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हरियाणा की राजनीति में 12 मार्च को हुए धमाके की गूंज अब विरोधी खेमे में भी सुनाई देनी लगी है। लोकसभा चुनावों में ओबीसी मतदाताओं के खिसकने के डर से मोदी की ‘नायब’ काट की तलाश करने में जुटी कांग्रेस की निगाह जाट आरक्षण आंदोलन को लेकर सुर्खियों में आए ‘राजकुमार’ पर हैं। जिसकी आहट मात्र से प्रदेश कांग्रेस के एक खेमे की बेचैनी बढ़ने लगी है।

राजनीति में कब क्या हो जाए, कोई कल्पना भी नहीं कर सकता? ऐसा ही कुछ पिछले एक सप्ताह से हरियाणा की सियासत में भी देखने को मिल रहा है। पहले भाजपा ने मनोहर के हाथ से सत्ता की बागडोर छीनकर नायब के हाथ में पकडा दी। जिससे 10 साल बाद इंडिया का साथ लेकर सत्ता में वापसी का सपना देख रहे कांग्रेस आलाकमान बड़ा वोट बैंक खिसकने के डर से मोदी की ‘नायब’ चाल की काट तलाशना शुरू कर दिया है तथा फिलहाल कांग्रेस की 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन को लेकर सुर्खियों में आए ‘राजकुमार’ पर हैं। जिसकी आहट मात्र से प्रदेश कांग्रेस के एक धड़े की बेचैनी बढ़नी शुरू हो गई है। अपने इस प्रयास में कांग्रेस कितनी सफल हो पाती है तथा लोकसभा चुनावों में इससे कितना नफा और कितना नुकसान होता है यह तो 4 जून को मतगणना होने के बाद ही सामने आ पाएगा।

पहले दिन ही बढ़ गई थी दिल की धड़कन

मुख्यमंत्री के रूप में जैसे ही नायब सैनी का नाम सामने आया तो लोकसभा चुनाव की रणनीति बना चुके विपक्ष की धड़कने बढ गई तथा नायब की ताजपोशी को मनोहर की नाकामी से जोड़ने की लाइन पकड़ ली। मनोहर ने मुख्यमंत्री पद छोड़ने के 24 घंटे के अंदर विधायक पद से त्यागपत्र देकर नया अध्याध्य जोड़ दिया। भाजपा ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों में से घोषित अपने छह उम्मीदवारों में करनाल से मनोहर लाल का नाम शामिल कर विपक्ष के हाथ से एक ही झटके में मनोहर को नाकाम बताने का मुद्दा छीनकर नई रणनीति बनाने को विवश कर दिया।

मार्च में कैसे बदली हरियाणा की सियासत 

16 मार्च को लोकसभा चुनावों की घोषणा से चंद रोज पहले अचानक हरियाणा की सियासत में बड़ा बदलाव देखने को मिला। 12 मार्च की सुबह मनोहर लाल के अचानक विधायक दल की बैठक बुलाने से राजनीतिक हवाओं का रूख बदलने लगा व दोपहर होने से पहले भाजपा ने मनोहर लाल की जगह नायब सैनी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी। शाम को हुए शपथ ग्रहण के साथ अनिल विज की नाराजगी की चर्चाएं भी जोर पकड़ती गई। पार्टी से नाराजगी को नकारने के बाद भी नायब सैनी के मंत्रिमंडल विस्तार में देरी को भी अनिल विज की नाराजगी से ही जोड़कर देखा जा रहा है। मंगलवार को करनाल के घरौंडा में होने वाली भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की रैली के बाद विवाद पर विराम लगने की संभावनाएं हैं।  

नवीन जिंदल काे हराकर बने थे सांसद

भाजपा ने 2014 में राजकुमार सैनी को कुरूक्षेत्र लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था तथा कांग्रेस के नवीन जिंदल को हराकर लोकसभा पहुंचे। 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान जाट आरक्षण का विरेाध व ओबीसी के समर्थन में दिए विवादित बयानों से राजकुमार सैनी सुर्खियों में रहे। जिससे उनकी भाजपा से दूरियां बढ़ती गई और सितंबर 2018 में पानीपत में रैली कर लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया। 2019 में बसपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा और फिर विधानसभा चुनाव लड़ा, परंतु सफलता नहीं मिल पाई। 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन में भड़की हिंसा को काफी हद तक उनके विवादित बयानों से भी जोड़ा गया था। चर्चा है कि कांग्रेस अब उन्हें अपने पाले में लाकर भाजपा के नायब सैनी की काट तलाशने के प्रयास में जुटी है। 
       
 

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