राजिम कुंभ कल्प का शुभारंभ : राज्यपाल रमेन डेका हुए शामिल, बोले- यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक

Governor Ramen Deka inaugurating the Rajim Kumbh Kalpa
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राजिम कुंभ कल्प का शुभारंभ करते हुए राज्यपाल रमेन डेका
त्रिवेणी संगम राजिम के पावन तट पर नवीन मेला मैदान राजिम-चौबेबांधा में आयोजित राजिम कुंभ कल्प मेला के शुभारंभ अवसर पर छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमेन डेका मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।

श्यामकिशोर शर्मा- राजिम। त्रिवेणी संगम राजिम के पावन तट पर नवीन मेला मैदान राजिम-चौबेबांधा में आयोजित राजिम कुंभ कल्प मेला के शुभारंभ अवसर पर छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमेन डेका मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलने वाले 15 दिवसीय राजिम कुंभ कल्प के शुभारंभ अवसर पर मुख्य मंच में राज्यपाल श्री डेका एवं मौजूद अतिथियों और संतों ने भगवान राजीव लोचन की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर आशीर्वाद लिया। साथ ही प्रदेश की सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना की।

शुभारंभ अवसर पर राज्यपाल रमेन डेका ने अपने उद्बोधन में कहा कि राजिम की इस पावन भूमि पर जहां महानदी, पैरी और सोंढूर का संगम होता है, वहां एक महत्वपूर्ण आयोजन के साक्षी बनने के लिए हम सभी एकत्र हुए हैं। यह माघी मेला, जिसे हम सभी ‘कल्प कुंभ‘ के नाम से जानते हैं, यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है। हमारे छत्तीसगढ़ का यह मेला न केवल श्रद्धा और आस्था का केंद्र है, बल्कि समाज में एकता, समरसता और परम्परा का सरंक्षण का भी संदेश देता है।

राजीव लोचन मंदिर हमारी आस्था का प्रमुख प्रतीक

राज्यपाल ने कहा आगे कि, राजिम, सदियों से संतों और भक्तों का केंद्र रहा है। यहां का प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर, जो भगवान विष्णु को समर्पित है, हमारी आस्था का प्रमुख प्रतीक है। इसके अलावा, भगवान कुलेश्वर महादेव, रामचंद्र पंचेश्वर महादेव, भूतेश्वर महादेव ,सोमेश्वर महादेव जैसे प्राचीन मंदिर हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत की गहराई को दर्शाते हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला भी हमारे इतिहास की समृद्धि को प्रकट करती है। पंचकोशी यात्रा जिसमें कुलेश्वर, चम्पेश्वर, ब्रह्मनेश्वर, फणीश्वर, कोपेश्वर महादेव शामिल है यह यात्रा विश्व प्रसिद्ध है।

Governor Ramen Deka presenting the memento
प्रतीक चिन्ह भेंट करते हुए राज्यपाल रमेन डेका

शास्त्रों में माघ मास को माना जाता है पुण्य माह

इस वर्ष का राजिम कुंभ मेला और भी खास है, क्योंकि यह उस समय आयोजित हो रहा है जब प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य आयोजन हो रहा है। यह एक अनोखा संयोग है, जो हमें हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता की याद दिलाता है। जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का प्रयागराज में संगम होता है, तो राजिम में महानदी, पैरी और सोढूंर का संगम होता है। यही कारण है कि इसे ‘छत्तीसगढ़ का प्रयागराज‘ भी कहा जाता है। शास्त्रों में माघ मास को पुण्य माह माना गया है और सदियों से इस पावन अवधि में त्रिवेणी संगमों में स्नान की परंपरा चली आ रही है। छत्तीसगढ़ में धार्मिक पर्यटन की परंपरा रही है। राज्य में महामाया मंदिर, बम्लेश्वरी माता, दंतेश्वरी माई, मडकू आइसलैंड जैसे कई ऐतिहासिक, धार्मिक केंद्र हैं, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं।

राज्यपाल ने संतो को किया नमन

छत्तीसगढ़ में मेलों की भी एक महान परंपरा रही है। ये मेले केवल धार्मिक आयोजन नहीं होते, बल्कि समाज और समुदाय को आपस में जोड़ते हैं। परम्परा का अनुभव और नई पीढ़ी का अपनी जड़ों से जुड़ने का यह एक महत्वपूर्ण माध्यम है। आज इस पावन अवसर पर, मैं यहां उपस्थित सभी संतों और अनुयायाई को नमन करता हूं। कहा जाता है कि जहां संतों के चरण पड़ते हैं, वह भूमि स्वयं पवित्र हो जाती है। उनके आशीर्वाद से समाज में ज्ञान, समरसता और सकारात्मक ऊर्जा फैलती है। संतों का जीवन हमेशा परोपकार और मानवता की सेवा के लिए समर्पित रहता है। इतिहास में वाल्मीकि, अजामिल, अंगुलिमाल जैसे कई उदाहरण हैं, जिनका जीवन संतों की कृपा से परिवर्तित हुआ।

राजिम कुंभ कल्प मेला अध्यात्म का केंद्र

राजिम कुंभ कल्प मेला न केवल अध्यात्म का केंद्र है, बल्कि यह हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को भी गति प्रदान करता है। लाखों श्रद्धालु और पर्यटक यहां आकर न केवल शांति का अनुभव करते हैं, बल्कि इस आयोजन के माध्यम से समाज में भाईचारे और एकता का संदेश भी फैलता है। मैं इस भव्य आयोजन की सफलता के लिए छत्तीसगढ़ सरकार और स्थानीय प्रशासन को शुभकामनाएं देता हूं। यह कल्प कुंभ न केवल हमारी धार्मिक आस्था को सशक्त करता है, बल्कि राज्य के पर्यटन और आर्थिक विकास में भी अहम भूमिका निभाता है। उन्होंने सभी श्रद्धालुओं, पर्यटकों और आयोजन में शामिल सभी लोगों से कहा कि हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेजें और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं। हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हमारी पहचान है, और इसे सरंक्षण करना हमारा दायित्व है।

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