अधर में लटकी शिक्षा व्यवस्था : नक्सल प्रभावित इलाकों में 4 महीनों से नहीं मिला है शिक्षादूतों को वेतन 

Educator teaching children
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बच्चों को पढ़ाता हुआ शिक्षादूत
बीजापुर जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में सलवा जुडूम के तहत 350 स्कूल खोले गए थे। सरकार द्वारा शिक्षादूत भी नियुक्त किये गए थे।

गणेश मिश्रा- बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में बच्चों की शिक्षा के लिए सलवा जुडूम के तहत 350 स्कूल खोले गए थे। इन स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार द्वारा शिक्षादूत भी नियुक्त किये गए। लेकिन पिछले चार महीनों से इन्हें वेतन का भुगतान किया गया है। कुछ दिनों बाद दीपावली का त्यौहार है, लेकिन वेतन भुगतान ना होने की वजह से उनके माथे पर चिंता की लकीर दिखाई दे रही है।

Children studying in the absence of facilitiesChildren studying in the absence of facilities
सुविधाओं के आभाव में पढ़ते हुए बच्चे

सलवा जुडूम के दौरान बंद किए गए तकरीबन 350 स्कूलों में से करीब 290 से अधिक स्कूलों को खोल तो जरूर दिया गया है। यहां आज भी कई स्कूल झोपड़ीयों में संचालित हो रहे हैं, तो कई स्कूलों में झोपडी भी नहीं है। आधे से अधिक स्कूलों में नियमित शिक्षकों की पोस्टिंग तक नहीं की गई है तो कहीं सिर्फ 12 वीं पासशिक्षा दूतों के भरोसे कई कक्षाएं संचालित की जा रही है।

28 बच्चों को पढ़ा रहा है एक शिक्षादूत

दरअसल, आज हम उस स्कूल की कहानी बताने जा रहे हैं जो 2005 से बंद बड़े 350 स्कूलों में से एक है और जब पुनः स्कूल संचालन का अभियान शुरू किया गया तो सबसे पहले इसी स्कूल का संचालन शुरू किया गया। गंगालूर क्षेत्र के ग्राम पंचायत पदमुर में वर्ष 2018-19 में बंद पड़े स्कूल का पुनः संचालन किया गया और इस स्कूल की शुरुआत तकरीबन 76 बच्चों से की गई थी। उन्ही बच्चों में से आज तकरीबन 28 बच्चे छठवीं कक्षा में प्रवेश कर चुके हैं। पदमुर में माध्यमिक शाला की भी शुरुआत छठवीं के 28 बच्चों के साथ की गई थी। लेकिन इन्हें पढ़ाने के लिए एक भी नियमित शिक्षक नहीं है। एक शिक्षा दूत छठवीं कक्षा के 28 बच्चों के लिए सभी विषयों की क्लास ले रहा है।

दो शिक्षक आये, लेकिन वो भी चले गए

यहां वहां के ग्रामीण बताते हैं कि, माध्यमिक शाला के शुरू होने के बाद स्कूल के लिए एक महिला शिक्षक की पोस्टिंग की गई थी। लेकिन महिला शिक्षक ने स्वास्थ्यगत कारणों से और उम्र दराज होने के कारण स्कूल ना पहुंच पाने की असमर्थता जताते हुए अन्य स्कूलों में अपनी पोस्टिंग करवा लिया। उसके बाद एक अन्य शिक्षक की पोस्टिंग की गई, लेकिन उस शिक्षक ने भी अपना ट्रांसफर करवा लिया। अब 28 बच्चों की जिम्मेदारी एकमात्र शिक्षा दूत पर है और शिक्षा दूत भी बेहद ईमानदारी के साथ रोजाना स्कूल जाकर 28 बच्चों को सभी विषयों की शिक्षा दे रहा है। यह भी बताया गया कि, स्कूल में दो शिक्षा दूतों को नियुक्त किया गया था। परंतु एक माह कार्य लेने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी के मौखिक आदेश पर दूसरे शिक्षा दूत को हटा दिया गया।

5 महीने बाद नहीं है कोई सुविधाएं

ग्रामीणों की माने तो नए सत्र को शुरू हुए 5 महीने बीत चुके हैं। लेकिन आज तक बीजापुर शिक्षा विभाग पठन सामग्री उपलब्ध नहीं करवा पाया है। जिसके चलते शिक्षा दूत ने पोटाकेबिन से बच्चों के लिए पाठ्यपुस्तक उधारी मांग कर बच्चों की शिक्षा को आगे बढ़ा रहा है। स्कूल के लिए फर्नीचर के अलावा शासन प्रशासन और शिक्षा विभाग अब तक कोई सुविधा नहीं है। सबसे बड़ी विडंबना तो देखिए की माध्यमिक शाला पदमुर के लिए ना तो अलग से भवन स्वीकृत किया गया है और ना ही उसके लिए कोई अलग व्यवस्था की गई है। मजबूरन माध्यमिक शाला के छठवीं के बच्चों को प्राथमिक शाला पदमुर के उधारी के कमरों में पढ़ने को मजबूर होना पड़ रहा है।

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चार महीनों से शिक्षादूतों को नहीं मिला है वेतन

दिवाली से पहले छत्तीसगढ़ सरकार भले ही सभी विभागों के अधिकारी कर्मचारियों को बोनस और तोहफा प्रदान कर रही है। लेकिन नव संचालित स्कूलों को सुचारू रूप से संचालित करने वाले शिक्षा दूतों को पिछले चार महीना से वेतन तक नहीं दिया गया है। जबकि, दीपावली का त्यौहार ठीक सामने है और सभी विभागों को सरकार तोहफा और बोनस प्रदान कर रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि, इन शिक्षादूतों को इनका वेतन भुगतान कब किया जायेगा।

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