यमुनानगर से लापता बच्चा UP में मिला: नानी से मिलने बिहार निकला था, दो दिन रहा भूखा
बच्चा नंगे पांव यमुनानगर रेलवे स्टेशन पहुंचा और पहली ट्रेन में चढ़ गया। पूछताछ करने पर गलत ट्रेन में होने का पता चला तो वह उत्तर प्रदेश के बिजनौर में उतर गया। दो दिन तक भूखा-प्यासा भटकने के बाद वह गांव बिल्लारपुर पहुंचा, जहां एक परिवार ने उसे पनाह दी।
हरियाणा के यमुनानगर से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो माता-पिता के लिए चिंता का विषय है और बच्चों के मासूम साहस को दर्शाती है। आठ साल का एक मासूम बच्चा अपनी जेब में मात्र दो रुपये का सिक्का लेकर, 1200 किलोमीटर दूर बिहार में रह रही अपनी नानी से मिलने के लिए घर से अकेला ही निकल पड़ा। दो दिन तक भूखा-प्यासा भटकने के बाद, यह बच्चा उत्तर प्रदेश में मिला, जिसके लापता होने की रिपोर्ट पुलिस थाने में भी दर्ज की गई थी। इस घटना ने एक बार फिर बच्चों की सुरक्षा और उन पर ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
घर से रेलवे स्टेशन और फिर ट्रेन में
यह कहानी है आठ वर्षीय राहुल की, जिसके पिता संदेश यादव नेपाल के गांव कलईया जिला बारा के निवासी हैं और वर्तमान में यमुनानगर की एक प्लाइवुड फैक्ट्री में काम करते हैं। राहुल के पिता ने बताया कि 27 मई की शाम करीब साढ़े 6 बजे, राहुल घर के सामने गली में खेल रहा था, जबकि वह और उनकी पत्नी फैक्ट्री में अपने काम कर रहे थे। करीब 8 बजे जब वे काम से लौटे, तो राहुल न तो गली में मिला और न ही घर पर। उन्हें तुरंत शक हुआ कि कहीं राहुल का अपहरण तो नहीं हो गया।
पता चला कि मासूम राहुल नंगे पांव ही पैदल चलकर अपने घर से लगभग 10 किलोमीटर दूर यमुनानगर रेलवे स्टेशन पहुंच गया था। उसकी जेब में सिर्फ दो रुपये का एक सिक्का था। स्टेशन पहुंचने के बाद, वह प्लेटफॉर्म नंबर एक पर आकर रुकी पहली ट्रेन में ही चढ़ गया। उसकी मासूमियत और नानी से मिलने की चाहत इतनी प्रबल थी कि उसने बिना किसी डर के यह कदम उठा लिया।
गलत ट्रेन में सवार होकर पहुंचा बिजनौर, फिर पैदल चला कई किलोमीटर
रात भर सफर करने के बाद सुबह करीब 5 बजे राहुल ने ट्रेन में एक अंकल से मासूमियत से पूछा क्या यह ट्रेन मेरी नानी के गांव बिहार के शंभू चौक जाएगी? यात्रियों द्वारा यह बताए जाने पर कि यह ट्रेन बिहार नहीं जाएगी, राहुल उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में ट्रेन से उतर गया। बिजनौर में उतरने के बाद उसे तेज भूख लगी और अपनी मम्मी की याद आने लगी तो वह रोने लगा। थोड़ी देर बाद वह स्टेशन से बाहर निकलकर पैदल ही चलने लगा। मासूम राहुल का यह सफर कई किलोमीटर तक जारी रहा। चलते-चलते शाम के छह बज गए और वह उत्तर प्रदेश के गांव बिल्लारपुर (बल्लाशेरपुर) पहुंच गया।
गांव बिल्लारपुर में मिली मदद, दो दिन बाद परिजनों से मिला राहुल
गांव बिल्लारपुर पहुंचकर राहुल गली में घूम रहे बच्चों के साथ खेलने लगा। उसने बच्चों से अपनी नानी के गांव कल्याणपुर का रास्ता पूछा। तभी एक बच्चे की मां ने इस अनजान बच्चे को देखा और उससे उसके बारे में पूछा कि वह कहां से आया है और उसे कहां जाना है। मासूम राहुल ने महिला को अपनी पूरी कहानी बताई कि वह अपनी नानी के घर बिहार जाना चाहता था, लेकिन उसे डर था कि उसके मम्मी-पापा उसे वहां नहीं ले जाएंगे।
महिला ने देखा कि राहुल पिछले दो दिन से भूखा था। जब महिला ने उसे बिस्किट खिलाया तो वह भूख और थकान के कारण बेहोश हो गया। घबराई महिला ने तुरंत गांव के विष्णु डॉक्टर को बुलाया और राहुल का इलाज कराया। इलाज के बाद जब राहुल को खाना खिलाया गया तो उसकी हालत में सुधार हुआ। गांव बिल्लारपुर के उस परिवार ने राहुल को दो दिन तक अपने पास रखा और उसकी देखभाल की। इसी दौरान, उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया और किसी तरह परिजनों से संपर्क करने की कोशिश की।
सोशल मीडिया बना मददगार
इस खबर को लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर तेजी से शेयर किया गया। करनाल की एक महिला ने 29 मई की रात को उस पोस्ट को शेयर किया। इत्तेफाक से उस महिला का जीजा उत्तर प्रदेश के उसी गांव बिल्लारपुर (बल्लाशेरपुर) में रहता था, जहां राहुल रुका हुआ था। सुबह महिला के जीजा ने सोशल मीडिया पर शेयर की गई पोस्ट में राहुल की तस्वीर देखी और उसे पहचान लिया। उसने तुरंत उस महिला से संपर्क किया जिसने पोस्ट शेयर की थी। वीडियो कॉल पर राहुल को कंफर्म करने के बाद उसके माता-पिता और मामा 30 मई को यमुनानगर से राहुल को लेने के लिए निकले और 31 मई को सकुशल उसे वापस यमुनानगर लेकर लौटे।
भावुक हुई मां, राहुल की जुबानी पूरी कहानी
वीडियो कॉल पर अपने बेटे राहुल को देखकर उसकी मां रेणु बेहद भावुक हो गईं। उन्होंने सामने वाले परिवार से गुजारिश की कि वे राहुल को आगे न भेजें और उसे अपने पास ही रखें, क्योंकि वे उसे लेने आ रहे हैं। राहुल ने अपनी जुबानी पूरी कहानी बताते हुए कहा कि वह बिहार के कल्याणपुर में अपनी नानी के घर जाना चाहता था। उसे डर था कि मम्मी-पापा उसके कहने पर उसे वहां लेकर नहीं जाएंगे। इसलिए 27 मई की शाम 5 बजे वह अपने घर के बाहर खेलते हुए, आसपास कोई नहीं होने का फायदा उठाकर नंगे पांव ही स्टेशन की ओर निकल पड़ा। जेब में केवल दो रुपये थे। उसे स्टेशन पहुंचने में डेढ़ घंटा लग गया।