भारतीय मुद्रा में गिरावट का क्रम जारी, 90.56 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचा रुपया

भारत का रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर 90.56 पर क्यों पहुंचा? डॉलर की मजबूती, FPI बिकवाली, महंगे आयात और व्यापारिक अनिश्चितता ने कैसे बढ़ाई मुश्किलें, जानें सरल भाषा में पूरी रिपोर्ट।

Updated On 2025-12-12 10:43:00 IST

(एपी सिंह ) मुंबई। भारतीय रुपया 12 दिसंबर की सुबह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरकर 90.56 के नए ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया। यह गिरावट कई आर्थिक और वैश्विक कारकों का परिणाम है और इसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था, कारोबार, आयात-निर्यात और आम उपभोक्ताओं पर सीधे तौर पर पड़ने वाला है। रुपए का कमजोर होना यह संकेत देता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की तुलना में भारतीय मुद्रा की क्रय क्षमता घट गई है। इसका एक मुख्य कारण अमेरिका के साथ व्यापार समझौते का न होना और वैश्विक अनिश्चितता में निवेशकों द्वारा सुरक्षित निवेश माने जाने वाले डॉलर की ओर झुकाव है।

जब विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकालते हैं, तो डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपया नीचे आता है। रुपए की यह कमजोरी यह भी दिखाती है कि देश में आयात अधिक महंगे हो रहे हैं। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों, कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक सामान और सोना-चांदी जैसे धातुओं का बड़ा हिस्सा आयात करता है। जब रुपया गिरता है तो इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिसका अंतिम असर महंगाई पर पड़ता है। खासकर तेल का महंगा होना परिवहन लागत बढ़ाता है और इसकी वजह से आवश्यक वस्तुओं तक की कीमतें बढ़ने लगती हैं। यही वजह है कि रुपए की गिरावट आम आदमी के दैनिक जीवन पर भी असर डालती है।

दूसरी ओर, निर्यात करने वाली कंपनियों के लिए ऐसी स्थिति कुछ हद तक फायदेमंद मानी जाती है, क्योंकि उन्हें डॉलर में अधिक मूल्य मिलता है। लेकिन जब वैश्विक मांग कमजोर हो या व्यापारिक अनिश्चितता ज्यादा हो, तो निर्यात का यह लाभ भी सीमित हो जाता है। रुपए पर दबाव का एक और प्रमुख कारण आयातकों द्वारा डॉलर की बड़ी मात्रा में खरीद है। हाल के सप्ताहों में सोना और अन्य कीमती धातुओं की अंतरराष्ट्रीय कीमतें बढ़ी हैं, जिसके कारण भारतीय आयातकों को अधिक डॉलर की आवश्यकता पड़ रही है। यह बढ़ी हुई मांग रुपये को और नीचे धकेल रही है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा सूचकांक (डॉलर इंडेक्स) में मामूली बढ़त भी रुपए जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं को कमजोर बनाती है। डॉलर की मजबूती के साथ-साथ विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) द्वारा लगातार बिकवाली भी रुपए पर दबाव बढ़ा रही है। कुल मिलाकर, रुपए का 90.56 पर पहुंचना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है क्योंकि यह महंगाई बढ़ा सकता है, आयात लागत में इजाफा कर सकता है और विदेशी निवेशकों के विश्वास को कमजोर कर सकता है। सरकार और रिजर्व बैंक को स्थिति को स्थिर करने के लिए मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप और नीतिगत कदम उठाने पड़ सकते हैं, ताकि रुपए में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोका जा सके।

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