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हरियाणा में प्रॉपर्टी आईडी सर्वे में घोटाले के याशी कंपनी पर लगे आरोपों का एंटी करप्शन ब्यूरों ने अपनी प्रारंभिक जांच में सही मानते हुए लोकायुक्त से विस्तृत जांच की मांग की है। इससे अब 12 आईएएस व 88 निकाय अधिकारियों की भूमिका भी संदेश के घेरे में आ गई है। अधिकारियों ने बोगस सर्वें के आरोपों के बावजूद कंपनी को 58 करोड़ की पेमैंट कर दी थी। 

Chandigarh: याशी कम्पनी  के प्रॉपर्टी आईडी सर्वे घोटाले की एंटी करप्शन ब्यूरो की प्राथमिक जांच से करीब 12 आईएएस अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं । लोकायुक्त जस्टिस  हरि पाल वर्मा के आदेश पर की  गई प्राथमिक  जाँच में  एंटी करप्शन ब्यूरो ने फर्जीवाड़े के आरोपों को सही पाते हुए घोटाले के भंडाफोड के लिए विस्तृत खुली जाँच  की जरूरत बताई  है । इसी मामले में लोकायुक्त ने शहरी निकाय विभाग के प्रधान सचिव से भी जाँच रिपोर्ट मांग रखी है,मामले की सुनवाई 11 जनवरी को होगी ।

शिकायत के बाद ब्लैक लिस्ट की थी कंपनी, रोके थे 8 करोड़

आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने  लोकायुक्त जस्टिस हरि पाल वर्मा को गत वर्ष 19 जुलाई को निकाय मंत्री कमल गुप्ता, 12 आईएएस सहित शहरी निकाय विभाग के 88 अधिकारियों के खिलाफ़ शिकायत देकर याशी कम्पनी के  प्रॉपर्टी आईडी सर्वे में घोटाले के गम्भीर आरोप लगाए थे। लोकायुक्त का नोटिस मिलते ही सरकार ने याशी कम्पनी को ब्लैक लिस्ट  करते हुए 8 करोड़ रुपये की बकाया पेमेंट रोक दी थी व लाखों रुपये की परफॉर्मेंस बैंक गारन्टी भी जब्त कर ली थी । आरोप लगाया था कि प्रॉपर्टी  आईडी का सर्वे बोगस होने के बावजूद अधिकारियों ने 58 करोड़ रुपये की पेमेंट  कम्पनी को कर दी। इस बोगस सर्वे की त्रुटियों को ठीक कराने के लिए पब्लिक धक्के खा रही है।

लोकायुक्त के आदेश  पर  की गई  अपनी प्राथमिक जाँच में एंटी करप्शन ब्यूरो (मुख्यालय) के डीएसपी शुक्र पाल ने पीपी कपूर के आरोपों को सही पाते हुए घोटाले के पूरे खुलासे के लिए विस्तृत खुली जाँच की मांग की है ।बताया कि मामले में  फर्जीवाड़े की जांच पूरे रिकॉर्ड को अपने कब्जे में लिए बगैर और सम्बन्धित अधिकारियों के ब्यान लिए बगैर सम्भव नहीं है ।

एंटी करप्शन ब्यूरो की प्राथमिक जाँच में ये मिला

टेंडर एग्रीमेंट की  शर्त मुताबिक याशी कम्पनी को भुगतान से  पहले सर्वे की गई  सम्पतियों में से 10 पर्सेंट सम्पत्तियों का फिजिकल वेरिफिकेशन पालिका सचिवों  नगर परिषदों के  ई ओ और नगर निगमों के जिला पालिका आयुक्तों को  करना था । लेकिन य़ह कार्य  सही ढंग से नहीं किया गया। इन अधिकारियों ने  इस फिजिकल वेरिफिकेशन का रिकॉर्ड भी उचित ढंग से नहीं रखा, जिससे इस पूरे सर्वे कार्य के सही और प्रमाणिक होने का पता चल पाए। इसी के आधार पर साइन ऑफ सर्टिफिकेट्स जारी करके याशी कम्पनी को करोड़ों रुपये की पेमेंट कर दी। इसमें अधिकारियों की लापरवाही नजर आती है।

सर्वे में पांच प्रतिशत गलती मान्य

टेंडर एग्रीमेंट अनुसार  याशी कम्पनी के प्रॉपर्टी आईडी सर्वे में 5 पर्सेन्ट तक  त्रुटियां स्वीकार्य होनी थी।लेकिन फिजिकल वेरिफिकेशन के उपरांत अधिकारियों द्वारा जारी किए गए साईन ऑफ सर्टिफिकेट्स में  5 पर्सेन्ट की निर्धारित सीमा के अंदर त्रुटियों का  बताया जाना उचित प्रतीत नहीं होता। इसी प्रकार शहरी निकाय विभाग का नोटिस मिलने के  बावजूद भी  याशी कम्पनी जानबूझ कर जरूरी रिकॉर्ड नहीं सौंप रही है ।  बिना पूरा रिकॉर्ड  अपने कब्जे में लिए और सम्बन्धित अधिकारियों के ब्यान दर्ज  किए बगैर अभी इस मामले में क्रिमिनल पक्ष होने का निष्कर्ष नही  निकाला  जा  सकता। पूरे मामले  का खुलासा करने के लिए  विस्तृत खुली जाँच शुरू करने की जरूरत है।

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