एक अन्य लोककथा के अनुसार, औरंगजेब को कुष्ठ रोग हो गया था। माता जीण की शरण में आकर उसने मन्नत मांगी कि यदि वह रोगमुक्त हो गया तो मंदिर में सोने का छत्र अर्पित करेगा। ठीक होने के बाद उसने यह वचन निभाया। यह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित है और श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक बना हुआ है। इन्हीं चमत्कारों के चलते माता को "भंवरों वाली माता" कहा जाने लगा।

अखंड ज्योति की परंपरा

जीण माता मंदिर आज भी श्रद्धालुओं की गहन आस्था का केंद्र है। यहां चैत्र और आश्विन नवरात्रों में विशाल मेले आयोजित होते हैं, जिनमें लाखों श्रद्धालु देशभर से दर्शन के लिए आते हैं।

मंगला आरती: सुबह 4 बजे

शृंगार आरती: सुबह 8 बजे

सायं आरती: शाम 7 बजे

सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मौजूद

जीण माता केवल धार्मिक आस्था की देवी नहीं, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान भी हैं। राजपूत, सैनी, यादव, मीणा जैसे कई समुदायों की कुलदेवी के रूप में पूजी जाने वाली जीण माता की कहानियां लोकगीतों, भजनों और कथाओं के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानांतरित होती आ रही हैं।

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