खुदाई में अग्रोहा की धरती से निकला इतिहास : प्राचीन स्तूप, मंदिर और मानव कंकाल ने खोले रहस्यों के द्वार

खुदाई में अग्रोहा की धरती से निकला इतिहास : हरियाणा के हिसार की ऐतिहासिक धरती अग्रोहा एक बार फिर सुर्खियों में है। यहां चल रही खुदाई के दौरान एक मानव कंकाल मिलने से हलचल मच गई है। पुरातत्व विभाग चंडीगढ़ सर्कल की टीम बीते 45 दिनों से इस टीले की परत-दर-परत इतिहास खंगाल रही है और अब इस ऐतिहासिक स्थल से एक के बाद एक सनसनीखेज खुलासे सामने आ रहे हैं।
शनिवार को 'ए-वन ट्रेंच' नामक खुदाई क्षेत्र से मानव खोपड़ी के अवशेष मिले। हालांकि यह अवशेष टीले की सबसे ऊपरी परत में पाया गया है, जिससे विशेषज्ञ इसे ज्यादा प्राचीन नहीं मान रहे। बावजूद इसके, यह एक अहम सुराग है जो क्षेत्र के अतीत की एक नई परत खोल सकता है।
डिप्टी डायरेक्टर डॉ. अर्कित प्रधान के मुताबिक इस अवशेष की लैब में डीएनए व अन्य वैज्ञानिक परीक्षण कर यह पता लगाया जाएगा कि यह कंकाल किस लिंग, उम्र और कालखंड का है। पूरी संभावना है कि आगामी खुदाई में कंकाल का बाकी हिस्सा भी मिल जाए।
बौद्ध स्तूप और हिंदू मंदिर के प्रमाण मिले
केवल मानव कंकाल ही नहीं, बल्कि इस टीले से निकले साक्ष्य बता रहे हैं कि यह स्थल कभी धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा होगा। पुरातत्व विभाग की डायरेक्टर कामेई अथोइलू काबुई के नेतृत्व में चल रही खुदाई में अब तक एक बौद्ध स्तूप और एक हिंदू मंदिर के अवशेष भी प्राप्त हो चुके हैं। दीवारों के खंडहर, सीढ़ियों के अवशेष, कमल की आकृतियों वाले नक्काशीदार पत्थर, मिट्टी के बर्तन और खेल-खिलौनों जैसी चीजें इस बात की पुष्टि करती हैं कि यह क्षेत्र न केवल व्यापारिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि एक विकसित सभ्यता का केंद्र भी रहा है।
अग्रोहा समाजवाद की पवित्र भूमि रही है
इतिहासकार मानते हैं कि अग्रोहा वही भूमि है जहां से महाराजा अग्रसेन ने समाजवाद का बीज बोया था। यह स्थान प्राचीन भारत में व्यापार और संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था। मगर समय और आक्रमणों की मार ने इसकी भव्यता को धूमिल कर दिया। अब वैश्य समाज और पुरातत्व विभाग के सम्मिलित प्रयासों से एक बार फिर इस गौरवशाली इतिहास को दुनिया के सामने लाने का कार्य हो रहा है। खुदाई के माध्यम से केवल मिट्टी के अवशेष नहीं, बल्कि उस स्वर्ण युग के प्रमाण मिल रहे हैं, जिसने कभी भारत को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाया था।
5 कालखंडों की सभ्यताओं की परतें खुलीं
अभी तक की खुदाई में पांच अलग-अलग सांस्कृतिक कालखंडों के प्रमाण मिले हैं। इन कालखंडों में इंडो-ग्रीक, कुषाण, यौधेय, गुप्त और रोमन प्रभाव दिखाई दे रहे हैं। खुदाई में 7 हजार से ज्यादा कलाकृतियां मिली हैं जिनमें से कुछ बेहद दुर्लभ हैं। विशेष रूप से यहां से प्राप्त सिक्कों का संग्रह उल्लेखनीय है, जिसमें 4 इंडो-ग्रीक सिक्के, एक पंच-मार्क सिक्का और ‘अग्रोदका’ के 51 अन्य सिक्के शामिल हैं। इन सिक्कों की भाषा प्राकृत है और यह दर्शाते हैं कि अग्रोहा एक अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र रहा होगा।
क्या अब अग्रोहा बन सकता है विश्व धरोहर
अग्रोहा टीले की खुदाई में अब तक मिले तथ्यों और कलाकृतियों को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थान विश्व धरोहर की सूची में शामिल होने की पूरी योग्यता रखता है। यहां से मिले अर्ध-कीमती पत्थरों के मोती, तांबे व लोहे के औजार, प्राचीन स्थापत्य शैलियों के अवशेष और धार्मिक चिन्ह इस स्थल को एक जीवंत संग्रहालय बनाते हैं। यदि शोध और संरक्षण का कार्य इसी तरह चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब अग्रोहा विश्वभर के पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों का केंद्र बन जाएगा।
पुरातत्व विभाग खुदाई कार्य को विस्तारित करने की योजना बना रहा
पुरातत्व विभाग फिलहाल खुदाई कार्य को विस्तारित करने की योजना बना रहा है। कंकाल के परीक्षण के परिणाम, मंदिर और स्तूप के विस्तृत नक्शे और नए ट्रेंच की खुदाई आने वाले हफ्तों में इस स्थल से जुड़े और भी राज खोल सकती है। एक ओर जहां विज्ञान इस धरती के भूतकाल की गहराई में उतर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह खुदाई देश की नई पीढ़ी को उनके इतिहास से जोड़ने का माध्यम बन रही है। अग्रोहा की यह गाथा एक बार फिर साबित करती है कि भारत की मिट्टी के नीचे छिपे हैं वो अनमोल रत्न, जिन्हें बस खोजने की देर है।
