रेवाड़ी में छठ पूजा की तैयारी: नहाय-खाय के साथ कल से शुरू होगा पूर्वांचल वासियों का पर्व, शहर में बनाए अस्थाई घाट 

Shops selling puja materials decorated in the market for Chhath festival.
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छठ पर्व को लेकर बाजार में सजी पूजन सामग्री की दुकान। 
रेवाड़ी में छठ पूजा को लेकर पूर्वांचल की संस्थाओं ने विशेष तैयारियां की है। छठ पूजा के लिए विशेष घाट तैयार किए गए है, ताकि श्रद्धालुओं को परेशानी न हो।

रेवाड़ी: पूर्वांचल क्षेत्रवासियों का सबसे बड़ा पर्व छठ पूजा पांच नवंबर से शुरू हो रहा है। इस पर्व को मनाने के लिए पिछले कई दिनों से पूर्वांचल की संस्थाएं तैयारियां में जुटी हुई हैं। जिले में रहने वाले पूर्वांचल के हजारों लोगों के साथ स्थानीय लोग और जिला प्रशासन भी इस त्योहार को लेकर सहयोग कर रहे हैं। छठ पर्व पर रेवाड़ी में पूर्वांचल परिवारों की ओर से बड़े स्तर पर छठ पूजा की जाती है। जगह-जगह पर अस्थाई घाट बनाए गए हैं। इस बार छठ पूजा समितियों की तरफ से पिछले साल के मुकाबले बेहतर तैयारियां की गई हैं। शहर में सोलहराही तालाब व कोनसीवास रोड पर बड़ा आयोजन होगा।

कल से शुरू हो जाएगा 4 दिवसीय पर्व

मंगलवार से शुरू होने वाले छठ पर्व को लेकर समितियों ने घाटों पर विशेष प्रबंध किया हैं। पहले दिन नहाय-खाय के साथ यह पर्व शुरू होगा। हालांकि नहाय-खाय की प्रक्रिया श्रद्धालुओं द्वारा घर पर ही की जाएगी। दूसरे दिन बुधवार को खरना, वीरवार को श्रद्धालु सायंकालीन और शुक्रवार को प्रात: कालीन सूर्य देव को अर्ध्य देंगे। खरना में श्रद्धालु दूध व गुड़ से बनी खीर खाकर व्रत रखेंगे। उनका यह उपवास 36 घंटे का होगा। भगवान भास्कर की आराधना के बाद सभी आपस में प्रसाद का वितरण भी करेंगे। संस्थाओं की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाएगा।

छठ पर्व के बारे में है यह धारणा

छठ पर्व के बारे में कहा जाता है कि पूर्वांचल और बिहार में अनिवार्य रूप से लोग छठ मनाते हैं। इस दिन सभी लोग अपने घरों में एकत्रित होते हैं। छठ पर्व के बारे में यह धारणा है कि यह मुख्य रूप से बिहार मूल के लोगों का पर्व है। इस पर्व की शुरूआत अंगराज कर्ण से शुरू हुई मानी जाती है। अंग प्रदेश वर्तमान में भागलपुर है, जो बिहार में है। अंगराज कर्ण के विषय में कथा है कि यह पाण्डवों की माता कुंती और सूर्यदेव की संतान हैं। कर्ण अपना आराध्य देव सूर्य देव को मानते थे। वह नियमपूर्वक कमर तक पानी में जाकर सूर्य देव की आराधना करते थे और उस समय जरुरतमंदों को दान भी देते थे। माना जाता है कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी और सप्तमी के दिन कर्ण सूर्यदेव की विशेष पूजा किया करते थे।

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