Success Story: 5 साल की आरिणी लाहोटी ने शतरंज की दुनिया में चमकाया भारत का नाम

दिल्ली की 5 वर्षीय शतरंज प्रतिभा आरिणी लाहोटी की प्रेरक सफलता की कहानी जानें, जिन्होंने 1551 रेटिंग के साथ भारत की सबसे कम उम्र की महिला FIDE-रेटेड खिलाड़ी बनकर रिकॉर्ड तोड़ा। राष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में चमकने वाली आरिणी की यात्रा, उनके पिता के मार्गदर्शन में, जुनून, प्रतिभा और असीम संभावनाओं को दर्शाती है।

Updated On 2025-08-28 07:20:00 IST

आरिणी लाहोटी बनी 5साल की महिला FIDE- रेटेड खिलाडी

Success Story Of Aarini Lahoty: दिल्ली की नन्ही शतरंज खिलाड़ी आरिणी लाहोटी ने मात्र पांच साल की उम्र में वह मुकाम हासिल कर लिया है, जो बड़े-बड़े खिलाड़ियों के लिए सपना होता है। 1551 रेटिंग पॉइंट्स के साथ उन्होंने न केवल शतरंज की दुनिया में अपनी पहचान बनाई, बल्कि India Book of Records में भारत की सबसे कम उम्र की महिला FIDE-रेटेड खिलाड़ी के रूप में अपना नाम दर्ज कराकर इतिहास रच दिया। उनकी यह उपलब्धि किसी चमत्कार से कम नहीं है।

दो साल की उम्र में शतरंज के साथ शुरू हुआ सफर

जब ज्यादातर बच्चे दो साल की उम्र में चलना और खिलौनों से खेलना सीख रहे होते हैं, तब आरिणी ने शतरंज के बोर्ड को अपना साथी बना लिया। विश्व चैंपियन मैग्नस कार्लसन के खेल को देखते हुए, उन्होंने मोहरों की चाल समझना शुरू किया और इस खेल के प्रति उनका जुनून जाग उठा। इतनी छोटी उम्र में उनकी यह लगन और प्रतिभा असाधारण थी, जिसने उनके सुनहरे भविष्य की नींव रखी।

टूर्नामेंट्स में शानदार प्रदर्शन

आरिणी ने अप्रैल-मई 2025 में दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आयोजित स्टेट चेस चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। U-11, U-9 और U-7 गर्ल्स कैटेगरी में अपने से बड़े खिलाड़ियों के खिलाफ उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ खेल दिखाया। उनकी चालों की समझ और रणनीति ने सभी को हैरान कर दिया।

इसके बाद, उन्होंने ओडिशा में नेशनल U-07 चैंपियनशिप और हरियाणा में नेशनल U-09 चैंपियनशिप में हिस्सा लिया, जहां उनके शानदार प्रदर्शन ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई। प्रत्येक टूर्नामेंट में उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

रिकॉर्ड तोड़कर रचा इतिहास

आरिणी ने पश्चिम बंगाल की शतरंज खिलाड़ी उधृति भट्टाचार्य का रिकॉर्ड तोड़कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। उधृति को अब तक भारत की सबसे कम उम्र की FIDE-रेटेड महिला खिलाड़ी माना जाता था, लेकिन आरिणी ने इस खिताब को अपने नाम कर लिया। यह उपलब्धि उनकी मेहनत, लगन और जुनून का प्रतीक है।पिता बने पहले गुरुआरिणी की इस कामयाबी के पीछे उनके पिता सुरेंद्र लाहोटी का अहम योगदान है।

एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के शतरंज खिलाड़ी और दिल्ली के ब्लूबेल्स स्कूल इंटरनेशनल में स्पोर्ट्स कोच, सुरेंद्र ने अपनी बेटी की प्रतिभा को पहचाना और उसे निखारा। उन्होंने न केवल एक पिता के रूप में, बल्कि एक कोच के रूप में भी आरिणी का मार्गदर्शन किया, जिससे वह इस मुकाम तक पहुंच सकी।

शतरंज के प्रति जुनून और सपने

आरिणी के लिए शतरंज सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और दिमागी ताकत का स्रोत है। वह कहती हैं, “मुझे शतरंज खेलना बहुत पसंद है। यह खेल मुझे आत्मविश्वास देता है और मेरा दिमाग तेज करता है। हर नई बाजी मुझे कुछ नया सिखाती है।” मैग्नस कार्लसन की तरह वह अपने देश का नाम रोशन करना चाहती हैं।

प्रेरणा का स्रोत

आरिणी लाहोटी की कहानी हमें सिखाती है कि सही मार्गदर्शन और प्रोत्साहन से बच्चे असाधारण उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं। उनकी सफलता माता-पिता, शिक्षकों और बच्चों के लिए एक प्रेरणा है कि बचपन वह उम्र है, जिसमें सही दिशा देकर असंभव को संभव बनाया जा सकता है। जैसे-जैसे आरिणी शतरंज की बिसात पर अपनी चालें चलती रहेंगी, वह न केवल एक खेल खेल रही हैं, बल्कि एक ऐसी विरासत बना रही हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी।

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