Al Falah University: अल-फलाह यूनिवर्सिटी की बढ़ी मुश्किलें, फाउंडर ने मरे हुए लोगों की जमीनों का किया सौदा
अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़ा बड़ा खुलासा हुआ है। पता चला है कि फाउंडर जवाद अहमद सिद्दीकी ने फर्जी कागजात के जरिए मरे हुए लोगों की जमीन हथियाई है।
अल-फलाह ग्रुप के फाउंडर जवाद अहमद सिद्दीकी।
Al Falah University: 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास हुए कार धमाके में जांच एजेंसियां रोजाना नए खुलासे कर रही है। इसकी जांच देश के कई कोनों के साथ ही अल-फलाह यूनिवर्सिटी के आसपास घूमती भी नजर आ रही है। अब अल-फलाह यूनिवर्सिटी को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है।
बता दें कि अल-फलाह ग्रुप के फाउंडर जवाद अहमद सिद्दीकी पर करोड़ों की जमीन को फर्जी कागजात के जरिए हथियाने का नया आरोप लगाया गया है। हालांकि वे पहले से ही मनी लॉन्ड्रिंग और दिल्ली धमाके से जुड़ी जांच मामले में हिरासत में हैं।
वहीं अब अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़ी जांच में पता चला है कि दिल्ली के मदनपुर खादर में खसरा नंबर 792 में कीमती जमीनों को जवाद अहमद सिद्दीकी ने धोखे से हासिल किया था। जवाद के तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन ने एक नकली जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (GPA) के जरिए धोखे से हासिल की थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ये जमीन साउथ दिल्ली में एक खास जगह पर फैली हुई है। इस जीपीए में दशकों पहले मर चुके लोगों के हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान लगाए गए हैं। ये नकली जीपीए 7 जनवरी 2004 का है। इसमें कई को-ओनर्स के अधिकारी विनोद कुमार/पुत्र-भूले राम के पक्ष में ट्रांसफर करने का दावा किया गया है।
हालांकि इसमें हैरानी वाली बात ये है कि इस GPA पर दिखने वाले सिग्नेचर और अंगूठे के निशान ऐसे लोगों के हैं, जो बताई गई तारीख से सालों पहले मर चुके हैं।
सूत्रों के अनुसार, 7 जनवरी 2024 को तैयार इस फर्जी GPA में कई ऐसे लोगों के नाम हैं, जो साल 1972 से 1998 के बीच मर चुके हैं। इन मरे हुए लोगों को 2004 में 'जमीन बेचने वाले' के तौर पर दिखाया गया है। एक अधिकारी ने इन कागजातों को पूरी तरह से फर्जी और अवैध दस्तावेज बताया है।
उन्होंने कहा कि मृत व्यक्ति कभी GPA नहीं कर सकता है। इस फर्जी जीपीए के आधार पर 27 जून 2013 की एक रजिस्टर्ड सेल डीड बनाई गई। इसके जरिए जमीन को 75 लाख रुपये में तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन को ट्रांसफर किया गया।
विनोद कुमार ने कई को-ओनर्स के तौर पर डीड साइन की। इनमें वे लोग भी शामिल थे जो बहुत पहले मर चुके थे। इन कागजातों को इस तरह पेश किया गया कि वे जिंदा थे और उनकी सहमती से ही जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी बनाई गई। जांच एजेंसियों ने पाया कि सभी GPA फर्जी थे और उनके फर्जी साइन बनाकर, फर्जी दस्तावेज बनाए गए थे। इनका सीधा फायदा तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन को मिला था।