कैशलेस इलाज पर टकराव: अस्पताल और बीमा कंपनियों की जंग में फंसे मरीज, 1 सितंबर से बंद हो सकता इलाज!
Cashless treatment standoff:अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच कैशलेस इलाज पर शुरू हुआ विवाद अबतक सुलझा नहीं है। एएचपीआई ने 1 सितंबर से बजाज आलियांज और केयर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी होल्डर्स को कैशलेस सेवाएं देने पर रोक लगाने की चेतावनी दी है।
Cashless treatment standoff
Cashless treatment standoff: कैशलेस इलाज को लेकर बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच टकराव जारी है। अगर ये विवाद जल्दी नहीं सुलझा तो सबसे ज्यादा मार मरीजों और पॉलिसीहोल्डर्स को होगी। मामला एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स ऑफ इंडिया और बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के बीच दरों को लेकर अटका हुआ है।
एएचपीआई ने 22 अगस्त को अपने सदस्य अस्पतालों को निर्देश दिया था कि वो 1 सितंबर से बजाज आलियांज और केयर हेल्थ इंश्योरेंस के ग्राहकों को कैशलेस सुविधा देना बंद कर दें।
कैशलेस इलाज पर रार
एएचपीआई का कहना है कि कोरोना के बाद से अस्पतालों की लागत बढ़ी है। लेकिन बीमा कंपनियां अब भी पुराने रेट पर ही भुगतान कर रहीं। अस्पतालों का आरोप है कि बीमा कंपनियां बार-बार भुगतान में कटौती करती हैं। क्लेम निपटाने में जानबूझकर देरी करती हैं और डिस्चार्ज अप्रूवल में भी वक्त लगाती हैं।
दूसरी तरफ, बजाज आलियांज का कहना है कि अस्पताल मनमाने तरीके से इलाज की दरें बढ़ा रहें। कंपनी का कहना है कि वह दरें बढ़ाने को तैयार हैं लेकिन सभी अस्पतालों के लिए एक जैसा इजाफा नहीं होगा, बल्कि अलग-अलग अस्पतालों से बातचीत कर रेट तय किए जाएंगे।
बीमा कंपनियों का पलटवार
26 अगस्त को जनरल इंश्योरेंस काउंसिल ने अस्पतालों के कदम को मनमाना करार देते हुए इसे सीधे मरीजों के हितों के खिलाफ बताया था। काउंसिल के मुताबिक, अचानक लिया गया यह फैसला लोगों में डर और घबराहट फैला रहा और हेल्थ इंश्योरेंस सिस्टम पर भरोसा कमजोर कर रहा।
कैशलेस इलाज नहीं मिला तो रीइंबर्समेंट कराना होगा
अगर किसी अस्पताल में कैशलेस सुविधा बंद हो जाती है, तो मरीजों को इलाज के पैसे पहले अपनी जेब से देने होंगे। बाद में सभी जरूरी डॉक्यूमेंट्स और असली बिल जमा करने पर बीमा कंपनी खर्च का भुगतान सीधे बैंक खाते में कर देगी।
विशेषज्ञों के मुताबिक, आमतौर पर रीइंबर्समेंट क्लेम 15 दिन में निपट जाता है, बशर्ते कागजात पूरे हों और अस्पताल ब्लैकलिस्ट न हो। हालांकि, लगभग 5 फीसदी मामलों में बीमा कंपनी जांच भी करती है।
मरीजों के लिए जरूरी सावधानियां
अगर आप प्लांड सर्जरी या इलाज के लिए जा रहे तो पहले ही बीमा कंपनी को इसकी जानकारी दे दें। 24 घंटे के भीतर इमरजेंसी एडमिशन की जानकारी देना जरूरी है। सभी ओरिजिनल बिल और डॉक्यूमेंट सुरक्षित रखें। क्लेम रिजेक्ट होने पर कारण जानें और जरूरत हो तो इंश्योरेंस ओम्बड्समैन या उपभोक्ता अदालत का रुख कर सकते हैं।
फिलहाल, सभी की निगाहें 1 सितंबर पर टिकी हैं। अगर तब तक समझौता नहीं हुआ, तो हजारों मरीजों का कैशलेस इलाज बंद हो जाएगा और उन्हें पहली अपनी जेब से पैसा भरना होगा और बाद में क्लेम करना होगा।
(प्रियंका कुमारी)