Shraadh 2024: मघा श्राद्ध पितरों के लिए बेहद खास, जानें शुभ तिथि व कुतुप मुहूर्त

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघा श्राद्ध पितृपक्ष के माघा नक्षत्र में होता है। मान्यता है कि इस दिन पितृ लोक के राजा अर्यमा की पूजा की जाती है।

Magha Shraadh 2024: वैदिक पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष के 16 दिनों में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं। यह 16 दिन का दौर श्राद्ध के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। ज्योतिषियों के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान जब माघा नक्षत्र होता है, तो उस दिन को मघा श्राद्ध के नाम से जाना जाता है। वहीं जब भरणी नक्षत्र होता है, तो भरणी श्राद्ध कहा जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघा नक्षत्र के स्वामी पित देव होते हैं या कह सकते हैं माघा नक्षत्र पर पितृ देवों का शासन होता है। ऐसे में आज जानेंगे कि इस साल माघा नक्षत्र कब है और शुभ मुहूर्त क्या है।

कब है मघा श्राद्ध

पंचांग के अनुसार, इस साल माघा नक्षत्र 29 सितंबर दिन रविवार को है। 29 सितंबर को माघा नक्षत्र सुबह के 3 बजकर 38 मिनट से लगेगा और अगले दिन यानी 30 सितंबर को त्रयोदशी को सुबह 6 बजकर 19 मिनट तक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, 29 सितंबर को पितृ देवों की पूजा बड़े ही विधि-विधान से की जाती है।

इस दिन पितृ देव के अर्यमा की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन जो लोग पितृ देवों को तर्पण करते हैं उनसे पितृ देव प्रसन्न होते हैं। साथ ही, घर में धन-समृद्धि और सुख-शांति का भी आशीर्वाद मिलता है।

किस समय है कुतुप मुहूर्त

दृक पंचांग के अनुसार, 29 सितंबर दिन बुधवार को कुतुप मुहूर्त दोपहर के 11 बजकर 47 मिनट से लेकर दोपहर के 12 बजकर 35 मिनट तक है। वहीं रौहिण मुहूर्त 12 बजकर 35 मिनट से लेकर दोपहर के 1 बजकर 23 मिनट तक है। अपराह्न काल दोपहर के 1 बजकर 23 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 46 मिनट तक है।

मघा श्राद्ध करने का महत्व

मान्यता है कि मघा श्राद्ध के लिए तर्पण और श्राद्ध करने से पितृ देव बहुत ही प्रसन्न होते हैं, क्योंकि पितरों की आत्मा तृप्त हो जाती है। पितृ देव अपनी संतानों को खूब आशीर्वाद देते हैं। मघा श्राद्ध के दिन किए जाने वाले पितरों की पूजा के साथ अर्यमा की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अर्यमा को पितृ लोक का राजा माना जाता है। इस दिन पितृ देव की पूजा काले तिल से की जाती है।

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डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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