शहीद लांसनायक को दी अंतिम विदाई: कैथल पहुंचा तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर, उमड़ा जनसैलाब

लांसनायक नरेंद्र सिंधु जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए थे। शहीद की मां ने नम आंखों से कहा कि उनके बेटे ने देश की सेवा का सपना पूरा कर लिया, जबकि उनकी बहन ने कहा कि रक्षाबंधन पर भाई से मांगी गई सोने की चेन अब एक अधूरी ख्वाहिश बन गई है।

Updated On 2025-09-10 15:41:00 IST

शहीद नरेंद्र सिंधु। 

जम्मू-कश्मीर के कुलगाम में आतंकियों से बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हुए कैथल के लांसनायक नरेंद्र सिंधु (28) को बुधवार को उनके पैतृक गांव रोहेड़ा में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। उनका पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ गांव पहुंचा, जहां उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों की संख्या में लोग उमड़ पड़े। उनकी अंतिम यात्रा में हर कोई तिरंगा लिए 'भारत माता की जय' और 'शहीद अमर रहें' के नारे लगा रहा था।

परिवार में मातम पसरा लेकिन उन्हें बेटे पर गर्व

शहीद नरेंद्र सिंधु के परिवार में मातम पसरा हुआ है, लेकिन उन्हें अपने बेटे पर गर्व है। उनकी मां रोशनी देवी, जो कुछ दिनों पहले ही अपने दो भाइयों को खोने के सदमे से उबर रही थीं, बेटे के बलिदान की खबर सुनकर बार-बार बेहोश हो रही थीं। नम आंखों से उन्होंने कहा मेरा बेटा बचपन से ही सेना में जाने का सपना देखता था और उसने अपना सपना पूरा कर लिया। नरेंद्र के पिता दलबीर सिंह ने बताया कि अक्टूबर में नरेंद्र के छुट्टी पर आने के बाद उनकी शादी की बात तय होनी थी, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

चचेरे भाई ने मुखाग्नि दी

नरेंद्र के परिवार में उनके पिता दलबीर सिंह, मां रोशनी देवी, दो विवाहित बहनें और एक छोटा भाई वीरेंद्र है, जो अमेरिका में रहता है। वीरेंद्र के अमेरिका में होने की वजह से नरेंद्र के चचेरे भाई अंकित ने उन्हें मुखाग्नि दी।

शहीद के पिता दलबीर सिंह ने कहा कि एक पिता के लिए अपने बेटे का जाना सबसे बड़ा दुख है, लेकिन हमें इस बात का गर्व है कि वह देश के लिए शहीद हुआ। उन्होंने बताया कि नरेंद्र से उनकी आखिरी बार रविवार को वीडियो कॉल पर बात हुई थी। नरेंद्र ने उनसे फसल के बारे में पूछा था और दो भैंस खरीदने की भी बात कर रहे थे। उन्होंने अपनी मां से कहा था कि अक्टूबर में छुट्टी पर आने के बाद घर में बचा हुआ काम पूरा करवाएंगे।

राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे

शहीद नरेंद्र सिंधु 5 अक्टूबर 1996 को गांव रोहेड़ा में पैदा हुए थे। उन्होंने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई गांव के ही एक प्राइवेट स्कूल से की थी। वे राष्ट्रीय राइफल्स में लांसनायक के पद पर तैनात थे और 4 साल पहले ही उनकी पोस्टिंग श्रीनगर में हुई थी। कुलगाम में हुई मुठभेड़ में, जहां नरेंद्र सिंधु शहीद हुए, लश्कर-ए-तैयबा के दो आतंकवादी भी मारे गए थे। इनमें से एक आतंकी आमिर अहमद डार था, जो सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जारी की गई 14 वांछित आतंकवादियों की सूची में शामिल था। यह दर्शाता है कि नरेंद्र सिंधु ने कितनी बहादुरी से देश के दुश्मनों का सामना किया।

गांव में शोक और सम्मान

जब शहीद का पार्थिव शरीर उनके गांव पहुंचा, तो पूरा माहौल गमगीन था। हर कोई अपने 'गांव के लाल' को अंतिम विदाई देने के लिए बेताब था। अंतिम यात्रा में स्कूली बच्चे भी तिरंगा लेकर शामिल हुए, जो दर्शाता है कि एक शहीद का सम्मान हर उम्र के लोग करते हैं। सेना के जवानों ने शहीद को गार्ड ऑफ ऑनर दिया और उनके सम्मान में हवा में गोलियां चलाईं। इसके बाद सेना की टीम ने उनके पिता को तिरंगा सौंपा, जो एक पिता के लिए गर्व और पीड़ा दोनों का क्षण था।

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