Surajkund Fair: सूरजकुंड मेले में राजेंद्र बोंदवाल की कृतियां जीत रही लोगों का दिल, इस अवार्ड से नवाजे जा चुके हैं शिल्पकार

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सूरजकुंड मेले में राजेंद्र बोंदवाल की कृतियां जीत रही लोगों का दिल।
Surajkund Fair: हरियाणा के फरीदाबाद में आयोजित किया गए सूरजकुंड मेले में शिल्पकार राजेंद्र बोंदवाल की कृतियां मेले में अपनी खूबसूरती बिखेर रही है।

Surajkund Fair: हरियाणा के फरीदाबाद में आयोजित किया गया सूरजकुंड मेले में शिल्पकार राजेंद्र बोंदवाल की कृतियां पर्यटकों पर अविस्मरणीय छाप छोड़ रही है और मेले में अपनी खूबसूरती बिखेर रही है। हरियाणा के बहादुरगढ़ का विख्यात हस्त शिल्पी राजेंद्र बोंदवाल का परिवार कई दशक से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हस्तशिल्प के क्षेत्र में कलात्मक इतिहास रचता आ रहा है।

चंदन, कदम और अन्य उम्दा किस्म की लकड़ी पर हस्त कारीगीरी में निपुण बोंदवाल परिवार ने पारंपरिक कला को आगे बढ़ाने का काम किया है। शिल्पकार राजेंद्र बोंदवाल इस बार सूरजकुंड मेले में स्टॉल लगा कर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। स्टॉल पर दिनभर कला प्रेमियों की भीड़ लगी रही।

कई कलाकृतियां स्टॉल पर उपलब्ध

बोंदवाल द्वारा बनाए चंदन और लकड़ी के लॉकेट, जानवरों की कृतियां, मालाएं, ब्रेसलेट, खिलौने, देवी-देवताओं की मूर्तियां पर्यटकों को खासी पसंद आ रही हैं। सूरजकुंड मेले में दिल्ली से आए अशोक वत्स, ओजस्वी और नेहा ने बताया कि इस स्टॉल पर एक से बढ़कर एक कलाकृतियां उपलब्ध हैं।

राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है

भारत सरकार द्वारा हरियाणा के कई शिल्पियों को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है। वहीं, चार पुरस्कार बोंदवाल परिवार के नाम रहे हैं। शिल्पकार बोंदवाल ने बताया कि उनके भतीजे चंद्रकांत को साल 2004 में सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। साल 1979 में भाई महाबीर प्रसाद को, 1996 में पिता जयनारायण बोंदवाल और 1984 में राजेंद्र बोंदवाल भी राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हुए।

विदेश भी जा चुके हैं राजेंद्र बोंदवाल

राजेंद्र बोंदवाल ने कहा कि आज आधुनिकता के दौर में कलाकृतियों की मांग सिर्फ भारत में नहीं बल्कि विदेशों में भी बढ़ गई है। सूरजकुंड मेला परिसर में अपनी शिल्प कला का जादू बिखेर रहे प्रसिद्ध शिल्पकार बोंदवाल साल 2015 में महामहिम राष्ट्रपति से शिल्प गुरू अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं। उन्हें ये अवार्ड एक लकड़ी के फ्रेम पर बेहद बारीक कला में पक्षी एवं फूल पत्तियां बनाने के लिए शिल्प के लिए दिया गया था।

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राजेंद्र बोंदवाल को भारत सरकार की ओर से आई.टी.आई. में छात्रों को लकड़ी की कारीगरी दिखाने के लिए नॉर्थ अफ्रीका भी भेजा गया था। वर्तमान समय में शिल्पी राजेंद्र बोंदवाल अपनी कृतियों के माध्यम से पर्यटकों को कला की इस विधा से रूबरू करा रहे हैं।

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