Mini Qutub Minar: मुगलों के शिकार का अड्डा हुआ करती थी मिनी कुतुब मीनार, पास ही था हाथी खाना
Mini Qutub Minar: दिल्ली के पास ही मिनी कुतुब मीनार है। एक समय पर मुगल इस मीनार के मालिक हुआ करते थे। हालांकि आज के समय में ये जर्जर और गुमनाम हो चुकी है।
मिनी कुतुब मीनार
Mini Qutub Minar: दिल्ली के महरौली में स्थित कुतुब मीनार के बारे में तो सब जानते होंगे। ये कुतुब मीनार दिल्ली के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। हालांकि इसके पास ही एक और मीनार है, जिसे 'मिनी कुतुब मीनार' या 'हस्तसाल मीनार' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि ये मुगलों के लिए शिकार करने का अड्डा हुआ करती थी। इसकी मिनी कुतुब मीनार की कहानी बड़ी रोचक है। आइए जानते हैं...
दिल्ली से लगभग 17 किलोमीटर दूर एक हस्तसाल मीनार है, जो हस्तसाल नामक गांव में स्थित है। यह मीनार ईंट और लाल बलुआ पत्थर से मानसूनी तालाब के किनारे बनी है। इस मीनार के पास ही एक हाथी खाना हुआ करता था, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। हालांकि समय के साथ इसकी हालत बदतर हो चुकी है।
इस मीनार के पास ही मुगल बादशाह शाहजहां ने हाथी खाना बनाया गया था। यह हाथीखाना अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। यह मुगलों के लिए शिकार करने का अड्डा हुआ करता था। पहले हस्तसाल के आस-पास का इलाका जंगली जानवरों से घिरा रहता था। यहां पर मुगल बादशाह सैन्य टुकड़ी के साथ लाल किले से अपने घोड़े पर सवार होकर शिकार करने के लिए आते थे। यहां पर वो सूर्योदय से पहले पहुंचते और रात तक शिकार करते थे। मुगलों के शिकार करने का ये शौक पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा था। अकबर को तो हाथियों को अपने काबू में करने की महारत हासिल थी। वहीं मुगल बादशाह शाहजहां को शिकार करने के लिए जाना जाता था।
हाथी खाने में मुगलों के शाही हाथी रखे जाते थे। ऐसा आरवी स्मिथ ने अपनी किताब 'अननोन टेल्स ऑफ ए सिटी' में लिखा है। इस हाथी खाने में मुगलों के सेनापति महावत खान का हाथी भी रहता था। यह हाथी बहुत अधिक बुद्धिमान था, यह युद्ध में घायल अपने मालिक को सुरक्षित स्थान पर ले जाकर उसकी जान बचाता था। कुछ समय तक यह हाथी शाहजहां के साथ भी रहा था। बुढापे में इस हाथी को शाही कुएं से पानी निकालने के काम में लगा दिया गया।
अब मिनी कुतुब मीनार यानि हस्तसाल मीनार की हालत दयनीय और चिंताजनक है। इसकी सीढ़िया गंदगी और भूसे से भरी हैं। हस्तसाल गांव के लोग अपने पशुओं को हाथीखाने के पास बांधते हैं। गांव के कुछ लोग तो भटकी बकरियों को ढूंढने के लिए मीनार के ऊपर चढ़कर आवाज भी लगाते हैं। इस प्रकार के अतिक्रमण और रखरखाव न होने के कारण ये ऐतिहासिक स्थल खतरे में पड़ा है। यदि इसे समय रहते नही संभाला गया, तो ये पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।