पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: पत्नी के ग्रेजुएट होने पर भी मिलेगा गुजारा भत्ता, पति की याचिका खारिज

कोर्ट ने पति के तर्कों को खारिज कर खर्चों का होना गुजारा भत्ता से बचने का कारण नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने पति की याचिका को खारिज कर उस पर 10,000 का जुर्माना भी लगाया। इस फैसले से उन महिलाओं को बड़ी राहत मिली है जो शिक्षित होने के बावजूद आत्मनिर्भर नहीं हैं।

Updated On 2025-07-02 13:07:00 IST

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला। 

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ता (maintenance) से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने साफ किया है कि किसी पत्नी के ग्रेजुएट होने भर से उसे गुजारा भत्ता से वंचित नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसकी कोई आय नहीं है और वह किसी लाभ वाली नौकरी में नहीं है। यह फैसला पति द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए दिया गया, जिसमें उसने 14,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने के लुधियाना फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने पति पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने से जुड़ा मामला 

दरअसल, यह मामला एक पति द्वारा लुधियाना फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने से जुड़ा था। फैमिली कोर्ट ने पति को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी को 9,000 रुपये और 6 साल की बेटी को 5,000 रुपये प्रति माह का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। पति ने इस आदेश को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, यह तर्क देते हुए कि वह इतनी राशि का भुगतान नहीं कर सकता।

हाईकोर्ट की अहम टिप्पणियां

जस्टिस जस गुरप्रीत सिंह पुरी ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं, जो गुजारा भत्ता से जुड़े कानूनों की व्याख्या को और स्पष्ट करती हैं:

• आय स्रोत का अभाव: कोर्ट ने पाया कि पत्नी किसी भी आय स्रोत से कमाई नहीं कर रही है। यह गुजारा भत्ता तय करने का एक प्राथमिक आधार होता है कि पत्नी आत्मनिर्भर है या नहीं।

• बच्ची की देखभाल की जिम्मेदारी: कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पत्नी अपनी 6 साल की बेटी की देखभाल कर रही है, जो उसकी जिम्मेदारियों को बढ़ाती है और उसे तुरंत नौकरी खोजने से रोक सकती है।

• केवल ग्रेजुएट होना कमाई की गारंटी नहीं: हाईकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि केवल ग्रेजुएट होना कमाई की गारंटी नहीं है। आज के समय में, डिग्री होने के बावजूद अच्छी और स्थिर नौकरी मिलना आसान नहीं होता, खासकर जब व्यक्ति लंबे समय से काम नहीं कर रहा हो या बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी हो।

• पति की आय और जिम्मेदारियां: कोर्ट ने पति की आय और उसकी जिम्मेदारियों (जैसे कार की ईएमआई, बीमा प्रीमियम और दादा-दादी की देखभाल) को ध्यान में रखते हुए भी पत्नी और बच्ची के गुजारा भत्ता के अधिकार को नजरअंदाज नहीं किया। कोर्ट ने माना कि ये खर्च गुजारा भत्ता न देने का बहाना नहीं हो सकते।

• भरण-पोषण: कानूनी, सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी: हाईकोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि भरण-पोषण (maintenance) केवल एक कानूनी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी भी है। यह टिप्पणी समाज में ऐसे मामलों के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाती है।

इन सभी तर्कों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को पूरी तरह सही ठहराया और पति की याचिका को खारिज कर दिया।

पति के तर्क खारिज, लगा जुर्माना

पति ने अपनी याचिका में बताया था कि वह एक फाइनेंस कंपनी में काम करता है और उसकी मासिक सैलरी 34,033 रुपये है। उसने दलील दी थी कि उसे कार की ईएमआई और बीमा प्रीमियम भरना पड़ता है, साथ ही अपने बुजुर्ग दादा-दादी का भी ख्याल रखना पड़ता है, इसलिए वह 14,000 रुपये का गुजारा भत्ता नहीं दे सकता। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि रोजमर्रा के खर्चों का होना गुजारा भत्ता देने से बचने का कारण नहीं हो सकता। न्यायालय ने पति पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया और यह आदेश दिया कि यह जुर्माना 3 महीने के अंदर लुधियाना फैमिली कोर्ट में जमा करवाया जाए। 

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