अष्टाह्निका महापर्व :  श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में हुआ आयोजन, बड़ी संख्या में श्रद्धालु हुए शामिल 

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श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में अष्टाह्निका महापर्व का आयोजन
रायपुर में कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी एवं चतुर्दशी के पावन अवसर पर श्री आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में अष्टाह्निका महापर्व का आयोजन किया गया।

रायपुर। छत्तीसगढ़ के रायपुर में कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी एवं चतुर्दशी के पावन अवसर पर श्री आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में अष्टाह्निका महापर्व का आयोजन किया गया। इस दौरान श्री शांति नाथ भगवान का अभिषेक और शांति धारा की गई, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। अभिषेक एवं शांति धारा का कार्यक्रम सुबह 8 बजे शुरू हुआ। धर्मप्रेमियों ने मंगलाष्टक का पाठ कर भगवान को पाण्डुक शिला पर विराजमान किया।

आयोजन में प्रासुक जल को शुद्ध कर सभी ने रजत कलशों से भगवान का अभिषेक किया। आज की शांति धारा का सौभाग्य आदेश जैन समता कॉलोनी परिवार को प्राप्त हुआ और अर्पित जैन चूड़ी वाले परिवार ने शुद्ध वचनों का अर्पण किया। इस धार्मिक कार्यक्रम के समापन में भगवान श्रीजी की आरती भी की गई और सभी ने अष्ट द्रव्यों से निर्मित अर्घ्य समर्पित कर नंदीश्वर दीप पूजन संपन्न किया। कार्यक्रम में रवि जैन कुम्हारी, मनोज जैन चूड़ी वाला परिवार, आदेश जैन बंटी, प्रणीत जैन, किशोर जैन, अर्पित जैन, कृष जैन समेत बड़ी संख्या में महिलाएं भी सम्मिलित हुईं।

अष्टाह्निका पर्व का महत्व

श्रेयश जैन (बालू) ने इस पर्व के महत्व को बताते हुए कहा कि "अष्टाह्निका" का शाब्दिक अर्थ आठ दिनों का पर्व है, जो आत्मशुद्धि और पापों से मुक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस अवसर पर जैन साधक उपवास, प्रतिक्रमण, पूजन, ध्यान, योग और स्वाध्याय करते हैं। इस पर्व का आयोजन हर वर्ष कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक किया जाता है। जैन धर्म में अष्टाह्निका पर्व को आत्म-शुद्धि और धर्म के प्रति आस्था को बढ़ाने के एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में मनाया जाता है।

 Digambar Jain Temple

आत्मा को शुद्ध करने और पुण्य लाभ प्राप्त करने का है साधन

अष्टाह्निका पर्व के दौरान श्रद्धालु विशेष व्रत, संयम और एकाशन का पालन करते हैं। नंदीश्वर द्वीप, जिनमंदिरों और जिनविम्बों की मानसिक पूजा द्वारा, आत्मा की शुद्धि एवं आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। इस दौरान सिद्धचक्र का पाठ और विभिन्न पूजाओं का आयोजन, आत्मा को शुद्ध करने और पुण्य लाभ प्राप्त करने का साधन माना जाता है।

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