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हरियाणा में मुख्यमंत्री का चेहरा बदलकर नायब सैनी को कमान सौंपने के बाद भाजपा से नाराज माने जा रहे पूर्व गृह मंत्री के तरफ पिछले एक सप्ताह से अचानक सरकार का मूव बढ़ा है। पिछले एक सप्ताह में मुख्यमंत्री व नायब सरकार के दो मंत्रियों की घर जाकर अनिल विज से मुलाकात से प्रदेश में भाजपा की सियासत को लेकर एक बार फिर कयासों का दौर शुरू हो गया है।

अचानक बड़े फैसले लेने वाली पार्टी के रूप में देश में अपनी पहचान बना चुकी भाजपा कब क्या करेगी, राजनीतिक पंडितों तो क्या, खुद पार्टी नेताओं तक को इसकी भनक नहीं लग पाती। 12 मार्च को अचानक जजपा से गठबंधन तोड़कर मुख्यमंत्री मनोहर लाल की जगह नायब सैनी को प्रदेश की कमान सौंपकर भाजपा ने सभी को चौका दिया था। 12 मार्च को पांच मंत्रियों के साथ शपथ लेने के ठीक एक सप्ताह बाद 19 मार्च को अपने मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल किए गए आठ चेहरों में से सात नयों को शामिल कर नायब सैनी ने अनिल विज जैसे बड़े चेहरों को बाहर कर सभी को चौका दिया था। नायब सैनी का नाम मुख्यमंत्री के लिए सामने आने के बाद से सीएम की शपथ से लेकर दूसरे मंत्रिमंडल विस्तार तक नायब सैनी व सरकारी कार्यक्रमों से अनिल विज दूर रहे। मुख्यमंत्री बनने के बाद अंबाला पहुंचे नायब सैनी ने भी अपने पहले दो कार्यक्रमों के दौरान विज से दूरी बनाकर रखी। जिसे नायब सैनी के मुख्यमंत्री बनने से विज की नाराजगी को जोड़कर देखा गया। 

असीम गोयल से हुई शुरूआत

19 मार्च के बाद अचानक घटनाक्रम बदला और अचानक हरियाणा सरकार का मूव विज के दरबार की तरफ बढ़ता दिखाया दिया। 20 मार्च को शपथ लेने के बाद सबसे पहले असीम गोयल आशीर्वाद लेने विज के घर पहुंचे। फिर मुख्यमंत्री नायब सैनी अंबाला विज के निवास पर पहुंचे तथा आशीर्वाद लेने के साथ करीब 40 मिनट तक बंद कमरें में विज से चर्चा भी की। रविवार को पहली बार मंत्री परिषद का चेहरा बने महिपाल ढांडा ने घर पहुंचकर विज का आशीर्वाद लिया। जिससे मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सबसे पहले असीम गोयल विज से घर जाकर मिले, फिर मुख्यमंत्री नायब सैनी और रविवार को महिपाल ढांडा विज से मिलने उनके घर पहुंचे। प्रदेश सरकार के अचानक विज की तरफ बढ़े मूव को देश व प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले राजनीतिक पंडितों ने प्रदेश में 25 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले या चुनावों के तुरंत बाद कुछ बढ़ा करने से जोड़कर देखा जा रहा है।

प्रदेश में भाजपा के सबसे अनुभवी नेता

अनिल विज प्रदेश में भाजपा के सबसे सीनियर नेता है। विज के राजनीतिक सफर की शुरूआत मई 1990 में अंबाला कैंट पर हुए उपचुनाव में भाजपा की टिकट पर विधायक बने। 1996 और 2000 में निर्दलीय विधायक चुने गए। 2005 के विधानसभा चुनाव में मात्र 615 वोटों से कांग्रेस के उम्मीदवार से एडवोकेट देवेंद्र बंसल से हारने के बाद 2007 में विकास परिषद पार्टी बनाई। 2009 के चुनाव से पहले भाजपा ज्वाइंन की तथा 2009, 2014 व 2019 में लगातार तीन बार विधायक चुने गए। 2014 से 2024 तक मनोहर सरकार में विज महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे विज को नायब मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। जिसे विज की नायब सैनी व भाजपा नेतृत्व से नाराजगी से जोड़कर देखा गया। विज हमेशा न केवल नाराजगी की चर्चाओं को नकारते रहे, बल्कि खुद को भाजपा का अन्नय भक्त भी बताया। भले ही विज को नायब मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली हो, परंतु 20 मार्च से विज दरबार की तरफ शुरू हुए प्रदेश सरकार के मूव ने प्रदेश भाजपा में अनिल विज के महत्व का संकेत मिलना शुरू हो गया।  
 

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