उज्जैन में नगर पूजन यात्रा: खम्बा माता मंदिर में कलेक्टर-एसपी ने की पारंपरिक पूजा, लगाया मदिरा का भोग

चौबीस खम्बा माता मंदिर करीब 1000 साल पुराना है और तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध माना जाता है।

Updated On 2025-09-30 14:59:00 IST

उज्जैन से राहुल यादव की रिपोर्ट। शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी पर मंगलवार सुबह उज्जैन का माहौल भक्ति और परंपरा में डूबा नजर आया। चौबीस खम्बा माता मंदिर में जिला कलेक्टर रौशन सिंह और एसपी प्रदीप शर्मा ने विधि-विधान से देवी महामाया और महालया की पूजा-अर्चना की। ढोल-नगाड़ों की गूंज के बीच माता की आरती हुई, सोलह श्रृंगार और चुनरी अर्पित की गई, साथ ही बलबाखल का भोग भी लगाया गया। इसके बाद माता को मदिरा का भोग अर्पित किया गया।

पूजा-अर्चना के बाद प्रशासनिक अमले और श्रद्धालुओं की अगुवाई करते हुए कलेक्टर और एसपी 27 किलोमीटर लंबी नगर पूजन यात्रा पर निकले। यात्रा के दौरान विशेष कलश से नगर मार्गों और मंदिरों में मदिरा की धार बहती रही। मान्यता है कि इससे नगर की अतृप्त आत्माएं तृप्त होकर नगरवासियों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

नगर पूजा की ऐतिहासिक परंपरा

नगर पूजा की शुरुआत सम्राट विक्रमादित्य के काल से हुई थी। तब से यह परंपरा लगातार निभाई जा रही है। मान्यता है कि विक्रमादित्य देवी महामाया, महालया और भैरव की पूजा कर नगर की रक्षा और समृद्धि की कामना करते थे। उसी परंपरा का निर्वहन आज भी प्रशासन द्वारा किया जाता है।

40 मंदिरों में होगी पूजा-अर्चना

नगर पूजन यात्रा के दौरान प्रशासनिक दल और श्रद्धालु करीब 40 मंदिरों में पूजा-अर्चना करेंगे। यात्रा चामुंडा माता, भूखी माता, काल भैरव, चंडमुंड नाशिनी और कई देवी-भैरव व हनुमान मंदिरों से होकर गुजरेगी। देवी और भैरव को मदिरा का भोग अर्पित किया जाएगा, जबकि हनुमान मंदिरों में ध्वजा चढ़ाई जाएगी।

भैरव मंदिर में होगा समापन

सुबह चौबीस खम्बा माता मंदिर से शुरू हुई नगर पूजन यात्रा का समापन रात करीब 8 बजे हांडी फोड़ भैरव मंदिर पर होगा। पूजन के बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप मदिरा, लाल वस्त्र और कुमकुम वितरित किया जाएगा।

तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध खम्बा माता मंदिर

चौबीस खम्बा माता मंदिर करीब 1000 साल पुराना है और तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध माना जाता है। मंदिर में लगे 24 विशाल खंभों के कारण इसका नाम पड़ा। पहले यहां पशु बलि की परंपरा थी, जिसे 12वीं शताब्दी में समाप्त कर दिया गया। आज यह मंदिर उज्जैन की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा है।

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