Haryana Congress Politics: कांग्रेस में भूपेंद्र हुड्डा की काट करने वाला कोई नेता नहीं, जानिये कैसे बन गए गांधी परिवार के करीबी

No One Can Replace Bhupender Hooda
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एसआरके ग्रुप भी भूपेंद्र हुड्डा की काट नहीं कर सका।
हरियाणा के पूर्व सीएम बंसीलाल की पुत्रवधु किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। इसे भूपेंद्र हुड्डा की बड़ी जीत मानी जाए या कांग्रेस की बड़ी हार, पढ़िये यह रिपोर्ट...

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पुत्रवधु किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी आज बीजेपी में शामिल हो गई हैं। इस बड़े सियासी उलटफेर पर हरियाणा बीजेपी के दिग्गज नेता अनिल विज ने पहली प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहना है कि एसआरके (कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी) ग्रुप टूट चुका है, तो अच्छी बात है। अगर किरण चौधरी बीजेपी में शामिल हो रही हैं, तो यह और भी अच्छी बात है।

अनिल विज के इस बयान से लगता है कि किरण चौधरी के जाने से कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है। लेकिन, कांग्रेस नेताओं के बयानों को देखें तो उनके जाने से ज्यादातर नेता खुश हैं। विशेषकर, भूपेंद्र हुड्डा के करीबी नेता जश्न मना रहे हैं। तो चलिये जानने का प्रयास करते हैं कि भूपेंद्र हुड्डा आखिरकार इतने मजबूत नेता कैसे बन गए, जिसकी काट फिलहाल किसी कांग्रेसी नेता के पास नहीं है।

भूपेंद्र हुड्डा काे विरासत में मिली राजनीति

भूपेंद्र सिंह हुड्डा का जन्म 15 सितंबर 1947 को हुआ। उनके दादा चौधरी मातुराम हुड्डा सक्रिय राजनीति में थे। भूपेंद्र हुड्डा के पिता रणबीर सिंह हुड्डा भी राजनीति में शामिल हो गए। रणबीर हुड्डा ने 1952 में पहला आम चुनाव लड़ा और कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। इसके बाद 1957 के दूसरे आम चुनाव में भी कांग्रेस से जीत हासिल की। इससे उनका राजनीतिक कद बढ़ गया, लेकिन इसके बाद हुड्डा परिवार से किसी ने भी आम चुनाव नहीं लड़ा। करीब 34 साल बाद रणबीर सिंह हुड्डा के पुत्र भूपेंद्र हुड्डा बड़ी सियासत में उतर आए। उन्होंने पहले ही चुनाव में ऐसा करिश्मा किया, जिससे वे गांधी परिवार के करीबी बन गए।

भूपेंद्र हुड्डा कैसे बन गए गांधी परिवार के करीबी

दरअसल, हरियाणा की राजनीति में तीन लालों यानी देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल का दबदबा रहा था। बात 1991 लोकसभा चुनाव से पहले की है। बताया जाता है कि उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भूपेंद्र हुड्डा को दिल्ली बुलाया था। उन्होंने भूपेंद्र हुड्डा के समक्ष लोकसभा या विधानसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा।

बताया जाता है कि काफी मंथन करने के बाद भूपेंद्र हुड्डा ने देवीलाल के खिलाफ चुनाव लड़ने पर सहमति जता दी। चुनाव नतीजे आए तो हर कोई हैरान रह गया। भूपेंद्र हुड्डा ने अपनी पहली ही पारी में देश के उपप्रधानमंत्री रहे ताऊ देवीलाल को 30573 वोटों से हरा दिया। भूपेंद्र हुड्डा को जहां 241235 वोट मिले, वहीं देवीलाल को 210662 वोट प्राप्त हो सके। इस जीत के साथ ही भूपेंद्र हुड्डा ने ऐसा सियासी कद हासिल कर लिया, जिसकी काट आज भी किसी विरोधी नेता के पास नहीं है।

किरण चौधरी के इस्तीफे का असर कांग्रेस पर पड़ेगा?

एसआरके गुट की अहम नेता किरण चौधरी और उनकी पूर्व सांसद बेटी श्रुति चौधरी के बीजेपी में शामिल होने से कांग्रेस को नुकसान होगा, इसका जवाब स्वयं भूपेंद्र हुड्डा ने दे दिया है। दरअसल, किरण चौधरी ने यह भी आरोप लगाया था कि लोकसभा चुनाव में टिकट सही से नहीं हुआ था। आने वाले समय में भी इसका नुकसान होगा। इस आरोप पर जवाब देते हुए भूपेंद्र हुड्डा ने कहा है कि किरण चौधरी की सोच है कि टिकट वितरण सही नहीं हुआ, लेकिन टिकट वितरण सही हुआ था, इसलिए 5 सीटें जीती हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा है, बीजेपी हाफ हो गई है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी पूरी तरह से साफ हो जाएगी।

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