आमने सामने शहीद का परिवार: शहीद की पत्नी को नौकरी देने पर मां को आपत्ति, पत्नी बोली बेटियाें व दामादों के लिए घर छुड़वाया

सेना से भी हमें कोई मदद नहीं मिली है। ज्योति कैंटीन कार्ड बनवाने के लिए भी प्रयासरत है। संपर्क करने के बावजूद उन्हें तो सेना ने मेडिकल सुविधा भी नहीं दी। 

Updated On 2024-07-08 14:46:00 IST
शहीद आशीष माता पिता, पत्नी व बेटी के साथ। फाईल फोटो

पानीपत। मूल रूप से गांव बिंझौल व हाल पानीपत निवासी शहीद मेजर आशीष धौंचक के परिवार की लड़़ाई घर की दहलीज लांघकर सड़क पर आ गई है। शहीद की पत्नी और मां दोनों में आरोप प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया है। शहीद की मां ने सरकार द्वारा पत्नी को सरकारी नौकरी देने के लिए स्वीकृत प्रस्ताव को ही खारिज करने की मांग कर डाली है। जिसके बाद सामने आई पत्नी ने सास ससुर पर अपनी बेटी को सरकारी नौकरी दिलवाने के लिए पहले उसे साजिश के तहत घर से निकालने और अब बदनाम करने का आरोप लगाया है। शहीद के परिवार में चल रहे आरोप प्रत्यारोपों में कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ यह तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा, परंतु शहादत के महज 10 माह बाद पत्नी व परिवार के विवाद ने कई सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं।

परिवार का आरोप 

मां कमला का आरोप है, कि सरकारी सहायता मिलते ही बहू ज्योति के तेवर बदल गए और घर मकान सहित सभी कुछ अपने नाम करवाकर मायके चली गई तथा कई माह बीतने के बाद भी वापस नहीं लौटी। ज्योति व उसके माता पिता अब हमारे साथ फोन पर बात तक नहीं करते। जब बहू सबकुछ लेकर अपने मायके चली गई है तो सरकार मेरे बेटे की शहादत पर ज्योति को सरकारी नौकरी देने का प्रस्ताव रद करे, ताकि वह नौकरी हमारी सेवा कर रही बेटी को मिल सके। पॉलिसी भी मां बाप की सेवा करने वाले को ही नौकरी देने की है। सेना से भी हमें कोई मदद नहीं मिली है। ज्योति कैंटीन कार्ड बनवाने के लिए भी प्रयासरत है। संपर्क करने के बावजूद उन्हें तो सेना ने मेडिकल सुविधा भी नहीं दी।

घर से निकालने के लिए सास ने किया टॉचर्र, ननदोई दे रहे धमकी 

ज्योति का आरोप है कि आशीष की श्रीनगर में पोस्टिंग आने के बाद वह अपनी बेटी के साथ 2021 में अपनी बेटी के साथ ससुराल पानीपत शिफ्ट हो गई थी। आशीष की शहादत के बाद ही सास ने पूरे परिवार के बीच मुझे अपने साथ रखने से इंकार करते हुए पहली मंजिल पर अकेली रहने को कह दिया था। जिसके बाद मैने बेटी के साथ अपने पति की यादों को जिंदा रखने के लिए अपना सामान पहली मंजिल पर शिफ्ट कर लिया। कभी झगड़ा करके तो कभी ताने देकर सास फिर भी मुझे टार्चर करती रही, ताकि मैं घर छोड़कर चली जाऊं। मैं फिर भी चुप रही, ताकि देश के लिए कुर्बानी देने वाले मेरे पति की बदनामी न हो और चुपचाप बेटी के साथ मायके चली आई। बीच बीच में मैं पहले भी मायके आती थी और अब भी आई तो ननदोई संजय नादंल ने फोन कर मुझे घमकी दी। आशीष के घर में बेटी व दामादों के लिए तो जगह है, परंतु मेरे व मेरी बेटी के लिए नहीं। ना मैने घर छोड़ा है और न ही दूसरी शादी की है। />

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