स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: समय की पुकार है- आलस्य का त्याग करें और 'ब्रह्ममुहूर्त' का सदुपयोग करें 

Swami Avdheshanand Giri ji maharaj Jeevan Darshan, Life Philosophy
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स्वामी अवधेशानंद जी गिरि- जीवन दर्शन: क्या बाह्य व्यथाओं के कारण हमारे भीतर का सुख, शांति और आनंद नष्ट हो जाता है?
Jeevan Darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से आज 'जीवन दर्शन' में जानिए कि इस अमूल्य प्रातःकाल का मानव जीवन में क्या महत्व है? 

swami avadheshanand giri Jeevan Darshan: प्रातःकाल, विशेषतः सूर्योदय से पूर्व का समय, जिसे 'ब्रह्ममुहूर्त' कहा गया है- दिव्यता से परिपूर्ण होता है। यह वह वेला होती है, जब सम्पूर्ण सृष्टि एक नवीन ऊर्जा से ओतप्रोत होती है। जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से आज 'जीवन दर्शन' में जानिए कि इस अमूल्य प्रातःकाल का मानव जीवन में क्या महत्व है?

मानव जीवन की सफलता का रहस्य अनुशासित जीवनशैली, आत्म-नियंत्रण और प्रकृति के साथ सामंजस्य में निहित है। इसी संदर्भ में प्रातः जागरण, विशेषतः ब्रह्ममुहूर्त में उठने की परम्परा, भारतीय संस्कृति में अत्यंत पूजनीय और लाभकारी मानी गई है। यह समय न केवल शरीर के स्वास्थ्य के लिए अनुकूल होता है, अपितु मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास के लिए भी अत्यंत फलदायक होता है। प्रातःकाल, विशेषतः सूर्योदय से पूर्व का समय, जिसे 'ब्रह्ममुहूर्त' कहा गया है- दिव्यता से परिपूर्ण होता है। यह वह वेला होती है, जब सम्पूर्ण सृष्टि एक नवीन ऊर्जा से ओतप्रोत होती है। वायु शुद्ध होती है, वातावरण में सकारात्मक स्पंदन व्याप्त होते हैं और मानव मस्तिष्क शांति तथा एकाग्रता के सर्वोच्च स्तर पर होता है। यह समय आत्म-चिंतन, साधना, अध्ययन और स्वास्थ्यवर्धक क्रियाओं के लिए सर्वोत्तम माना गया है।

स्वास्थ्य के लिए अमृतकाल आयुर्वेद के अनुसार, रात्रि में शरीर में जो पाचक रस उत्पन्न होते हैं, वे प्रातःकाल शरीर की सूक्ष्म नाड़ियों और अंगों में सक्रिय होकर उसे पुष्ट करते हैं। इस समय उठकर जल सेवन, योग, प्राणायाम और ध्यान से न केवल पाचन तंत्र सुदृढ़ होता है, बल्कि मस्तिष्क भी नवीन ऊर्जा से भर जाता है। वैज्ञानिक शोध भी पुष्टि करते हैं कि प्रातः जल्दी उठने वाले लोगों में अवसाद, चिड़चिड़ापन और आलस्य की प्रवृत्ति कम होती है। सफलता और लक्ष्य प्राप्ति का समय प्रातःकाल का वातावरण प्रेरणा और नवीनता से भरा होता है। यह समय संकल्प और आत्म-विकास के लिए अनुकूल होता है। जो विद्यार्थी, साधक, कलाकार या नेतृत्वकर्ता इस समय का उपयोग आत्म-साधना में करते हैं, वे जीवन में लक्ष्य प्राप्ति की ओर तीव्र गति से अग्रसर होते हैं। यह समय बाह्य चहल-पहल से मुक्त होता है, जिससे एकाग्रता सहज सुलभ हो जाती है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से शास्त्रों में कहा गया है- 'ब्राह्मे मुहूर्त उत्तिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थमायुषः ..।' अर्थात् ब्रह्ममुहूर्त में उठना आयु की रक्षा एवं जीवन की उन्नति के लिए आवश्यक है। सन्त, महात्मा, योगी और तपस्वी इसी समय को साधना के लिए चुनते हैं। इस वेला में की गई प्रार्थना, जप, ध्यान और स्वाध्याय का फल कई गुना अधिक होता है। यह आत्मा की चेतना को जगाने और ईश्वर से तादात्म्य स्थापित करने का उपयुक्त क्षण होता है।

वर्तमान युग में युवाओं में प्रातः जागरण की आदत दुर्लभ होती जा रही है। देर रात तक जागना, डिजिटल माध्यमों में डूबे रहना और फिर देर तक सोते रहना एक दुर्बल, भ्रमित और असंतुलित जीवन को जन्म देता है। इसलिए समय की पुकार है कि हम आलस्य का त्याग करें और इस अमूल्य प्रातःकाल का सदुपयोग करें।

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