Bhopal AIIMS : भोपाल एम्स में स्ट्रैंग्युलेटेड रेक्टल प्रोलैप्स का बेहतर प्रबंधन, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मिली सराहना 

भोपाल AIIMS में स्ट्रैंग्युलेटेड रेक्टल प्रोलैप्स की दुर्लभ बीमारी का इलाज किया गया, जिसे सियोल के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सराहना मिली। इस असाधारण बीमारी का इलाज डॉ कृष्णकुमार ने किया है।

Updated On 2024-09-15 17:21:00 IST
Bhopal AIIMS: भोपाल एम्स के कार्यपालक निदेशक डॉ अजय सिंह से प्रमाण पत्र लेते डॉ कृष्ण कुमार।

Bhopal AIIMS: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) भोपाल में स्ट्रैंग्युलेटेड रेक्टल प्रोलैप्स (strangulated rectal prolapse) की दुर्लभ बीमारी का इलाज किया गया है। सहायक प्रोफेसर डॉ. कृष्ण कुमार के इस प्रयास की सियोल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सराहना हुई। उन्होंने 39 वर्षीय व्यक्ति को हुई इस असाधारण बीमारी का इलाज किया।

सहायक प्रोफेसर डॉ. कृष्ण कुमार ने बताया, स्ट्रैंग्युलेटेड रेक्टल प्रोलैप्स एक दुर्लभ स्थित है। जिसमें मलाशय का हिस्सा गुदा से बाहर निकल जाता है। आमतौर पर यह तब होता है, जब मलाशय को सहारा देने वाले ऊतक कमज़ोर हो जाते हैं। इसमें तत्काल सर्जरी की जरूरत पड़ती है। 

डॉ. कृष्ण कुमार के मुताबिक, रेक्टल प्रोलैप्स आमतौर पर बुजुर्ग महिलाओं में होता है। एक असामान्य स्थिति है, जहां रेक्टल की दीवार गुदा से बाहर निकलती है। यह अनुमानित 2.5 प्रति 100,000 लोगों को प्रभावित करता है। इसमें महिला-पुरुष अनुपात 10:1 है। 

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मरीज को 4 साल से थी समस्या
डॉ. कृष्ण कुमार के ने बताया कि स्ट्रैंगुलेशन से जुड़े मामले जहां प्रोलैप्स किए गए ऊतक को रक्त आपूर्ति से बाधित हो जाती है। यह केवल 2-3% मामलों में होता है। इसमें तत्काल सर्जिकल की जरूरत होती है। इस रोगी को चार साल से समस्या थी। एमआरआई सहित अन्य जांच कराईं। जिसमें सेकेंड डिग्री पूर्ण-मोटाई वाले रेक्टल प्रोलैप्स की पुष्टि हुई। जिसके बाद आपातकालीन पेरिनियल प्रोक्टोसिगमोइडेक्टोमी (अल्टेमियर की प्रक्रिया) की गई। सर्जरी कर पहले प्रोलैप्स आंत को हटाया फिर लेवेटरप्लास्टी के जरिए पेल्विक फ्लोर फ़ंक्शन पुनर्स्थापित किया गया। 

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इनका भी रहा सहयोग 
कार्यपालक निदेशक डॉ अजय सिंह के नेतृत्व और डॉ भारती पंड्या, डॉ मनीष स्वर्णकार समेत अन्य सर्जिकल विशेषज्ञता की मदद से हुई सर्जरी के बाद रोगी की हालत में बेहतर सुधार है। पांचवें दिन उसे छुट्टी दे दी गई है। डॉ. कृष्ण कुमार ने इस मामले को सियोल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (3-5 सितंबर, 2023) में प्रस्तुत किया, जहां इस सफल सर्जिकल प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण मान्यता मिली है। 

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