आरएसएस शताब्दी समारोह: RSS प्रमुख मोहन भागवत ने राष्ट्रीय एकता से लेकर आत्मनिर्भर भारत तक दिए बड़े संदेश, जानें मुख्य बातें

आरएसएस शताब्दी विजयादशमी 2025 पर नागपुर में मोहन भागवत का भाषण। आतंकवाद, आत्मनिर्भरता, पर्यावरण और भारत की वैश्विक नेतृत्व भूमिका पर दिए बड़े संदेश। जानें भाषण की मुख्य बातें।

Updated On 2025-10-02 10:46:00 IST

संघ प्रमुख मोहन भागवत

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी विजयादशमी समारोह में सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने वार्षिक भाषण में आतंकवाद, राष्ट्रीय एकता, आत्मनिर्भरता, पर्यावरण संरक्षण और भारत की वैश्विक भूमिका पर स्पष्ट संदेश दिए।

मोहन भागवत का संबोधन राष्ट्रीय एकता, आत्मनिर्भरता, पर्यावरण संरक्षण, और वैश्विक नेतृत्व पर केंद्रित है। वे चाहते हैं कि भारत मजबूत, स्वावलंबी, और पर्यावरण के प्रति जागरूक बने, साथ ही दुनिया के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करे।

आतंकवाद और राष्ट्रीय एकता

मोहन भागवत ने एक आतंकी हमले का जिक्र किया, जिसमें सीमा पार से आए आतंकवादियों ने 26 भारतीयों की हत्या कर दी थी। इस घटना ने पूरे देश को शोक और गुस्से में डुबो दिया। लेकिन सरकार और सशस्त्र बलों ने पूरी तैयारी के साथ इसका माकूल जवाब दिया। इस एकता और साहस ने देश में एक आदर्श माहौल बनाया। इस घटना ने यह भी दिखाया कि कौन से देश भारत के सच्चे मित्र हैं और देश के भीतर कुछ असंवैधानिक तत्व देश को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं।

संदेश: हमें एकजुट रहकर देश की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी।

आत्मनिर्भरता और वैश्विक संबंध

भागवत ने अमेरिका की नई टैरिफ नीति का उदाहरण देते हुए कहा कि हर देश अपने हितों को प्राथमिकता देता है। लेकिन आज की दुनिया में कोई भी देश अकेला नहीं रह सकता। सभी देश एक-दूसरे पर निर्भर हैं। भारत को स्वदेशी और आत्मनिर्भरता पर जोर देना चाहिए, ताकि हम मजबूरी में न फंसें। साथ ही, हमें बिना दबाव के सच्चे मित्र राष्ट्रों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखने चाहिए।

संदेश: आत्मनिर्भर बनें, लेकिन दुनिया के साथ सकारात्मक रिश्ते भी बनाए रखें।

प्राकृतिक आपदाएँ और हिमालय की चिंता

भागवत ने बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूस्खलन और भारी बारिश पर चिंता जताई। पिछले 3-4 सालों में यह पैटर्न बढ़ा है। हिमालय न केवल हमारी सुरक्षा दीवार है, बल्कि दक्षिण एशिया के लिए जल का स्रोत भी है। अगर मौजूदा विकास का तरीका इन आपदाओं को बढ़ा रहा है, तो हमें अपने विकास के मॉडल पर दोबारा विचार करना होगा।

संदेश: पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास पर ध्यान देना जरूरी है।

सरकार और जनता का रिश्ता

भागवत ने कहा कि जब सरकार जनता की समस्याओं से अनजान रहती है या उनके हित में नीतियाँ नहीं बनाती, तो लोग नाराज हो जाते हैं। लेकिन हिंसक विरोध या क्रांतियाँ इसका हल नहीं हैं। इतिहास बताता है कि हिंसक क्रांतियों से कोई बड़ा लक्ष्य हासिल नहीं हुआ। उल्टा, इससे बाहरी ताकतों को देश में दखल देने का मौका मिलता है।

संदेश: जनता और सरकार के बीच संवाद जरूरी है, और हिंसा के बजाय रचनात्मक तरीके अपनाए जाएँ।

भारत की वैश्विक भूमिका:भागवत ने कहा कि दुनिया भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए भारत को एक मिसाल बनना होगा और दुनिया को रास्ता दिखाना होगा।

संदेश: भारत को वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभानी होगी।

हिंदू राष्ट्रवाद और संस्कृति

मोहन भागवत ने कहा कि हमारी संस्कृति और विविधता को पूर्ण रूप से स्वीकार करना ही राष्ट्रवाद है, जिसे हम हिंदू राष्ट्रवाद कहते हैं। 'हिंदवी', 'भारतीय', और 'आर्य' जैसे शब्द 'हिंदू' के पर्यायवाची हैं।

भारत में राष्ट्र का आधार हमारी संस्कृति है, न कि केवल राज्य। राज्य आते-जाते हैं, लेकिन संस्कृति और राष्ट्र हमेशा बने रहते हैं। यही हमारा प्राचीन हिंदू राष्ट्र है, जो हर उतार-चढ़ाव, गुलामी और आजादी से उबरकर मजबूत रहा है। एकजुट और जिम्मेदार हिंदू समाज देश की सुरक्षा और अखंडता की गारंटी है। हिंदू समाज 'हम और वे' की मानसिकता से मुक्त रहा है।

संदेश: हमारी संस्कृति हमें एकजुट करती है। हिंदू राष्ट्रवाद का मतलब है सभी को साथ लेकर चलना और समाज को मजबूत बनाना।

विविधता में एकता

भागवत ने कहा कि भारत ने हमेशा विदेशी विचारधाराओं को अपनाया और विविधता को स्वीकार किया। लेकिन कुछ लोग इस विविधता को भिन्नता में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे शब्द किसी की आस्था या विश्वास का अपमान न करें।

जहां विविध मान्यताएं एक साथ रहती हैं, वहां थोड़ा-बहुत शोर या अराजकता हो सकती है। लेकिन हमें कानून और सद्भाव का पालन करना चाहिए। हिंसा, गुंडागर्दी, या सड़कों पर उतरकर कानून को अपने हाथ में लेना गलत है। किसी समुदाय को भड़काना या शक्ति प्रदर्शन करना सुनियोजित साजिश का हिस्सा है।

संदेश: विविधता हमारी ताकत है। हमें सद्भाव बनाए रखना चाहिए और हिंसा या उकसावे से बचना चाहिए।

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