महाभारत काल से नाता: श्रीकृष्ण ने यहीं दिया था गीता का ज्ञान, ऐतिहासिक-धार्मिक महत्व रखता है हरियाणा का ये शहर
Kurukshetra: महाभारत काल के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन गीता का उपदेश दिया था। यह क्षेत्र भारत के उत्तरी राज्य हरियाणा में स्थित है। यहीं पर महाभारत की लड़ाई लड़ी गई थी। आइए जानते हैं इस खास शहर का महत्व...
Kurukshetra: भारत के इतिहास में द्वापर युग में महाभारत का युद्ध लड़ा गया था। यह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था, जिसमें पांडवों ने जीत हासिल की थी। बता दें कि विश्व का सबसे बड़ा युद्ध महाभारत हरियाणा के कुरुक्षेत्र में हुआ था। इसके अलावा ज्योतिसर भी कुरुक्षेत्र में ही मौजूद है, जहां पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। बता दें कि कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से कुरुक्षेत्र बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। आइए जानते हैं कुरुक्षेत्र की धरती के बारे में...
कुरुक्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व
कुरुक्षेत्र का इतिहास काफी ज्यादा पुराना है, जो कि महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। कुरुक्षेत्र की धरती पर महाभारत की लड़ाई लड़ी गई, जो कि अभी तक के इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई मानी जाती है। यह युद्ध 18 दिनों तक चला था, जिसमें पांडव के पांच भाइयों ने मिलकर पूरे कौरवों का विनाश किया था। उस दौरान यहां पर राजा कुरु का शासन था, जिनके नाम पर इस जगह का नाम कुरुक्षेत्र पड़ा था।
कुरु वंश के बाद यहां पर बौद्ध और जैन समुदाय के लोगों का प्रभाव बढ़ने लगा। इसके बाद में महमूद गजनी, हूण, पठान और मुगलों ने भी आक्रमण किया और अपना प्रभाव बनाया। इस दौरान यहां पर शेख चिल्ली का मकबरा भी बनाया गया, जो कि मुगलों का प्रतीक है। मुगल शासकों के इन आक्रमणों के चलते गुप्त, मौर्य, प्रतिहार और कलिंग जैसे महान भारतीय राजवंश सामने आए, जिन्होंने कुरुक्षेत्र में राज किया।
मुगल शासकों ने लंबे समय तक किया राज
भारतीय इतिहास के मुताबिक, 1210 ई. के बाद कुरुक्षेत्र पर इल्तुतमिश ने शासन किया, जिसके बाद उसकी बेटी रजिया सुल्तान ने सत्ता संभाली। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी और फिर मोहम्मद बिन तुगलक ने यहां पर राज किया। इन मुगल शासकों के बाद शेरशाह ने सत्ता संभालते हुए कुरुक्षेत्र का काफी विकास किया। इसके बाद मुगल सम्राट अकबर और उनके बेटे औरंगजेब ने यहां पर शासन किया। 1707 ई. में औरंगजेब की मौत के बाद नादिर शाह ने कुरुक्षेत्र पर हमला करके आमजन को काफी तकलीफ पहुंचाई।
हालांकि वह ज्यादा दिनों तक राज नहीं कर सका, जिसके बाद कुछ पठान और सिख शासकों ने मिलकर कुरुक्षेत्र पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद उन्होंने करीब 1800 ई. तक यहां पर शासन किया। पठानों और सिखों के शासन के बाद ब्रिटिशर्स ने कुरुक्षेत्र पर कब्जा जमा लिया। ऐसे में लंबे समय तक अलग-अलग शासकों के राज में कुरुक्षेत्र में विकास हुआ।
आजादी के बाद कुरुक्षेत्र का इतिहास
साल 1947 में भारत के आजाद होने के बाद देश का गठन हुआ। उस समय कुरुक्षेत्र का यह क्षेत्र करनाल जिले में चला गया था। बता दें कि साल 1966 में हरियाणा एक राज्य के रूप में विकसित हुआ, जिसके बाद यहां पर कई जिलों का निर्माण हुआ। इसी बीच 23 जनवरी 1973 को करनाल जिले के विभाजन होने के बाद कुरुक्षेत्र जिला बनाया गया।
कुरुक्षेत्र की धरती का धार्मिक महत्व
महाभारत काल के दौरान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर में पांडव पुत्र अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इस वजह से यह क्षेत्र हिंदुओं के लिए धार्मिक रूप से काफी ज्यादा महत्व रखता है। साथ ही यहां पर कई बड़े और प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां पर बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। बता दें कि कुरुक्षेत्र 48 कोस में फैला हुआ क्षेत्र है, जहां पर कई तीर्थ स्थान, मंदिर और पवित्र तालाब हैं। कुरुक्षेत्र के पिहोवा में सरस्वती तीर्थ स्थित है, जहां पर हर साल लोग दूर-दूर से पिंडदान करने के लिए आते हैं।
इसी जगह महाराज युधिष्ठिर ने अपने परिजनों का पिंडदान किया था। यहां पर करीब 367 तीर्थ स्थल मौजूद हैं। माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति कुरुक्षेत्र की धरती पर मरता है, तो उसे मुक्ति मिल जाती है। साथ ही मृत व्यक्ति की अस्थियों का विसर्जन करने के लिए गंगा या किसी पवित्र स्थान पर जाने की बजाय यहां के ही तालाब में बहा कर दिया जाता है। इतना ही नहीं ऋषि मनु ने कुरुक्षेत्र में ही मनुस्मृति लिखी थी। कुल मिलाकर यह क्षेत्र युद्ध, ज्ञान, धर्म और संस्कृति का केंद्र है।