हरियाणा में भाजपा को रास नहीं आया बदलाव: 11 कमल के फूल खिलाने के दावों को तगड़ा झटका, पांच सीटों पर सिमटी 

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प्रतीकात्मक तस्वीर।
हरियाणा में दस की दस लोकसभा सीटों पर कमल के फूल खिलाने की तैयारी में जुटे भाजपा के सियासी दिग्गजों को तगड़ा झटका लगा। हरियाणा में केवल 5 सीटों पर ही भाजपा सिमट गई।

योगेंद्र शर्मा, हरियाणा: आखिरकार हरियाणा में दस की दस लोकसभा सीटों पर कमल के फूल खिलाने की तैयारी में जुटे भाजपा के सियासी दिग्गजों को तगड़ा झटका लगा। क्योंकि सूबे की दस लोकसभा सीटों में पांच पर हरियाणा के वोटरों ने अब कमल का फूल छोड़कर कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया है। कुल मिलाकर राज्य में 11 कमल खिलाने की रणनीति बनाकर मैदान में उतरे भाजपा के सियासी दिग्गजों के पास अब लोकसभा की पांच ही सीटें रह गई। हालांकि प्रदेश के पूर्व सीएम और लोकसभा करनाल से उम्मीदवार मनोहरलाल ने बड़े अंतर से कांग्रेस के प्रत्याशी दिव्यांशु बुद्धिराजा को पराजित किया है। इतना ही नहीं, उनके शिष्य और सीएम हरियाणा नायब सैनी ने करनाल सीट पर विधानसभा का उपचुनाव जीत लिया है। पार्टी के लिए यह बड़ी उपलब्धि है।

प्रत्याशियों के चयन में चूक, कांग्रेसी चेहरों को नापसंद कर दिया जनता ने

भाजपा के सियासी दिग्गजों ने भले ही लोकसभा चुनावों में फूंक-फूंककर कदम उठाए हों, उसके बावजूद उनसे प्रत्याशियों के चयन में भारी चूक हुई है। एन वक्त पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर को लाकर टिकट थमाना खुद भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को नहीं भाया। इसके अलावा इस बार रोहतक में भी सांसद अरविंद शर्मा के विरुद्ध बन रहे माहौल को प्रदेश भाजपा के दिग्गज भांप नहीं सके। यही कारण रहा कि इन दोनों ही सीटों को भाजपा ने खो दिया। हिसार सीट पर निर्दलीय विधायक और पूर्व में मनोहर सरकार में मंत्री बने चौधरी रणजीत सिंह को भी लोकसभा चुनावों से ठीक पहले पार्टी ज्वाइन कराकर कमल थमा दिया, हालांकि उन्होंने ठीक ठाक चुनाव लड़ा। अनुभवी होने के बाद भी उन्हें यहां पर पराजय का सामना करना पड़ा।

सोनीपत में भी मोहनलाल को बताया जा रहा था कमजोर कड़ी

सोनीपत में सतपाल ब्रह्मचारी को कांग्रेस द्वारा उतार दिए जाने के बाद से ही इस सीट को भी कमजोर बताया जा रहा था। साथ ही इस सीट पर भाजपा के पुराने लोगों में नाराजगी भी पराजय का कारण बनी। शुरुआत से लेकर अंत तक सोनीपत सीट पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधायक मोहनलाल बडौली को कमजोर बताया जा रहा था। नतीजा भी उसी तरह का रहा, हालांकि यहां पर बडौली ने अच्छी टक्कर दी है। अंबाला सुरक्षित सीट पर कांग्रेस द्वारा विधायक वरुण मुलाना को उतारे जाने के बाद में माहौल बदला हुआ था। इस सीट पर फतेह के लिए अंबाला शहर में देश के प्रधानमंत्री ने रैली की और उसका जबरदस्त प्रभाव हुआ, जिसके काऱण बंतो कटारिया बेहद ही कम अंतर से हारी। मोदी की रैली ने उनके चुनाव में जान डाल दी।

जो नहीं समझ सके भाजपा के सियासी दिग्गज

कांग्रेस और विभिन्न पार्टियों को छोड़कर भाजपा की सत्ता में भागीदारी करने वाले चेहरों को जहां भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं और पुराने लोगों ने नापसंद कर दिया। वहीं लंबे अर्से से पार्टी और संगठन का काम करने वालों में भारी निराशा व्याप्त थी। कई विभागों में चेयरमैन और गाड़ी घोड़ा गनमैन लेकर घूम रहे पैराशूट से कूदने वालों को लोगों ने पसंद नहीं किया और अपना गुस्सा चुनाव के दौरान दिखा दिया। इसके अलावा राज्य में पांच सीटे खो देने के पीछे राज्य में कर्मचारी वर्ग की नाराजगी पुरानी पेंशन की मांग भी बड़ा मुद्दा थी। इसके अलावा किसान आंदोलन के कारण जगह जगह प्रत्याशियों के विरोध ने भी माहौल बिगाड़ने का काम किया। किसानों से जुड़े मामले में भी तीन बिलों को वापस लेने और किसान प्रतिनिधियों के साथ में ठीक तरह से संवाद नहीं होना भी नुकसान का कारण रहा।

चुनावी मोड में बदलाव भी नहीं आया रास

भाजपा में चुनाव के ठीक वक्त पर भाजपा सरकार में सीएम को बदला जाना भी भाजपा के लिए फायदे का सौदा नहीं रहा, क्योंकि एन वक्त पर इस तरह के बदलाव को भी कोई ठीक नहीं बता रहा है। भारी भरकम मंत्री अनिल विज की छुट्टी और कुछ नए चेहरों को लिए जाने सहित कई तरह की बातों को भी जनता और पार्टी के शुभचिंतकों ने ठीक नहीं माना, इसलिए अब भाजपा के चिंतकों को हालात पर पुनर्विचार करना होगा।

अति आत्मविश्वास से भरे भाजपा दिग्गज नहीं समझ सके कहानी

भाजपा के सियासी दिग्गज अति आत्मविश्वास के शिकार हुए और जमीनी हकीकत को ना तो खुद समझ सके साथ ही बतौर सलाहकार सत्ता में बैठे अपने वरिष्ठ लोगों तक भी साफ साफ संकेत नहीं दे सके। यहां तक कि सिरसा और अंबाला, रोहतक जैसी सीटों पर सीधे सीधे हार इन्हें दिखाई नहीं दी।

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