Tiger Man Valmik Thapar Death: बाघ संरक्षण के महानायक 'टाइगर मैन' वाल्मीक थापर का 73 वर्ष की उम्र में निधन, कैंसर से थे पीड़ित
Tiger Man Valmik Thapar Death: शनिवार सुबह भारत में बाघों का संरक्षण करने का प्रतीक माने जाने वाले वाल्मीक थापर का निधन हो गया। उन्हें टाइगर मैन के नाम से जाना जाता है और वे कैंसर से पीड़ित थे।
Tiger Man Valmik Thapar Death: भारत में बाघ संरक्षण के प्रतीक माने जाने वाले प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और लेखक वाल्मीक थापर का शनिवार सुबह (31 मई) दिल्ली स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वे 73 वर्ष के थे और पिछले वर्ष उन्हें कैंसर होने का पता चला था। उनका अंतिम संस्कार शनिवार दोपहर 3:30 बजे लोधी इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में किया जाएगा।
थापर 1970 के दशक से देश में वन्यजीव संरक्षण आंदोलन के अग्रणी लोगों में रहे। उन्होंने बाघों के संरक्षण के लिए चार दशकों से अधिक का समय समर्पित किया और केन्द्र तथा राज्य सरकारों की 150 से अधिक समितियों में सक्रिय भूमिका निभाई।
थापर ने बाघों और अन्य वन्यजीवों पर 30 से अधिक पुस्तकें लिखीं या संपादित कीं। उनकी चर्चित कृतियों में ‘लिविंग विद टाइगर्स’, ‘द सीक्रेट लाइफ ऑफ टाइगर्स’, ‘लैंड ऑफ द टाइगर’ और ‘टाइगर फायर’ शामिल हैं। उन्होंने बीबीसी सहित कई अंतरराष्ट्रीय चैनलों के लिए वृत्तचित्रों का निर्माण और प्रस्तुतिकरण भी किया।
2024 में, वे रणथंभौर में जंगली बाघों के साथ अपने 50 वर्षों के अनुभव को ‘माई टाइगर फैमिली’ वृत्तचित्र में साझा करते नज़र आए थे। उनके पिता रोमेश थापर प्रख्यात पत्रकार थे, जबकि इतिहासकार रोमिला थापर उनकी चाची और पत्रकार करण थापर उनके चचेरे भाई हैं। उन्होंने अभिनेता शशि कपूर की बेटी, रंगमंच कलाकार संजना कपूर से विवाह किया था। दंपति का एक बेटा है।
सैंक्चुरी नेचर फाउंडेशन के अनुसार, 'थापर का प्रभाव राष्ट्रीय था, हालांकि उन्होंने विशेष रूप से राजस्थान में संरक्षण कार्यों में सरकार के साथ मिलकर गहरा योगदान दिया। उन्होंने महाराष्ट्र के ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व जैसे अन्य संरक्षित क्षेत्रों के पुनरुद्धार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।'
पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा, 'पिछले चार दशकों में बाघ संरक्षण के क्षेत्र की सबसे प्रभावशाली हस्तियों में से एक वाल्मीक थापर का जाना अपूरणीय क्षति है।'
जयराम ने एक्स पर पोस्ट में लिखा, 'आज का रणथंभौर, खासतौर पर उनकी गहरी प्रतिबद्धता और अथक उत्साह का प्रमाण है। जैव विविधता से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर उन्हें असाधारण जानकारी थी और मेरे मंत्रिपरिषद के कार्यकाल के दौरान एक भी दिन ऐसा नहीं बीता जब हम एक-दूसरे से बात न करते हों - और लगभग हमेशा मैं ही उनसे बात करता था। स्थायी समिति के अध्यक्ष के रूप में मेरे कार्यकाल के दौरान भी वे कई मूल्यवान सुझावों और सलाहों का निरंतर स्रोत थे। हमारे बीच बहस होती थी, लेकिन हमेशा जोश और चिंता से भरी उनकी बातें सुनना शिक्षाप्रद होती थीं'।
थापर ने 1988 में रणथंभौर फाउंडेशन की सह-स्थापना की, जो समुदाय-आधारित संरक्षण गतिविधियों पर केंद्रित एक एनजीओ है। वे बाघों के प्राकृतिक आवासों की रक्षा और शिकार विरोधी कानूनों के सख्त प्रवर्तन के कट्टर समर्थक थे।