हरियाणा के 19वें राज्यपाल बने अशीम घोष: अंग्रेजी में ली शपथ, जानें उनका संघ से भाजपा अध्यक्ष तक का सफर

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी और पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया भी मौजूद रहे। अशीम घोष को बंडारू दत्तात्रेय की जगह राज्यपाल बनाया गया है। वह भाजपा के एक अनुभवी नेता और बुद्धिजीवी चेहरे के रूप में जाने जाते हैं।

Updated On 2025-07-21 15:21:00 IST

राजभवन में हरियाणा के नए राज्यपाल अशीम घोष को शपथ दिलाते हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू। 

हरियाणा को आज (21 जून) अपना नया राज्यपाल मिल गया है। पश्चिम बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रोफेसर अशीम घोष ने सोमवार को हरियाणा के 19वें राज्यपाल के रूप में शपथ ली। चंडीगढ़ स्थित राजभवन में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। घोष ने अपना शपथ अंग्रेजी में लिया। यह समारोह हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी और पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया की उपस्थिति में संपन्न हुआ। अशीम घोष ने बंडारू दत्तात्रेय का स्थान लिया है, जिनकी जगह उन्हें नियुक्त किया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 14 जुलाई 2025 को उनके नाम की घोषणा की थी।

तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी के चहेते और बुद्धिजीवी चेहरा

अशीम घोष का राजनीतिक सफर और उनकी पृष्ठभूमि काफी दिलचस्प है। वह पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की जड़ों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। वर्तमान में, वह पश्चिम बंगाल में पार्टी के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य के रूप में भाजपा की नीतियों को आगे बढ़ा रहे थे।

उन्हें राजनीति में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में मंत्री रहे तपन सिकंदर लाए थे। वाजपेयी ने ही घोष की निपुणता और बौद्धिक क्षमता को पहचानते हुए उन्हें पश्चिम बंगाल में भाजपा की कमान सौंपी थी। पार्टी के भीतर अशीम घोष की पहचान एक बुद्धिजीवी चेहरे के रूप में रही है, जिनकी वैचारिक स्पष्टता और अनुशासन के लिए उन्हें जाना जाता है।

सक्रिय राजनीति से 20 साल दूर

पश्चिम बंगाल में अशीम घोष 1999 से 2002 तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। उसके बाद वह भाजपा के टिकट पर जून 2013 में हावड़ा लोकसभा सीट से उपचुनाव भी लड़े, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। हावड़ा लोकसभा सीट तृणमूल कांग्रेस की सांसद अंबिका बनर्जी के निधन के बाद खाली थी।

पेशे से प्रोफेसर रहे घोष उत्तर कोलकाता के श्री शिक्षायतन कॉलेज में पढ़ाते थे। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने करीब 20 साल पहले सक्रिय राजनीति छोड़ दी थी। इसके बावजूद पार्टी में उनकी छवि एक सम्मानित और मार्गदर्शक व्यक्ति के रूप में बनी रही। उनकी यह वापसी दर्शाती है कि संगठन में उनकी पकड़ और स्वीकार्यता कितनी मजबूत है।

हरियाणा के लोगों की सेवा मेरी प्राथमिकता

चंडीगढ़ राजभवन पहुंचने पर मुख्यमंत्री नायब सैनी और पंचायत मंत्री कृष्ण लाल पंवार ने नए राज्यपाल अशीम घोष का स्वागत किया था। इस दौरान मीडिया से बात करते हुए घोष ने अपनी नियुक्ति पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा यह मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है। मैं पूरी ईमानदारी और लगन से हरियाणा के लोगों की सेवा करूंगा। उन्होंने आगे कहा कि हरियाणा के महान लोगों के लिए कार्य करना उनकी पहली प्राथमिकता रहेगी और वे मुख्यमंत्री तथा प्रशासन का सहयोग करेंगे, जिससे आमजन को लाभ मिल सके। घोष ने यह भी स्पष्ट किया कि विपक्ष के सुझावों को सुनना भी उनकी जिम्मेदारी होगी।

हरियाणा के राज्यपालों का संक्षिप्त इतिहास

हरियाणा राज्य के गठन के बाद से कई प्रमुख हस्तियों ने राज्यपाल के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं। यह पद राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहां हरियाणा के कुछ प्रमुख राज्यपालों और उनके कार्यकाल का संक्षिप्त विवरण दिया गया है।

• धर्म वीरा (1966-1967) : वह हरियाणा प्रदेश के पहले राज्यपाल बने, वह एक आईसीएस अधिकारी थे। उनकी पढ़ाई लंदन में हुई थी। धर्म वीरा एक अच्छे खिलाड़ी और पर्वतारोही भी थे।

• बीएन चक्रबर्ती (1967-1976) : दूसरे राज्यपाल, ये भी एक अनुभवी आईसीएस अधिकारी थे। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय परिसर में किया गया था।

• रंजीत सिंह नरूला (1976) : लाहौर में पले-बढ़े, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे।

• जयसुख लाल हाथी (1976-1977) : गुजरात के रहने वाले वकील और राजनेता, हरियाणा के बाद पंजाब के राज्यपाल भी रहे।

• हरचरण सिंह बराड़ (1977-1979) : वह एक सक्रिय राजनेता रहे, वे बाद में हरियाणा का राज्यपाल बनने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भी बने।

• सुरजीत सिंह संधवालिया (1979-1980) : लायलपुर (पाकिस्तान) से, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे और बाद में पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस बने।

• गणपति राव देवजी तपासे (1980-1984) : पुणे से, भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था। हरियाणा के राज्यपाल रहते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल को शपथ दिलाने को लेकर ताऊ देवीलाल से उनके विवाद सुर्खियों में रहे थे।

• सैयद मुजफ्फर हुसैन बर्नी (1984-1988) : एक आईएएस अधिकारी और लेखक, जिन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में कई किताबें लिखीं।

• हरि आनंद बरारी (1988-1990) : वह आईपीएस अधिकारी, इंटेलिजेंस ब्यूरो के चीफ भी रहे। इसके अलावा उन्होंने राजभवन में टेनिस कोर्ट बनवाया।

• धनिक लाल मंडल (1990-1995) : वह बिहार से छात्र जीवन से ही राजनीति में आ गए। उन्होंने जेपी की संपूर्ण क्रांति में भाग लिया था। राज्यपाल रहने के बाद भी वह सक्रिय राजनीति में लौटे। 

• महाबीर प्रसाद (1995-2000) : यूपी से, गांव के सरपंच से राजनीतिक सफर शुरू किया।

• बाबू परमानंद (2000-2004) : जम्मू-कश्मीर से, फारूख अब्दुला सरकार में वित्त मंत्री रहे।

• ओम प्रकाश वर्मा (2003-2004) : पंजाब के राज्यपाल रहे और कुछ समय के लिए हरियाणा के कार्यवाहक राज्यपाल भी रहे।

• एआर किदवई (2004-2009) : जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी और अमेरिका से पढ़े, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे।

• जगन्नाथ पहाड़िया (2009-2014) : वह राजस्थान के रहने वाले थे और उन्होंने दुनिया के 27 देशों की यात्रा की थी।

• कप्तान सिंह सोलंकी (2014-2018) : मध्य प्रदेश के भिंड से, हरियाणा का राज्यपाल रहते पंजाब व हिमाचल के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक का अतिरिक्त कार्यभार भी संभाला।

• सत्यदेव नारायण आर्य (2018-2021) : बिहार के नालंदा से, आर्य समाज के अनुयायी और बिहार के पूर्व मंत्री रहे।

• बंडारू दत्तात्रेय (2021-2025 तक) : हैदराबाद में जन्मे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए और आपातकाल के दौरान जेल गए।

अशीम घोष की नियुक्ति से हरियाणा के राजनीतिक और प्रशासनिक परिदृश्य में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। उनके अनुभव और बौद्धिक क्षमता से राज्य को लाभ मिलने की उम्मीद है। 

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