एथलीट बनने का जज्बा :  50 की उम्र में शुरू किया दौड़ना, 67 की उम्र तक जीते दो गोल्ड 

Moolchand Sahu
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मूलचंद साहू ने 67 की उम्र तक जीते दो गोल्ड
मूलचंद साहू ने 67 की उम्र तक दो गोल्ड जीते है। 67 साल में मूलचंद दौड़ लगाकर युवाओं को भी खेल के प्रति जोड़ना प्रयास करते हैं।

रायपुर। किभी भी खेल में खिलाड़ी बनने की कोई उम्र नहीं होती। व्यक्ति अपनी क्षमता और प्रतिभा के दम पर युवा अवस्था के बाद भी एक बेहतर खिलाड़ी बन सकता है। कुछ ऐसा ही दुर्ग जिले के अहिवारा निवासी 67 वर्षीय मूलचंद साहू ने भी कर दिखाया है। इनकी कहानी भी फिल्मों की तरह है। स्कूल से कॉलेज तक केवल पढ़ाई पर ध्यान दिया। शादी हुई, तो घर की जिम्मेदारी में जुट गए। बच्चों की शादी के बाद जब उम्र 50 साल हुई, तो सोचा कि बचपन का सपना पूरा कर लेते हैं और एथलेटिक्स बनने दौड़ना शुरू कर दिया। बढ़ती उम्र के साथ मूलचंद ने अपने भीतर के खिलाड़ी को अब भी जीवित रखा है। खेल अलंकरण समारोह में शहीद विनोद चौबे सम्मान दिया गया।

आमतौर पर 67 साल की उम्र में लोगों के घुटनों का दर्द शुरू हो जाता है। कई लोग घर से बाहर निकलने से भी बचते हैं, लेकिन मूलचंद अब भी राष्ट्रीय मास्टर एथलेटिक्स में भाग लेते हैं और 100 से 800 मीटर तक की दौड़ लगाते हैं। हरिभूमि से बातचीत में बताया कि, बचपन से युवा अवस्था तक एथलेटिक्स का खिलाड़ी नहीं था। जब 50 साल की उम्र में एथलेटिक्स बनने का सोचा, उस समय मेरी सोच थी कि अगर खेल से जुड़ा रहूंगा, तो अधिक उम्र तक स्वस्थ रहूंगा। आज भी यही सोचता हूं। उन्होंने बताया कि, अभी तक तीन बार राष्ट्रीय खेल में हिस्सा ले चुका हूं, जिसमें दो बार प्रथम स्थान पर था। स्वस्थ शरीर का राज देसी खानपान है। बोरे बासी खाकर दौड़ता हूं। दिन में दो बार दूध और अधिक से अधिक भाजी खाता हूं। मुझे कोई बीमारी नहीं है।

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रोज 8 किलोमीटर की दौड़

स्कूल जाने बचपन में 10 से 15 किलोमीटर कभी सायकल तो कभी पैदल चलकर जाते थे। आज भी रोज 8 किलोमीटर की दौड़ करता हूं। उनका कहना है कि 50 साल की उम्र में मेरा शरीर फुर्तीला था। वही जोश आज भी है। जब एथलेटिक्स बनने का सोचा था, तब घर में बच्चों ने मनोबल बढ़ाया था। खेल के कारण लोग मुझे बुजुर्ग नहीं कहते। जवान रहना है, तो हर व्यक्ति को दौड़ते रहना चाहिए।

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जीवन के 80 साल तक दौड़ता रहूंगा

67 साल में मूलचंद दौड़ लगाकर युवाओं को भी खेल के प्रति जोड़ना प्रयास करते हैं। उनका कहना है कि 50 साल की उम्र में दौड़ने की प्रेरणा मिल्खा सिंह से मिली थी। उन्हें अपना सुपर हीरो मानता हूं और गांव में बच्चे मुझे मिल्खा दादा कहते हैं। बचपन में स्कूल के दौरान दौड़ की प्रतियोगिता में हिस्सा लेता था, लेकिन उस समय ऐसा मौका नहीं मिला, जिससे राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग ले सकूं। अन्य दोस्तों की तरह मेरी भी इच्छा नेशनल प्रतियोगिता खेलने की थी, जिसे मैंने 50 साल की उम्र में 2014 में पूरा किया। उनका कहना है कि अपने जीवन के 80 साल तक दौडूंगा। जब तक शरीर स्वस्थ है किसानी के साथ-साथ खेल करता रहूंगा।

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