Delhi High Court: 'सत्य की खोज में कभी देर नहीं होती...', दिल्ली HC ने 2017 के केस को CBI को सौंपा
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2017 में होटल मैनेजर की मौत के मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी है। कोर्ट ने कहा कि सच्चाई की तलाश में कभी देर नहीं होती। जानें पूरा मामला...
दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2017 में एक होटल मैनेजर की मौत के मामले को सीबीआई को सौंपा।
2017 Hotel Manager Death Case: साल 2017 में एक लग्जरी होटल के मैनेजर अर्नव दुग्गल (23) की मौत के मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी गई है। दिल्ली हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। अब सीबीआई अर्नव दुग्गल की मौत की जांच कर पता लगाएगी कि यह सुसाइड था या मर्डर। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में दिल्ली पुलिस को भी फटकार लगाई है।
कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की 'आलसी और अदूरदर्शी जांच' के लिए आलोचना की है। जस्टिस तुषार राव गेडेला ने कहा कि अपराध के ऐसे अनेक मामले हैं, जहां जांच चुनौतियों पर विजय पाकर दशकों बाद आखिर में सफल हुई, क्योंकि फोरेंसिक प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण भौतिक साक्ष्यों की दोबारा जांच संभव हो पाई है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मृतक अर्नव दुग्गल की मां ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसमें उन्होंने केस को सीबीआई के हाथों में सौंपने की मांग की थी। याचिका में कहा गया कि जून 2017 में अर्नव दुग्गल की रहस्यमय और संदिग्ध परिस्थितियों में मेघा तिवारी नामक एक महिला के घर पर मौत हो गई थी। उस महिला के साथ कथित तौर पर अर्नव के संबंध थे।
पुलिस अधिकारियों ने मृतक के परिजनों को बताया कि उनके बेटे ने पंखे से लटककर सुसाइड कर लिया है। इस मामले में जांच करने लायक कुछ नहीं है। पुलिस का कहना था है कि कमरे के हालात को देखते हुए यह सुसाइड का ही मामला है, जिसके चलते पुलिस ने आगे जांच करने से मना कर दिया। याचिका में कहा गया कि किसी भी पुलिस अफसर ने उनके बेटे का शव सीलिंग फैन से लटका हुआ नहीं देखा था।
दिल्ली पुलिस का तर्क
हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से वकील अनमोल सिन्हा पेश हुए। उन्होंने कोर्ट को बताया कि अलग-अलग रैंक के अफसरों ने किसी भी बाहरी दखल के बिना तीन अलग-अलग बार इस मामले की जांच की थी। जो किसी भी तरह से लापरवाही वाली नहीं थी। वकील ने कहा कि मर्डर की थ्योरी बिना किसी सबूत के मनगढ़ंत कहानी है।
दिल्ली पुलिस की ओर तर्क दिया गया कि मेडिकल सबूतों और बयानों के आधार पर साफ तौर पर सुसाइड से मौत की संभावना का पता चलता है। ऐसे में मर्डर के एंगल से घटना की जांच करने की कोई गुंजाइश नहीं बचती है।
कोर्ट ने क्या कहा?
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि न सिर्फ जांच अधिकारी द्वारा की गई जांच में महत्वपूर्ण और भौतिक खामियां पाई गईं, बल्कि क्राइम ब्रांच और एसआईटी द्वारा भी एक ही कहानी दोहराई गई। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने यह नतीजा निकाला कि युवक की मौत सुसाइड थी, लेकिन वे इसके असली कारणों को समझाने या इस नतीजे का समर्थन करने वाला कोई सबूत पेश नहीं कर पाए।
अदालत ने कहा कि मौत का संभावित कारण फांसी लगने से दम घुटना है, लेकिन जांच अधिकारियों ने यह स्पष्ट नहीं किया कि मरने वाले ने सुसाइड क्यों किया होगा। यहां तक की रिकॉर्ड में ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे यह पता चले कि मरने वाला व्यक्ति डिप्रेशन में था या उसमें आत्महत्या की प्रवृत्ति थी।
कोर्ट ने सीबीआई को दिए ये निर्देश
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस यह जांच करने में नाकाम रही कि क्या इस मामले में उकसावे को कोई तत्व शामिल था। यह जांच करने की बजाय एकतरफा जांच की गई, जो सिर्फ उस महिला के बयान पर आधारित थी, जिसके साथ कथित तौर पर मृतक अर्नव दुग्गल के संबंध थे। अदालत ने पुलिस ने जांच में आस-पास के हालात की इन्वेस्टिगेटिव, एनालिटिकल या साइंटिफिक जांच किए बिना, सिर्फ सुसाइड थ्योरी पर भरोसा किया गया।
याचिकाकर्ता को राहत देते हुए हाईकोर्ट ने सीबीआई को मौत की परिस्थितियों की नए सिरे से जांच करने का निर्देश दिया। अदालत ने दिल्ली पुलिस की मामले से जुड़े सभी रिकॉर्ड और सबूत सीबीआई को सौंपने के निर्देश दिए। साथ ही कोर्ट ने एजेंसी को यह निर्देश भी दिया कि अगर जांच करने के मामले में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों द्वारा कोई चूक हुई है, तो उसकी भी जांच की जाए।
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