जरासंध का श्रापित किला: यमुनानगर में जहां महिलाएं मारती हैं चप्पल और पत्थर... क्या है हरियाणा की अनोखी और दर्दनाक परंपरा, जानिए

माना जाता है कि श्राप के कारण यह भव्य किला टीले में बदल गया। आज भी श्रद्धालु उस नवविवाहिता के सम्मान में और जरासंध के अत्याचारों के प्रति आक्रोश व्यक्त करने के लिए इस टीले पर पत्थर मारकर जाते हैं।

Updated On 2025-11-13 08:30:00 IST

 जरासंध के टीले पर जूते-चप्पल बरसाते लोग।

हरियाणा के यमुनानगर जिले के पास एक प्राचीन टीला खड़ा है जो द्वापर युग के क्रूर शासक राजा जरासंध के महल की निशानी माना जाता है। कपाल मोचन मेले के निकट स्थित, संधाए गांव में यह टीला एक बेहद अनोखी और सदियों पुरानी परंपरा का गवाह है, यहां की महिलाएं और श्रद्धालु इस टीले पर जूते, चप्पल और पत्थर बरसाते हैं। यह परंपरा राजा जरासंध के घोर अत्याचारों और एक नवविवाहिता के विनाशकारी श्राप का प्रतीक है।

क्रूर राजा जरासंध और नवविवाहिता का श्राप

स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, राजा जरासंध अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात था। उसकी क्रूरता की एक भयावह कहानी नवविवाहित दुल्हनों से जुड़ी है। मान्यता है कि जरासंध नवविवाहित दुल्हनों की पालकी लूट लेता था और दुल्हन को एक रात के लिए अपने पास रखता था। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, एक बार जब उसने एक नवविवाहिता की डोली पर कब्ज़ा किया, तो उस दुल्हन ने उससे स्नान करने की अनुमति मांगी।

स्नान के लिए जब वह नदी में उतरीं तो उन्होंने राजा जरासंध को विनाश का श्राप दिया। उन्होंने कहा कि उसका भव्य किला मिट्टी में मिल जाएगा और लोग उस पर जूते-चप्पल बरसाएंगे। इसके बाद, उस नवविवाहिता ने अपने प्राण त्याग दिए और वह पवित्र नदी में सती हो गईं। आज भी उन्हें सती के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि इस श्राप के तुरंत बाद जरासंध का विनाश शुरू हो गया और उसका विशाल किला धीरे-धीरे मिट्टी के एक टीले में तब्दील हो गया।

टीले पर जूते-चप्पल मारने की अनोखी परंपरा

जरासंध के इस श्रापित टीले पर जूते और पत्थर बरसाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह परंपरा राजा के अत्याचारों के प्रति स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के आक्रोश को दर्शाती है। यह स्थान कपाल मोचन तीर्थ से लगभग 5 किलोमीटर दूर संधाए गांव में स्थित है। इसी टीले के कारण इस गांव का नाम संधाय पड़ा है। माना जाता है कि सदियों से विलुप्त हो चुकी पवित्र सरस्वती नदी जरासंध के किले के पास ही बहती थी, और उसी नदी में वह नवविवाहिता सती हुई थीं।

कपाल मोचन तीर्थ पर आने वाले कई श्रद्धालु तीनों सरोवरों में स्नान के साथ-साथ इस श्रापित टीले पर पत्थर मारने के लिए हर साल जरूर आते हैं। पंजाब से आए कुछ बुजुर्ग श्रद्धालुओं ने इस इतिहास की पुष्टि की।

यह टीला केवल एक मिट्टी का ढेर नहीं

आज के समय में कई नए श्रद्धालु इस इतिहास से अनजान होते हैं। वे केवल देखा-देखी में ही इस टीले पर पत्थर और चप्पलें मारते हैं, लेकिन यह परंपरा आज भी उस नवविवाहिता के बलिदान और क्रूरता के विरुद्ध न्याय की मांग को जीवित रखती है। यह टीला केवल एक मिट्टी का ढेर नहीं, बल्कि इतिहास, लोककथा और एक दर्दनाक अतीत की जीवंत निशानी है। 


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