BJP प्रत्याशी संजीव चौरसिया की बायोग्राफी: एक क्लिक में जानिए उम्र, शिक्षा, परिवार, संपत्ति और राजनीतिक सफर

जानिए बीजेपी कैंडिडेट संजीव चौरसिया की उम्र, शिक्षा, परिवार, जाति, संपत्ति और राजनीतिक करियर की पूरी जानकारी। बिहार चुनाव 2025 के उम्मीदवार की जीवनी पढ़ें।

Updated On 2025-11-02 13:51:00 IST

Sanjiv Chaurasia Biography

Sanjiv Chaurasia Biography: गंगा की गोद में बसी दीघा विधानसभा सीट सिर्फ एक इलाका नहीं, बल्कि बिहार की सियासत की नब्ज़ है। यह राज्य की सबसे बड़ी वोटर बेस वाली सीट मानी जाती है, जहां कायस्थ, राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और यादव जैसे समुदायों का घना जनसांख्यिक मिश्रण है। बाढ़, ट्रैफिक और बेरोजगारी यहां की रोजमर्रा की चुनौतियां हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में, 6 नवंबर को इसी सीट पर मुकाबला होगा, जहां भाजपा ने एक बार फिर अपने भरोसेमंद नेता डॉ. संजीव चौरसिया को मैदान में उतारा है।


कौन हैं डॉ. संजीव चौरसिया?

56 वर्षीय डॉ. संजीव चौरसिया भाजपा के दो बार के विधायक हैं। वे न सिर्फ एक शिक्षाविद् हैं, बल्कि एक जनसेवक के रूप में पहचाने जाते हैं। पूर्व सिक्किम राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया के पुत्र होने के बावजूद उन्होंने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। 2015 और 2020 दोनों चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद, वे अब तीसरी बार मैदान में हैं।

संजीव चौरसिया का मानना है-

“सेवा ही असली राजनीति है, और जनता का विश्वास सबसे बड़ा सम्मान।”


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: संघर्ष से निकली प्रतिभा

संजीव चौरसिया का जन्म 6 जुलाई 1969 को पटना जिले में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों से प्राप्त की और फिर रांची विश्वविद्यालय से एम.कॉम और पीएचडी की डिग्री हासिल की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने शिक्षण और समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य किया, लेकिन जल्द ही राजनीति को अपना जीवन समर्पित कर दिया।

छात्र जीवन में ही वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े और भाजपा की विचारधारा से प्रेरित हुए।

वे अक्सर कहते हैं- “मैं सत्ता से नहीं, संघर्ष से निकला हूं। शिक्षा ने मुझे समाज के लिए सोचने की शक्ति दी।”


परिवार और जाति: राजनीतिक विरासत का आधार

डॉ. चौरसिया का परिवार बिहार की राजनीति में जाना-पहचाना है। वे चौरसिया जाति (ओबीसी) से आते हैं, जो बिहार में व्यापार और राजनीति दोनों में सक्रिय समुदाय है।

उनके पिता गंगा प्रसाद चौरसिया भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे और बाद में सिक्किम के राज्यपाल बने।

संजीव की पत्नी गृहिणी हैं और उनके दो बच्चे हैं- एक बेटा और एक बेटी। परिवार पटना में निवास करता है, जबकि बक्सर से उनका गहरा नाता है। वे अक्सर वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव जैसे आयोजनों में शामिल होते हैं।

जातिगत समीकरणों में चौरसिया समाज का समर्थन उन्हें ओबीसी वोट बैंक में मजबूत बनाता है। वे कहते हैं- “मेरा परिवार राजनीति नहीं, सेवा का प्रतीक है।”

संपत्ति और पारदर्शिता

चुनावी हलफनामे के अनुसार, उनकी कुल संपत्ति लगभग 7.7 करोड़ रुपये है। इसमें पटना में आवास, वाहन और बैंक जमा शामिल हैं।

उन पर कोई बड़ा कर्ज नहीं है।

वे अपनी आर्थिक स्थिति को पारदर्शी बताते हुए कहते हैं- “मेरी संपत्ति जनता की सेवा का साधन है, न कि व्यक्तिगत विलासिता का।”

बिहार चुनाव 2025 में जहां धनबल की चर्चा है, वहां उनकी सादगी और पारदर्शिता एक अलग पहचान बनाती है।

राजनीतिक सफर: सेवा से सत्ता तक

डॉ. संजीव चौरसिया का राजनीतिक सफर 1990 के दशक में भाजपा की युवा इकाई से शुरू हुआ।

2015: पहली बार दीघा विधानसभा से भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ा और जेडीयू के राजीव रंजन प्रसाद को लगभग 24,779 वोटों से हराया।

2020: दूसरी बार विजयी हुए, इस बार उन्होंने सीपीआई(एमएल) की शशि यादव को 46,000 से अधिक वोटों से मात दी।


वे वर्तमान में भाजपा बिहार इकाई के प्रदेश महामंत्री और उत्तर प्रदेश भाजपा के सह-प्रभारी हैं, जो उनकी संगठनात्मक क्षमता को दर्शाता है।

दीघा में उनके कार्यकाल के दौरान सड़कों, बिजली, जल निकासी और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ। उन्होंने कोविड-19 के दौरान मुफ्त चिकित्सा शिविर लगाए और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्यों का नेतृत्व किया।

2025 का चुनाव: विकास बनाम जातिवाद

तीसरी बार उम्मीदवार बनाए जाने के बाद उन्होंने कहा- “यह जनता का विश्वास है, जिसे मैं विकास में बदलना चाहता हूं।” वे जातिवाद के विरोधी हैं और मानते हैं कि “विकास ही असली जाति है।”

उनका एजेंडा साफ है-

  • शहरी बुनियादी ढांचे का विकास
  • ट्रैफिक और बाढ़ समस्या का समाधान
  • युवाओं के लिए स्किल डेवलपमेंट केंद्र
  • गंगा किनारे आधुनिक आवास और हरित क्षेत्र

बहरहाल, डॉ. संजीव चौरसिया की यात्रा एक शिक्षाविद् से सफल जनसेवक बनने की प्रेरणादायक कहानी है। उन्होंने दिखाया कि राजनीति केवल सत्ता का माध्यम नहीं, बल्कि सेवा का रास्ता भी हो सकती है।

दीघा की जनता के बीच उनका विश्वास और कामकाज 2025 के चुनाव में निर्णायक साबित हो सकता है। उनकी कहानी बिहार की नई राजनीति का आईना है, जहां सेवा, ईमानदारी और विकास सबसे बड़ा मंत्र बनते जा रहे हैं।

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